“हमारा जीवन यज्ञमय होना चाहियेः योगेश मुंजाल”

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Published on : 21 May, 19 10:05

-मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून।

“हमारा जीवन यज्ञमय होना चाहियेः योगेश मुंजाल”

वैदिक साधन आश्रम तपोवन देहरादून का 5 दिवसीय ग्रीष्मोत्सव 15 मई को आरम्भ होकर दिनांक 19 मई 2019 को सोल्लास सम्पन्न हुआ। आश्रम की नवनिर्मित भव्य एवं विशाल यज्ञशाला में प्रतिदिन प्रातः व सायं वेद पारायण यज्ञ होता रहा तथा रविवार को यज्ञ की पूर्णाहुति हुई। यज्ञ के ब्रह्मा स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती जी थे। मुख्य वक्ता आगरा के प्रसिद्ध वैदिक विद्वान श्री उमेश चन्द्र कुलश्रेष्ठ तथा मुख्य भजनोपदेशक आर्यजगत के प्रसिद्ध गीतकार एवं गायक पं0 सत्यपाल पथिक जी थे। मन्त्रपाठ गुरुकुल पौंधा देहरादून के ब्रह्मचारियों ने किया। यज्ञ का संचालन श्री शैलेश मुनि सत्यार्थी जी, वानप्रस्थ आश्रम, ज्वालापुर ने किया। पं0 सूरत राम शर्मा आश्रम के धर्माधिकारी हैं। वह भी यज्ञ में उपस्थित रहते थे। रविवार 19 मई को यज्ञ की पूर्णाहुति हुई। इसके बाद का कार्यक्रम आश्रम के भव्य सभागार में सम्पन्न हुआ। आज यहां स्वामी दीक्षानन्द स्मृति समारोह का आयोजन हुआ। आयोजन में दिल्ली से केन्द्रीय आर्य युवक परिषद के अध्यक्ष डॉ0 अनिल आर्य, श्रीमती प्रवीण आर्या तथा परिषद की पूरी टीम पधारी हुई थी। कार्यक्रम का संचालन विदुषी बहिन सुनीता बुद्धिराजा जी ने बहुत कुशलता से किया।

विदुषी बहिन सुनीता बुद्धिराजा जी ने कहा कि यज्ञ करने का सौभाग्य तभी मिलता है जब ईश्वर की हम पर कृपा होती है। आज के आयोजन की अध्यक्षता देश के प्रसिद्ध उद्योगपति एवं ऋषि भक्त श्री योगेश मुंजाल जी ने की। श्री मुंजाल जी को शाल एवं एक चित्र भेंट कर सम्मानित किया गया। कार्यक्रम के अन्त में उनका सम्बोधन हुआ। हम उनका सम्बोधन यहां पहले प्रस्तुत कर रहे हैं। अन्य कार्यक्रम इसके बाद प्रस्तुत करेंगे। श्री योगेश मुंजाल जी ने कहा कि मैं यहां आश्रम में आश्रम के प्रधान श्री दर्शन कुमार अग्निहोत्री जी की प्रेरणा से आया हूं। मैं कई वर्षों बाद यहां आ सका हूं। यहां मैंने अनेक सुखद परिवर्तन देखें हैं। सभागार एवं दो भव्य यज्ञशालाओं को देखकर मुझे अतीव प्रसन्नता हुई है। पहले यहां टीन की छत का बना हुआ सभागार था जबकि अब यहां एक आधुनिक एवं भव्य सभागार है। यज्ञशाला भी पुरानी थी जो इसी वर्ष निर्मित हुई है तथा इसकी भव्यता देखते ही बनती है। उन्होंने कहा कि आश्रम अब काफी अच्छा बन गया है। श्री योगश मुंजाल जी ने आश्रम के मंत्री श्री प्रेम प्रकाश शर्मा जी को बधाई दी। उन्होंने कहा कि आश्रम के मंत्री जी ने यहां अच्छा काम किया है। मैं आशा करता हूं कि आपका सहयोग इनको सदैव प्राप्त होता रहेगा।

श्री योगेश मुंजाल जी ने कहा कि मुझे स्वामी दीक्षानन्द जी की काफी यादें आ रही हैं। जब मैं छोटा था तो स्वामी जी लुधियाना क हमारे निवास पर आते रहते थे। वह हमारे उद्योग के सभी कर्मचारियों को प्रवचन दिया करते थे। जब हम दिल्ली आ गये, तो दिल्ली में भी स्वामी जी हमारे निवास पर आते और हमें प्रवचन दिया करते थे। हमें उनके जीवन में तथा अन्तिम दिनों में भी उनकी सेवा करने का अवसर मिला। स्वामी जी अपने प्रवचन में हमें छोटी छोटी बातें बताते थे। आज तक हमें उनकी वह सब बातें याद हैं। वह बतातें थे कि हमारा जीवन यज्ञमय होना चाहिये। उनके अनुसार दूसरों को नमस्ते करना तथा झुकना वा सम्मान देना भी एक यज्ञ है। किसी को प्यार से मीठे वचन बोलना भी यज्ञ है। सद्व्यवहार करना भी एक यज्ञ है। परिवार में सभी सदस्य एक दूसरे का आदर करें और अच्छा व्यवहार करें, यह भी एक यज्ञ होता है।

 

                उन्होंने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति सुख चाहता है। हम सुख प्राप्ति के लिये कोशिश बहुत कम करते हैं। यदि हमारे मन में शान्ति नहीं है तो हम सफल व्यक्ति नहीं हैं।  धन का महत्व तभी है जब मन में शान्ति हो। मैंने अनुभव किया है कि हमें ठीक से रहना व बोलना नही आता। एक उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि नौयडा में एक व्यक्ति अपनी एक पुस्तक बेच कर रहा था। वह लोगों से तीन प्रश्न कर रहा था। 1- क्या आप खुश रहना चाहते हैं? सौ प्रतिशत लोग बता रहे थे कि वह सुखी रहना चाहते हैं। दूसरा प्रश्न था कि क्या आप खुश हैं? अस्सी प्रतिशत लोगों का उत्तर नहीं था और लगभग बीस प्रतिशत लोगों का उत्तर हां में था। उस व्यक्ति का तीसरा प्रश्न था कि आप लोग खुश क्यों नहीं हैं? इसका कारण लोगों ने बताया कि दूसरों के व्यवहार के कारण वह दुःखी रहते हैं। श्री मुंजाल ने कहा कि घर में माता, पिता, भाई, बहिन, पत्नि, स्कूल अध्यापक, कार्यालय में साथी कर्मचारी आदि का व्यवहार अनुकूल नहीं होता है। श्री मुंजाल ने कहा कि किसी भी व्यक्ति ने अपने व्यवहार को अपने दुःख का कारण नहीं बताया।

ऋषिभक्त विद्वान एवं प्रसिद्ध उद्योगपति श्री योगेश मुंजाल जी ने कहा कि आपने अपनी खुशी का रिमोट दूसरों के हाथों में दे रखा है। यही आपके दुःखों का कारण है। उन्होंने कहा कि अपना रिमोट अपने पास रखिये। हम अपने को सुधारेंगे तो हमारे अच्छे दिन आ जायेगे। मन की शान्ति जीवन में सबसे महत्वपूर्ण है। उन्होंने श्रोताओं को अपने मन की शान्ति को बनायें रखने तथा उसे किसी बाह्य कारण से प्रभावित न होने देने के लिये आवश्यक प्रयत्न करने को कहा। उन्होने आयोजन में उपदेशक, भजन गायक, सम्मानित सभी व्यक्तियों सहित आश्रम में दूर दूर से पधारे सभी बन्धुओं को धन्यवाद दिया और सबको बधाई भी दी। इसी के साथ उन्होंने अपने सम्बोधन को विराम दिया। आयोजन में अन्य अनेक कार्यक्रम हुए जिसे हम इसके बाद एक अन्य लेख के द्वारा पृथक से प्रस्तुत करेंगे। ओ३म् शम।

-मनमोहन कुमार आर्य

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