याद आया, मोदी तुझसे वैर नहीं..!

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Published on : 25 May, 19 12:05

 Kaushal Mundra: 

 याद आया, मोदी तुझसे वैर नहीं..!

 ‘मोदी तुझसे वैर नहीं..’। जी हां, आप यह नारा नहीं भूले होंगे जो राजस्थान में विधानसभा चुनाव से काफी पहले शुरू हो चुका था। गुरुवार को जब लोकसभा चुनाव के परिणाम आने शुरू हुए तो यह नारा साबित होता नजर आने लगा। राजस्थान में 25 लोकसभा सीटों में से सभी 25 भाजपा की झोली में आईं। इनमें से 24 भाजपा और एक सीट पर भाजपा समर्थित उम्मीदवार हनुमान बेनीवाल जीते। 
कुल मिलाकर राजस्थान में सभी 25 सीटों पर भाजपा का परचम लहराता नजर आया और तो और कांग्रेस प्रत्याशियों से मतों का अंतर इतना रहा कि राजनीतिक विश्लेषकों की भी आंखें चौड़ी हो गईं। जबकि, छह महीने पहले ही राजस्थान में हुए विधानसभा चुनाव में जनता ने भाजपा को सत्ता नहीं सौंपी और कांग्रेस को बहुमत मिला। 
आखिर छह माह में ही ऐसा क्या हो गया कि जनता का जबर्दस्त रुझान भाजपा की ओर आ गया। इस बात में कोई दो राय नहीं कि यह रुझान भाजपा के लिए नहीं बल्कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए था। तब भी वह नारा ‘मोदी तुझसे वैर नहीं’ साबित होता है। जब इस आधे नारे को सही माना जा सकता है तब बाकी बचे आधे नारे को भी सही नहीं मानने की कोई वजह नहीं दिखाई देती। जनता में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के प्रति कहीं न कहीं नाराजगी जरूर थी। शायद भाजपा मुख्यमंत्री का चेहरा समय रहते बदल देती तो हो सकता है कि राजस्थान का मतदाता फिर से भाजपा को सत्ता सौंप देता। 
लेकिन, इन कारणों पर भाजपा ने न तो विधानसभा चुनाव के परिणामों के बाद मंथन किया और शायद अब भी करे या न करे। यदि किया भी हो तो कारण सामने नहीं लाए गए, लेकिन वसुंधरा राजे को केन्द्रीय संगठन में जिम्मेदारी देकर केन्द्र में बुला लिया जाना भी यह एक संकेत ही था कि वसुंधरा राजे के प्रति राज्य की जनता की नाराजगी के चलते सत्ता दूर हुई। 
विधानसभा में आरएसएस की भूमिका की चर्चा भी रही। राजनीतिक विश्लेषक बताते हैं कि आरएसएस का कार्यकर्ता विधानसभा में उतनी जोर-शोर से नहीं जुटा जितना मोदी के लिए जुटा नजर आया। यहां भी अंदरखाने की यह बात सामने आ रही है कि आरएसएस कार्यकर्ता विधानसभा में सभी विधानसभाओं में सक्रिय नहीं हुआ, बल्कि जो भाजपा उम्मीदवार संघनिष्ठ वाली छवि के थे, उनके लिए कमर कसी गई। हालांकि, कुछ लोगों का यह भी मानना है कि देश के चुनाव में राष्ट्रीय मुद्दों को तवज्जो दी जाती है और राज्य के चुनाव में स्थानीय मुद्दों को। देश के चुनाव में राष्ट्रवाद का मुद्दा हावी रहा। वसुंधरा के पुत्र दुष्यंत सिंह को जीत मिलना इसका उदाहरण कहा जा सकता है, लेकिन उनके पीछे भी अंतत: मोदी ही बड़ा कारण है। यहां भी यह बात सही होती है कि मोदी के हाथ मजबूत करने के लिए मतदाता ने भाजपा के कमल का बटन दबाया। अब चर्चा यह भी है कि ये परिणाम कहीं राजस्थान से वसुंधरा युग की समाप्ति का संकेत तो नहीं। 
हालांकि, राजस्थान की भाजपा इस बात पर संतोष नहीं कर सकती कि जनता उसके साथ है, उसे यह मानना ही होगा कि जनता ने मोदी और मोदी सरकार के निर्णयों का समर्थन किया है और इस बात पर मंथन करना ही होगा कि राजस्थान में कहां चूक हुई थी और जनता के प्रति जिम्मेदारी निभाने में क्या खामी रह गई थी।
: लेकिन कटारिया इस बात से सहमत ही नहीं रखते उनका कहना है कि विधानसभा चुनाव में महज 0.5% वोट ही कांग्रेस को ज्यादा मिले और लोकसभा में 25 परसेंट भाजपा को ज्यादा मिले, ऐसे में वसुंधरा के प्रति नाराजगी की बात को सही नहीं माना जा सकता।


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