उदयपुर । देश के जाने-माने कथाकार प्रो. आलमशाह खान का कथा साहित्य जन सामान्य के जीवन का यथार्थ चित्र प्रस्तुत करता है। उनके पात्र गली मोहल्ले में रहने वाले लोग रहें है और उनकी भाषा आम लोगों की भाषा थी। उक्त विचार प्रो. आलमशाह खान यादगार समिति तथा माणिक्यलाल वर्मा श्रमजीवी महाविद्यालय के अंग्रेजी विभाग के साझे में आयोजित यादगार सभा के मुख्य अतिथि प्रो. वेददान सुधीर ने व्यक्त किये। सभा की विशिष्ट अतिथि डॉ. मंजु चतुर्वेदी ने कहा कि प्रो. आलमशाह खान का साहित्य अंततः करूणा उत्पन्न करता है जो श्रेष्ठ साहित्य की विशेषता है। उनकी कहानियों के पात्र विषमता के लोक में जीते हुए मानवीय संवेदना जगाने वाले पात्र है। उनकी पीडा और व्यथा व्यवस्था के प्रति पाठक के मन में आक्रोश पैदा करती है किन्तु वहीं नहीं रूक जाती बल्कि उससे आगे बढकर वह पाठक के मन में पीडत-वंचित वर्ग के प्रति करूणा उत्पन्न करती है।
सभा के प्रारंभ में अंग्रेजी साहित्य विधा के प्रो. हेमेन्द्र चण्डालिया ने प्रो. आलमशाह खान के व्यक्तित्व व कृतित्व का परिचय देते हुए करर्यक्रम के उद्धेश्यों की जानकारी दी। प्रो. आलमशाह खान यादगार समिति के अध्यक्ष जाने माने शायर आबिद अदीब ने अतिथियों का स्वागत किया। राजकीय मीरा कन्या महाविद्यालय की हिन्दी विभाग की सह आचार्य डॉ. इन्दिरा जैन ने प्रो. आलमशाह खान की कहानियों ’किराये की कोख’, एक गधे की जन्म कुण्डली, सांसों का रैवड आदि पर केन्द्रित एक आलेख प्रस्तुत किया। इस अवसर पर प्रो. आलमशाह खान की बहुचर्चित कहानी परायी प्यास का सफर का वाचन सुप्रसिद्ध कहानीकार एवं खान साहब की पुत्री डॉ. तराना परवीन द्वारा किया गया। प्रसिद्ध समालोचक हिमांशु पण्ड्या ने कहा कि प्रो. आलमशाह खान समान्तर कहानी आंदोलन के प्रमुख हस्ताक्षर थे किन्तु उन्होंने इससे इतर भी अनेक कहानियां लिखी। उनकी कहानियां भाषा और सौन्दर्यबोध के स्तर पर समान्तर कहानी की सीमाओं को लांघ जाती है। दुर्भाग्य यह हुआ कि उनका नाम समान्तर कहानी आंदोलन से इस प्रकार नत्थी कर दिया गया कि उनका समग्र मूल्यांकन संभव नहीं हो पाया। प्रो. सदाशिव श्रोत्रीय ने प्रो. आलमशाह खान को एक निर्भीक लेखक और साहसी व्यक्ति बताया। वरिष्ठ गीतकार किशन दाधीच ने प्रो. आलमशाह खान के साथ अपने आत्मीय संबंधों की चर्चा की तथा उन्हें अपनी श्रद्धांजलि पेश की। डॉ इन्द्र प्रकाश श्रीमाली ने आकाशवाणी में प्रो. आलमशाह खान की कहानियों के प्रसारण की चर्चा करते हुए कहा कि उन्होने स्वयं अपने, महेन्द्र मोदी और प्रो. आलमशाह खान तीनों के स्वर में उनकी कहानियों की रिकोर्डिंग कर प्रसारित की। वरिष्ठ पत्रकार उग्रसेन राव, डॉ. श्रीकृष्ण जुगनु आदि ने भी अपने विचार प्रस्तुत किये। प्रो. आलमशाह खान यादगार समिति की ओर से दुर्गाशंकर पालीवाल ने धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन प्रो. हेमेन्द्र चण्डालिया ने किया। कार्यक्रम में डॉ. कल्पना भटनागर, डॉ. परितोष दुग्गड, डॉ. फरहत खान, डॉ. आर. के दशोरा, प्रो. मुक्ता शर्मा, डॉ. मेहजबीन सादडीवाला, डॉ. कविता पारूलकर, डॉ. श्रद्धा तिवारी आदि उपस्थित थे।