“यज्ञ करने से दुःखों का निवारण होता हैः पं. वेदवसु शास्त्री”

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Published on : 17 Apr, 19 05:04

-मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून।

“यज्ञ करने से दुःखों का निवारण होता हैः पं. वेदवसु शास्त्री”

आर्यसमाज सुभाषनगर देहरादून के दो दिवसीय वार्षिकोत्सव के समापन अवसर दिनांक १४-४-२०१९ को प्रवचन करते हुए देहरादून के आर्य पुरोहित पं0 वेदवसु शास्त्री ने कहा कि महर्षि दयानन्द जी ने मर्यादा पुरुषोत्तम राम को आप्त पुरुष कहा है। उन्होंने कहा कि आप्त पुरुष उसे कहते हैं जो ऋषि या ऋषि कोटि का पुरुष होता है। ऋषियों के सभी विचार वेदानुकूल एवं पवित्र होते हैं। पंडित जी ने कहा कि हम राम को मानते हैं परन्तु राम की नहीं मानते। हमें अपने तपस्वी पूर्वजों के चरित्र को अपने जीवन में धारण करना चाहिये। पण्डित जी द्वारा राम को आप्त पुरुष कहे जाने पर हमारा विचार है कि महर्षि दयानन्द जी श्री कृष्ण जी को आप्त पुरुष कहा है। इस आधार पर हम राम को भी आप्त पुरुष कह सकते हैं। हमें लगता है कि महर्षि ने अपने साहित्य में कहीं पर राम को आप्त कहा नहीं कहा है। राम आप्त पुरुष थे इसमें किसी को सन्देह नहीं हो सकता। पण्डित वेदवसु जी ने कहा कि अंग्रेजों तथा मुसलमानों आदि ने वैदिक धर्म एवं संस्कृति को मिटाने में अपना समय लगाया। ऋषि दयानन्द ने उसी वैदिक धर्म एवं संस्कृति को पुनर्जीवित किया और उसे सभी मतों व संस्कृतियों से सर्वश्रेष्ठ सिद्ध किया। ऋषि दयानन्द ने सभी विधर्मियों को वैदिक मान्यताओं की सत्यता पर शास्त्रार्थ की चुनौती देकर वैदिक धर्म और संस्कृति को सर्वश्रेष्ठ सिद्ध किया है। यदि महर्षि दयानन्द न आते तो हम राम व कृष्ण जी आदि महापुरुषों के गौरव एवं महिमामय जीवन चरितों को न जान पाते।

 

                पण्डित वेदवसु शास्त्री जी ने कहा कि यदि हम चाहें और पुरुषार्थ करें तो वर्तमान कलियुग में भी सतयुग जैसा पवित्र व सात्विक वातावरण बनाकर वैदिक विचारों के अनुरूप देश, समाज व विश्व को बना सकते हैं। उन्होंने आगे कहा कि यदि संस्कार विधि के अनुसार सन्तान का जन्म हो और उन्हें वेद एवं ऋषियों के संस्कार दिये जायें तो आज भी राम जैसे महापुरुष का जन्म हो सकता है। पडित वेदवसु जी ने कहा कि ईश्वर का स्वरूप क्लेश, कर्म, कर्मों के फल आदि से परे है। जो इनसे पृथक हो उसे ईश्वर कहते हैं। विद्वान आचार्य पं0 वेदवसु जी ने राम के जीवन में आयी विपत्तियों की चर्चा की। उन्होंने कहा कि राम ने पिता की आज्ञा पालन करने के लिये 14 वर्ष तक राज परिवार का सुखमय जीवन त्याग कर वनों में कष्टों व त्याग का जीवन व्यतीत किया। वन जाने के कुछ समय बाद अयोध्या में पिता दशरथ का देहावसान हो गया। इससे राम को दारुण दुःख हुआ। इस दुःख की अवस्था में सीता जी ने राम को कहा कि हमें इस दुःख के निवारण के लिये अग्निहोत्र यज्ञ करना चाहिये। राम, लक्ष्मण एवं सीता जी ने यज्ञ का अनुष्ठान किया जिससे वह दुःख व शोक से मुक्त हुए।

 

                पंडित जी ने बताया कि मनुष्य के जन्म व शरीर धारण में 16 प्रकार के दोष होते हैं। परमेश्वर की सत्ता है और परमेश्वर एक है। परमेश्वर के समान व उससे उच्च अन्य कोई सत्ता नहीं है। परमेश्वर ने ही इस सृष्टि की उत्पत्ति की है। वही इसका पालन करता है और वही सृष्टि की अवधि पूरी होने पर प्रलय करता है। पंडित जी ने कहा कि राम को महापुरुष के रूप में जानें, समझें एवं उसके अनुरुप आचरण करें। परिवारों में सभी सदस्यों में परस्पर स्नेह एवं प्रेम का बन्धन होना चाहिये। किसी भी परिस्थिति में उन्हें परस्पर लड़ना नहीं चाहिये। इसी के साथ पं0 वेदवसु जी का व्याख्यान समाप्त हुआ। ओ३म् शम्।

-मनमोहन कुमार आर्य

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