कोटा में आई मिठास से भरपूर लीची की बहार

( 28112 बार पढ़ी गयी)
Published on : 13 Jun, 19 10:06

डॉ. प्रभात कुमार सिंघल,कोटा

कोटा में आई मिठास से भरपूर लीची की बहार

एंटीआक्सीडेंट और रोग प्रतिरोधक क्षमता एवं मिठास से भरपूर लीची की बहार से आज कोटा भी महक रहा है। उत्तरप्रदेश एवं बिहार का यह फल पिछले कुछ वर्षों से ही कोटा आने लगा है। कोटा में लीची 140 से 160 रुपये किलो बिक रही है। लीची में सुक्रोज , फ्रूक्टोज और ग्लूकोज तीनों ही तत्व पाए जाते हैं। पाचनतंत्र और रक्त संचार को बेहतर बनाने वाली लीची के 100 ग्राम गूदे में 70 मिलीग्राम विटामिन सी होता है। इसमें वसा और सोडियम नाम मात्र के लिए होता है। 

लीची की फसल इस बार न केवल अच्छी हुई है बल्कि बेहतर गुणवत्ता और मिठास से भरपूर है। पेड़ से तोड़ने के बाद जल्दी खराब होने वाली लीची इस बार अधिक तापमान के कारण रोगमुक्त और मिठास से भरपूर है। लीची का फल इस बार न केवल सुर्ख लाल है बल्कि कीड़े से अछूता भी है। लीची के बाग की नियमित अंतराल पर सिंचाई करने वाले किसानों ने 20 टन प्रति हेक्टेयर तक इसकी फसल ली है। देश में सालाना लगभग छह लाख टन लीची की पैदावार होती है जिसमें बिहार की हिस्सेदारी करीब 45 प्रतिशत है।  मुज़फ्फरनगर (उत्तरप्रदेश) में लीची का उत्पादन करीब 75 हज़ार टन होता है।

तेज धूप तथा वर्षा नहीं होने की वजह से इस बार लीची के फल में कीड़ा नहीं लगा है। लीची का रंग भी काफी आकर्षक है और मिठास से भरपूर है।  बिहार में 25 मई के बाद पेड़ से लीची तोड़ने वाले किसानों को प्रति किलो 70 रुपये का मूल्य मिला है। 

लीची के फल अपने आकर्षक रंग, स्वाद और गुणवत्ता के कारण भारत में भी नही बल्कि विश्व भारत का विश्व में चीन के बाद दूसरा स्थान है। पिछले कई वर्षो में इसके निर्यात की अपार संभावनाएं विकसित हुई हैं, परन्तु अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बड़े एवं समान आकार तथा गुणवत्ता वाले फलों की ही अधिक मांग है। अत: अच्छी गुणवत्ता वाले फलों के उत्पादन की तरफ विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। इसकी खेती के लिए एक विशिष्ट जलवायु की आवश्यकता होती है, जो सभी स्थानों पर उपलब्ध नहीं है। अत: लीची की बागवानी मुख्य रूप से उत्तरी बिहार, देहरादून की घाटी, उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्र तथा झारखंड प्रदेश के कुछ क्षत्रों में की जाती है। इसके अतिरिक्त पश्चिम बंगाल, पंजाब, हरियाणा व उत्तर प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में इसके सफल उत्पादन का प्रयास किया जा रहा है। इसके फल 10 मई से लेकर जुलाई के अंत तक देश के विभिन्न भागों में पक कर तैयार होते हैं एवं उपलब्ध रहते है। सबसे पहले लीची के फल त्रिपुरा में पक कर तैयार होते है। इसके बाद क्रमश: राँची एवं पूर्वी सिंहभूम (झारखंड), मुर्शीदाबाद (पं. बंगाल), मुजफ्फरपुर एवं समस्तीपुर (बिहार), उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्र, पंजाब, उत्तरांचल के देहरादून एवं पिथौरागढ़ की घाटी में फल पक कर तैयार होते है। बिहार की लीची अपनी गुणवत्ता के लिए देश-विदेश में प्रसिद्ध हो रही हैं। 

ऊर्जा का भंडार

 लीची को बतौर फल ही नहीं खाया जाता, इसका जूस और शेक भी बहुत पसंद किया जाता है। जैम, जैली, मार्मलेड, सलाद और व्यंजनों की गार्निशिंग के लिए भी लीची का इस्तेमाल किया जाता है। छोटी-सी लीची में कार्बोहाइड्रेट, विटामिन सी, विटामिन ए और बी कॉम्प्लेक्स, पोटेशियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम, फॉस्फोरस, आयरन जैसे खनिज लवण पाए जाते हैं, जो इसे काफी फायदेमंद बना देते हैं। लीची में मौजूद विटामिन लाल रक्त कोशिकाओं के निर्माण और पाचन-प्रक्रिया के लिए जरूरी है। इससे बीटा कैरोटीन को जिगर और दूसरे अंगों में संग्रहीत करने में मदद मिलती है। फोलेट हमारे शरीर में कोलेस्ट्रॉल के स्तर को नियंत्रित रखता है। इससे हमारा तंत्रिका तंत्र स्वस्थ रहता है।

लीची एक अच्छा ऐंटीऑक्सिडेंट भी है। इसमें मौजूद विटामिन सी हमारे शरीर में रक्त कोशिकाओं के निर्माण और लोहे के अवशोषण में भी मदद करता है, जो एक प्रतिरक्षा प्रणाली को बनाए रखने के लिए जरूरी है। रक्त कोशिकाओं के निर्माण और पाचन-प्रक्रिया में सहायक लीची में बीटा कैरोटीन, राइबोफ्लेबिन, नियासिन और फोलेट काफी मात्रा में पाया जाता है।

लीची हमारी सेहत के साथ ही फिगर का भी ध्यान रखती है। इसमें घुलनशील फाइबर बड़ी मात्रा में होते हैं, जो मोटापा कम करने का अच्छा उपाय है। फाइबर हमारे भोजन को पचाने में सहायक होता है और अंदरूनी समस्याओं को रोकने में मदद करता है। 

हल्के दस्त, उल्टी, पेट की खराबी, पेट के अल्सर और आंतरिक सूजन से उबरने में लीची का सेवन फायदेमंद है। यह कब्ज या पेट में हानिकारक टॉक्सिन के प्रभाव को कम करती है। गुर्दे की पथरी से होने वाले पेट दर्द से आराम पहुंचाती है।लीची विटामिन सी का बहुत अच्छा स्रोत होने के कारण खांसी-जुकाम, बुखार और गले के संक्रमण को फैलने से रोकती है।  आयुर्वेद के आधुनिक ग्रंथों में इसे एलची कहा गया है। यह फल मधुर,दस्तावर,पचने मेंभारी,वातहर,रुचिकर,कफपीत वर्धक बताया गया है।

चीन से आई लीची

विश्व मे लीची की मूल उत्पत्ति स्थान चीन को माना जाता है।प्राचीन काल में चीन के तंग वंश के राजा ज़ूआंग ज़ाँग का प्रिय फल था। राजा के पास यह फल द्रुतगामी अश्वों द्वारा पहुंचाया जाता था, क्योंकि वह केवल दक्षिण चीन के प्रांत में ही उगता था। लीची को पश्चिम में पियरे सोन्नेरैट द्वारा प्रथम वर्णित किया गया था (1748-1814) के बीच, उनकी दक्षिण चीन की यात्रा से वापसी के बाद। सन 1764 में इसे रियूनियन द्वीप में जोसेफ फ्रैंकोइस द पाल्मा द्वारा लाया गया और बाद में यह मैडागास्कर में आयी और वह इसका का मुख्य उत्पादक बन गया। इसके साउथ अफ्रीका एवं मॉरीशस भी मुख्य उत्पादक देश बन गए ।वर्तमान में  लीची भारत,बँग्लादेश,पाकिस्तान,इंडोनेशिया,थाईलैंड,उत्तरी वियतनाम,दक्षिण ताइवान, फिलीपींस एवं दक्षिण अफ्रीका में पाई जाती है।

लीची के निर्यातकों को इस के फल एवं इस से बने उत्पादों से अच्छे दाम मिलते हैं। ऑस्ट्रेलिया से इसका निर्यात सिंगापुर एवं अन्य देशों को होता है।भारत से यू.के. को निर्यात किया जाता है। भारत की लीची की गुणवत्ता श्रेष्ठ मानी जाती है। लीची के उत्पादन में भारत की हिस्सेदारी मात्र एक प्रतिशत है।


साभार :


© CopyRight Pressnote.in | A Avid Web Solutions Venture.