उदयपुर | बेहतर कचरा प्रबंधन के लिए कचरे का कम उत्पादन, घरों व् संस्थानों के स्तर पर गीले , सूखे व् हानिकारक घरलू कचरे का पृथकीकरण , जनजागरूकता एवं सार्वजनिक स्थलों, सड़कों पर कचरा , गंदगी विसर्जन पर पाबंदी जैसे उपाय जरुरी है ।
राज्य में घरों व् संस्थानों के स्तर पर कचरा संग्रहण ,परिवहन , निस्तारण को बेहतर बनाने एवं जवाबदेही तय करने के उद्देश्य से नागरिकों से सहयोग राशि ली जाएगी ।कचरा एवं गंदगी फ़ैलाने वाले लोगों एवं व्यावसायिक संस्थानों के व्यहवार में बदलाव सुनिश्चित करने के लिए राज्य में अब जुर्माने का भी प्रावधान होगा । ठोस कचरा प्रबंधन नियमों के तहत एवं एन जी टी के आदेशों की पालना में राज्य के स्वायत शासन विभाग ने इस सम्बन्ध में अधिसूचना जारी कर दी है ।(http://lsg.urban.rajasthan.gov.in/content/dam/raj/udh/lsgs/lsg-jaipur/Order/order2019/aprl/26213.pdf)
यह जानकारी विद्या भवन पोलीटेक्निक उदयपुर के प्राचार्य डॉ अनिल मेहता ने नाइटर चंडीगढ़ द्वारा स्थानीय सी टी ए इ कोलेज में आयोजित कार्यशाला में दी । कार्यशाला में विभिन्न तकनिकी संस्थानों के चयनित संकाय सदस्य भाग ले रहे हैं ।
मेहता ने कहा कि “शहर में हरियाली” के स्थान पर अब “हरियाली में शहर” के सिद्धान्त को अपनाना होगा। मेहता ने कहा कि अच्छे जीवन के लिए आदर्श एवं आवश्यक रूप से एक शहर का पचास प्रतिशत भाग वृक्षों व् हरियाली से आच्छादित होना चाहिए । आयड नदी सहित देश की नदियों में एन्टीबायोटिक दवाइयों की उपस्थिति को गंभीर बताते हुए मेहता ने कहा कि नदियों के पानी में एन्टीबायोटिक दवाइयों का कचरा एक नवीन प्रकार का प्रदूषक है जो मानव स्वास्थ्य व् पर्यावरण के लिए बहुत बड़ा खतरा है ।