दूर शहर में नहीं हो सकता था नेत्रदान, तो कोटा करा कर गये 

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Published on : 22 May, 19 05:05

घर ले जाकर, सम्भव नहीं हो पाता, तो कोटा में कराया नेत्रदान

दूर शहर में नहीं हो सकता था नेत्रदान, तो कोटा करा कर गये 

कोटा शहर के साथ साथ नेत्रदान का कार्य,अब शहर के आस.पास के छोटे कस्बों,गाँव में भी वहाँ के नागरिकों को अच्छे से समझ आ रहा है । आज से सात वर्ष पूर्व शाइन इंडिया फाउंडेशन ने जब कार्य प्रारंभ किया था, तो पूरे साल भर में केवल 2 जोड़ी नेत्रदान शहर भर से प्राप्त हुए थे । जागरुकता का प्रतिशत बढ़ने के कारण आज साल भर में 80 से 90 जोड़ी नेत्रदान संभाग भर से प्राप्त हो रहे है ।

इसी क्रम में आज सुबह दादाबाड़ी स्थित भारत विकास परिषद अस्पताल में रामगंजमंडी शहर के, पत्थर के बड़े व्यवसायी श्री कैलाश चंद जी जैन का आकस्मिक निधन हो गया । जैन साहिब को उनके बेटों विकास जैन व विशेष जैन ने हर्निया का ऑपरेशन करवाने के लिये भर्ती किया था । ऑपरेशन के उपरांत अचानक तबियत बिगड़ जाने के बादएहृदयगति रुक जाने के कारण उनकी मृत्यु हो गई ।  
कैलाश जी काफ़ी सहजएसरल स्वभाव के मिलनसार व्यक्ति थे, अपने व्यवसाय के बाद वह वह अपनी पत्नि तेज बाई के साथ धार्मिक कार्यों में अपना समय देते थे ।
कोटा इलाज के दौरान दोनो भाई यहीं मौजूद थे, अचानक हुई इस घटना के कारण दोनों शोक में डूब गए, समझ नहीं आ रहा था कि, माँ और बहनों को यह दुखः भरी ख़बर कैसे सुनाये ।
 रामगंजमंडी के ही कैलाश जी के क़रीबी मित्र प्रकाश धारीवाल जी ने इनके बेटों से पिताजी की कुशलक्षेम पूछने के लिये बात की तब जाकर उनको भी यह दुःखद सूचना मिली । थोड़ा समय बीत जाने पर प्रकाश जी ने उनके बेटों से पिता के नेत्रदान करवाने की बात रखीए माता.पिता से मिले संस्कारो के कारण वह नेत्रदान जैसे पुनीत कार्य को सम्पन करवाने के लिये तैयार हो गएएपर  उनको तुरंत रामगंजमंडी भी निकलना थाएऐसे में उनकी इच्छा थी कि यदि नेत्रदान का कार्य उनके निवास रामगंजमंडी पर ही हो जाए तोएसभी को ठीक लगेगा । उसके बाद शाइन इंडिया फाउंडेशन के सदस्यों को धारीवाल जी ने संपर्क किया । धारीवाल जी ने संस्था सदस्यों को कहा कि जितना जल्दी हो सकेएभारत विकास में जाकर नेत्रदान की प्रकिया प्रारंभ करेंएअन्यथा उनके दोनों पुत्र पिता की पार्थिव शरीर को लेकर अपने पैतृक निवास के लिये रवाना हो जायेंगे। संस्था सदस्यएआई बैंक  सोसायटी के तकनीशियन के साथ 20 मिनट में अस्पताल पहुँच गये, और 20 मिनट में ही नेत्रदान की प्रक्रिया पूरी कर दी। सभी रिश्तेदारों को मन में सुकून था कि एईश्वर के आगे किसी की मर्जी नहीं चल सकती, परिजनों का हमेशा के लिये दूर हो जाने का गम हमेशा रहता हैएपर सही समय पर नेत्रदान हों जाने से कम से कम एक सुकून मन में रहता है कि उनके परिजन कहीं न कहीं किसी की आँख में रौशनी बनकर जीवित रहेंगे।


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