देश में मंदिरों के लिए विख्यात सिरोही जिले को देवभूमि के नाम से भी जाना व पहचाना जाता हैं उसका कारण यह है कि यहां पर जैन व सनातन धर्म से जुडे ७वीं शताब्दी से लेकर २१वी शताब्दी तक के ऐसे मंदिर व तीर्थ है जिनकी ख्याति अपले काल में देश भर में रही हैं। ७वी शताब्दी का हमीरपुरा जिसे अब मीरपुर के नाम से जाना जाता हैं, देलवाडा की शिजारी में मां सरस्वती का मंदिर, रेवदर जीरावला में भगवान पार्ष्वनाथ मंदिर, बामणवाडा में भगवान महावीर स्वामी का मंदिर सुविख्यात हैं तो अभी २१ वी शताब्दी में सिरोही जिला मुख्यालय से २२ किमी दूर पावापुरी तीर्थ-जीव मैत्रीधाम का नाम विश्व स्तर पर विख्यात है।
देवनगरी की भूमि पर भगवान महावीर के विचरण का उल्लेख प्राचीन ग्रन्थों में मिलता है। आबूरोड के निकट रेवदर सडक मार्ग पर मुंगथला में भगवान महावीर के जीवन काल में विक्रम संवत १४२६ में देवजारू द्वारा प्रतिमा भरवाने का उल्लेख वहां पर लगे शिलालेखों पर मिलता है। उनके जीवन काल में यह मंदिर व प्रतिमा भरवाने से इसे ’’जीवित महावीर स्वामी तीर्थ‘‘ के रूप् में जाना जाता है। इसका भी उल्लेख ’’अश्ठोतरी तीर्थमाला‘‘ में विविध तीर्थ कल्प पुस्तक में आचार्य जिनप्रभसूरीजी ने किया। यह गांव वि. सं. ८९५ से भी प्राचीन हैं। यहां पर विक्रम संवत १२१६, १३८९, १४२६ एवं १४४२ कें भी अनेक शिलालेख मिलते है जिनमें इस तीर्थ का उल्लेख है। यहां भगवान की खडी प्रतिमा है। भगवान महावीर की तपस्या में लीन खडी मूर्ति बहुत ही कम जगह पर हैं।
इसके अलावा भगवान महावीर का एक ओर ’’जीवित स्वामी मंदिर‘‘ सरूपगंज के पास दियाणा में हैं। इस प्रतिमा का उल्लेख विक्रम संवत १४३६ में रचित श्री पार्ष्वनाथ चरित्र में भी उल्लेख है। दियाणा तीर्थ स्थित जिनालय की आतंरिक शिल्पकला, प्रभु की प्रतिमा एवं शिल्पकला युक्त परिकर से यहां की प्राचीनता का एहसास होता है। यह मंदिर अरावली की उत्तुंग श्रृखंला के मध्य मनमोहक लगता है।
प्रभु भ्रगवान महावीर की यह प्रतिमा यह आव्हान करती है कि धर्म बुढापे में करने की वस्तु नही अपितु युवा अवस्था में किया गया धर्म ही सार्थक है। पहाडियों के बीच जंगल में स्थित यह अति प्राचीन तीर्थ अत्यंत मनमोहक एवं चमत्कारी हैं। इस तीर्थ की महिमा में एक श्लोक सभी जगह ग्रन्थों में लिखा गया है ओर गीतो में भी गाया जाता है ’’नाणा-दियाणा-नांदिया, जीवित स्वामी वादिया‘‘ अर्थात नाणा, दियाणा व नादिया तीर्थ उनके जीवन काल में बनवाये गये हैं।
इसके पास में भी बामणवाडा तीर्थ हैं जहां परमात्मा महावीर की प्रतिमा बालू एवं गाय के दुध से निर्मित होकर उस पर पक्के मोतियों का विलेपन किया गया हैं। सिरोही के महाराजा शिवसिंह ने बाधा वीरवाडा गांव बामणवाडा मंदिर को अर्पण किया था ३ अरठ भी मंदिर को भेट दिए थे। मंदिर दुर्ग रूपी विशाल परकोटे से घिरा हैं मंदिर की पृष्ठभूमि की पहाडी सम्मेत शिखर तीर्थ की रचना एवं भगवान महावीर के कानो में ग्वालों की ओर से कीले ठोक कर उनको उपसर्ग देने की जगह आज भी उनके ’’क्षमा‘‘ के सिद्धांत को याद दिलाती है।
इसके आगे ५२ जिनालय का प्राचीन नांदिया तीर्थ भी हैं जहां पर भगवान के चरण एक पहाडी पर आज भी अंकित है जहां पर सर्पदंश दिखाई दे रहा हैं। इस तीर्थ का उल्लेख वहां पर लगे शिलालेख में भी है। यह शिलालेख वि. सं. ११३० वेशाख सुदी १३ का है। इसका जार्णोद्वार वि. सं. १२०१ भादरवा सुदि एकम को होने का भी शिलालेख वहां मौजूद हैं। वहां पर वि. सं. १४२९, १४८७, १४९३ व १५२१ का उल्लेख वहां लगी देहरियो में भी हैं।
एक अन्य तीर्थ जो बामणवाडा के आगे पाली जिले के बेडा के निकट ’’नाणा‘‘ मे भी जीवित स्वामी की प्रतिमा प्रतिष्ठीत हैं जिनकी प्रतिष्ठा विक्रम संवत १५०५ माघ सुदी नम शनिवार को आचार्य श्री शांतिसूरी जी म. सा. के शुभ हस्ते हुई। यह प्रतिमा बामणवाढा से भेजी जाने का उल्लेख है।
परिकर की शिल्पकला भी अति सुंदर है। यहां की प्रतिमा अति विशाल एवं मनमोहक है ऐसी एक प्रतिमा रेवदर-मंडार सडक मार्ग पर स्थित अति प्राचीन तीर्थ ’’वरमाण‘‘ में भी विराजित हैं जिसका जीर्णोद्धार अभी कुछ वर्श पूर्व ही हुआ है।
इस तरह सिरोही जिले मे भगवान महावीर का विचरण होने का उल्लेख मिलता है ओर यही कारण है कि जिले की चारों दिशाओं में जैन तीर्थकरो के अनेक चमत्कारी प्राचीन मंदिर व प्रतिमाए स्थापित हैं जिसके दर्शन के लिए देश भर से जैन तीर्थ यात्रियों का आवागमन बना रहता है।