भारत में आर्थिक विकास में उपेक्षित तत्व

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Published on : 19 May, 19 09:05

भारत में आर्थिक विकास में उपेक्षित तत्व

श्री करणी नगर विकास समिति के आश्रय भवन में आयोजित गोष्ठी में श्री मानमल जी जैन ने बताया कि पिछले 70 वर्षों के आर्थिक विकास में अपेक्षित तत्व की तत्वों की चर्चा तो हुई है। परंतु कुछ ऐसे विषय हैं जो छूटे हुए हैं जिन पर भविष्य में ध्यान दिया जाना अपेक्षित है। कृषि इंफ्रासेक्टर सेवा सेक्टर में प्रगति है। भारत के पास शिक्षित एवं  कुशल श्रम शक्ति पर्याप्त मात्रा में है मुद्रा स्थिति भी नियंत्रित है। आयात निर्यात में ऊर्जा के क्षेत्र में भी उन्नति हो रही है जो अपेक्षित तत्व ह,ै उनमें प्रथम और समानता है। समानता बढ़ने पर आर्थिक विकास बाधित होता है। हर योजना के असमानता बढ़ती चली गई आयु की असमानता संपत्ति के स्वामित्व की अवसर की समानताएं हैं उपरोक्तर तक बढ़ रही है। शिक्षा, चिकित्सा एवं खाद्य की असमानता बढ़ रही है यह चिंता का विषय है। रहन सहन के रूप में और समानता है गांव में पढ़ी-लिखी युवती गांव में ही शादी नहीं करना चाहती शहर की लड़की भी गांव में नहीं जाएगी, युवक भी नौकरी करने वाली युवती से शादी करना चाहते हैं। दोनों ही कमाने वाले होने चाहिए एक ओर अमीरी पहाड़ है दूसरी और गरीबी का सागर। क्षेत्रीय असमानता भी बढ़ रही है समाजवादी स्वरूप को छोड़कर पूंजीवादी व्यवस्था को प्रष्ट दिया जाता है। धर्मादा देकर व्यक्ति को ऊपर नहीं उठाया जा सकता। उसका प्रचार किया जा रहा है वस्तुतः ऐसी योजनाएं बनाई जाए जिससे श्रम से कमाकर उन्नति कर सकें। योजना अधिकतम लोगों की प्रगति के लिए बनाई जानी चाहिए, उनमें कमी आई हैै। समानता दूर नहीं होती है बढ़ती जाती है। स्वास्थ्य शिक्षा एवं प्रशिक्षण कम होता है। सामान्य जनों की निचले स्तर के लोगों में विषमता बढ़़ जाती है। गांव में श्रमिक मिलना भी कठिन हो गया है ग्रामीण शहरों में मजदूरी करने को बाध्य हो रहे है। कृषि विकास भी बड़े किसानों का हुआ है कम जमीन वाले किसानों की आय में कमी हुई है। कृषि क्षेत्र में समानता बड़ी है प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग उनके विकास पर ध्यान कम हो रहा है जानकारी कम हो रही है। जनोत्पाद का अभाव हो गया है। जंगली पशु पक्षी गायब हो रहे हैं जड़ी बूटियों का उत्पादन कम हो गया है। सारे ताल तलैया नदियां प्रदूषित हो गई है पीने योग्य पानी का सर्वथा अभाव होता जा रहा है। जल जीवन जंगल का सामंजस्य खत्म हो रहा है। खनन उद्योग के कारण जंगल कट गए हैं पूरा अरावली क्षेत्र उजाड हो गया है। कुछ बावडियों को भर दिया गया है प्राकृतिक संसाधनों में कमी है प्रदूषित हो रहा है। नेताओं के तौर तरीके बदल गए हैं मतभेद होते हुए भी असंयत भाषा का प्रयोग नहीं होता था परंतु उसमें चरम आ गया है मानवता खो रहे हैं। अच्छे राष्ट्र का निर्माण नेताओं का काम है जो गर्वित हो गया है। अंत में प्रोफेसर हरिमोहन शर्मा ने धन्यवाद ज्ञापित किया एवं श्री सी. एम. सक्सेना ने अध्यक्षता की।


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