“मन को रोकने व नियंत्रित करने से लाभ होता है”

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Published on : 17 Apr, 19 05:04

-मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून।

“मन को रोकने व नियंत्रित करने से लाभ होता है”

आर्यसमाज सुभाषनगर, देहरादून के 14 अप्रैल, 2019 को सम्पन्न वार्षिकोत्सव में देहरादून के डी0ए0वी0 पी0जी0 महाविद्यालय की संस्कृत विभाग की अध्यक्षा डॉ0 सुखदा सोलंकी जी का सम्बोधन हुआ। आगामी पंक्तियों में हम उनके द्वारा कहे विचारों को प्रस्तुत कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि जिन माता-पिता के घरों में पुत्री का जन्म होता है उन्हें उसके जन्म पर प्रसन्नता होती है। कुछ ही क्षणों बाद उनमें उस पुत्री के भविष्य का विचार कर चिन्ता व उद्विग्नता का भाव आ जाता है। तर्क वितर्क शुरु होता है। जब वह पुत्री युवा होगी तब मैं उसे किस वर को दूंगा, वह सुखी रहेगी भी या नहीं? पुत्री के जन्म होने पर प्रायः सभी माता-पिताओं को इस प्रकार की शंकायें होती हैं। जिन माता-पिताओं के यहां पुत्र का जन्म होता है वह भी प्रसन्न होते हैं। मान्यता है कि पुत्र माता-पिता को नरक से दूर करता है। विदुषी आचार्या डॉ0 सुखदा सोलंकी ने कहा कि पुत्र शब्द में पुत्री अर्थ भी समाहित है। विदुषी वक्ता ने आगे कहा कि ऋषि दयानन्द की मान्यता है कि यदि बेटी को पढ़ायेंगे तो इससे दो घर पढ़ जायेंगे वा शिक्षित हो जायेंगे। पुत्री दो घरों की तारनहार होती है। पुत्री शिक्षित होती है तो उसकी सन्तति भी अच्छी होती है। शिक्षित पत्नी अपने पति के घर व परिवार को भी अच्छी तरह से संभालती है।

 

                डॉ0 सुखदा सोलंकी जी ने कहा कि मनु महाराज के अनुसार जहां नारियों का सम्मान होता है वहां देवता निवास करते हैं। पाणिग्रहण संस्कार में वर व वधु दोनों के हृदय दो नदियों के जल की तरह आपस में मिल जाते हैं। उन्होंने कहा कि संसार में दो अलग अलग नदियों के जल को किसी भी प्रक्रिया से पृथक नहीं किया जा सकता। इसी प्रकार वैदिक नारी व उसके पति को जिनके हुदय जल की तरह से मिले हुए होते हैं, संसार में कोई पृथक नहीं कर सकता। विदुषी वक्ता ने कहा कि विडम्बना है कि आज की नारी व उसका परिवार दूरदर्शन व टीवी पर गलत धारावाहिक नाटकों को देखते हैं और कामना अपने घरों में राम व कृष्ण के समान सन्तानों की करते हैं। आचार्या जी ने कहा कि बच्चों को राम व कृष्ण बनाने के लिये उनके माता व पिता को अपने बच्चों के मन को परिमार्जित करना होता है। बहिन सुखदा जी ने आज की प्रतिकूल सामाजिक स्थिति का विस्तार से वर्णन किया। उन्होंने समाज में होने वाली रात्रि पार्टियों व लोगों के भौतिकतावादी जीवन का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि समाज में ऐसी बातें देख व सुन कर दुःख होता है। हम अपने बच्चों को अच्छे संस्कार देंगे तभी सन्तानें अच्छी बनेंगी। इसी क्रम में बहिन जी ने मुझ मनमोहन आर्य का उल्लेख कर उनके कार्यों का परिचय दिया।

 

                आचार्या डॉ0 सुखदा सोलंकी जी ने श्रोताओं को पूछा कि हम आज रामनवमी क्यों मना रहे हैं? उन्होंने कहा कि लोगों का मन हुड़दंगी स्वभाव का हो गया है। उन्होंने राम चन्द्र जी के राज्याभिषेक एवं वनवास की घटनाओं का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि इस अवसर पर राम की जो मनोदशा थी उसे रामायण पढ़कर तथा वेद एवं दर्शन आदि का अध्ययन कर समझा जा सकता है। विदुषी वक्ता ने वैदिक सन्ध्या का उल्लेख कर कहा कि अधिकांश लोगों का मन संघ्या में लगता नहीं है। उन्होंने उदाहरण दिया कि लोहे पर भी रस्सी के घर्षण से चिन्ह पड़ जाते हैं। यदि हम नित्य प्रति अपने मन को ईश्वर चिन्तन, प्राणायाम और स्वाध्याय आदि साधनों से रोकने का प्रयत्न करेंगे तो हमें सफलता अवश्य मिलेगी। बहिन जी ने मन की वृत्तियों के कुछ उदाहरण भी दिये।

 

                आचार्या डॉ0 सुखदा जी ने कहा कि मन को रोकने वा नियंत्रित करने से हमें लाभ होगा। मन को अभ्यास व वैराग्य की भावना करके बुरे कार्मों में प्रवृत्त होने से रोका जा सकता है। उन्होंने किसी ग्रन्थ से एक उदाहरण देकर बताया कि वर्षों पूर्व एक बार एक यूनानी विद्वान भारत आये। वह भारत के लोगों से मिले। उन्होंने अपने संस्मरणों में लिखा है कि वह जितने लोगों से मिले उनमें से कोई झूठ नहीं बोलता था। एक अन्य विदेशी विद्वान मैगस्थनीज पटना आकर रहे। उन्होंने भी लिखा है कि भारत के लोग झूठा व्यवहार नहीं करते। बड़े बड़े अभियोग भारत के लोग अपनी पंचायतों के माध्यम से आसानी से सुलझा लेते हैं। यहां के गवाह झूठ नहीं बोलते हैं। सत्य व असत्य का निर्णय आसानी से हो जाता है।

 

                बहिन डॉ0 सुखदा सोलंकी जी ने लाहौर के एक मुकदमें का उल्लेख कर बताया कि इस फौजदारी के मुकदमें में कोई गवाह न होने के कारण जज महोदय को निर्णय करने में कठिनाई आ रही थी। वह किंकर्तव्यमूढ़ थे कि क्या फैसला लें? अपराधी को छोड़े या दण्डित करें? उन्हें एक बात सूझी। वह घटना वाले स्थान पर गये और वहां लोगों से पता किया कि क्या यहां कोई आर्यसमाजी है? उन्होंने आरोपी से भी पूछा कि क्या वह अपने आस पास का कोई आर्यसमाजी व्यक्ति उनके पास ला सकता है? उस व्यक्ति ने वहां के एक आर्यसमाजी व्यक्ति को कोर्ट में पेश किया। जज महोदय ने उससे पूछा कि क्या आप इस व्यक्ति को जानते हो? उसने कहा कि हां, मैं इसे व इसके परिवार को जानता हूं। उस आर्यसमाजी व्यक्ति ने जज महोदय से पूछा कि आपने मुझे यहां क्यों बुलाया है? मेरा इस घटना से क्या सम्बन्ध है? जज महोदय ने उस आर्यसमाजी को कहा कि मैंने सुना है कि आर्यसमाजी झूठ नहीं बोलते हैं। आप इस व्यक्ति के बारे में जो बतायेंगे उसे मैं स्वीकार करुगां। मुझे निर्णय करने में आसानी होगी। जज महोदय ने उस आर्यसमाजी की बातों को, जो उसने कही, स्वीकार कर उसी के अनुसार निर्णय किया ओर वह निर्णय उचित निर्णय था ऐसा सुनने व पढ़ने को मिलता है।

 

                डॉ0 सुखदा सोलंकी जी ने कहा कि आज रामनवमी पर आप यहां उपस्थित सभी लोग संकल्प लें कि हम सब कभी झूठ नहीं बोलेंगे। बहिन जी ने एक और उदाहरण सुनाया। उन्होंने कहा कि मुसलमान सुलतान शाहरुख ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि भारत के बाजारों में समान खुला पड़ा रहता था। किसी के समान की चोरी नहीं होती थी। उन्होंने किसी से इसका कारण पूछा? इसका उन्हें उत्तर मिला ‘ठग और चोर यहां नहीं, धर्म का सबको है ध्यान। देखे न देखे कोई पर देखता है भगवान।।’ बहिन जी ने कहा ईश्वर सर्वव्यापक और सर्वान्तर्यामी होने से सबको हर पल, हर क्षण, रात व दिन देखता है और न्याय करता है परन्तु मतिमन्द लोग ईश्वर से बेखौफ शुभ व अशुभ कर्म करते रहते हैं। बहिन जी ने लोगों से कहा कि हम राम व कृष्ण जी आदि के चित्रों व मूर्तियों की पूजा न करके उनके चरित्र की पूजा करें तो इससे अधिक लाभ होगा। हम वास्तविक राम, कृष्ण व दयानन्द बनें। कार्यक्रम का संचालन कर रहे आर्यसमाज के पुरोहित पं. रणजीत शास्त्री जी ने बहिन जी के इस व्याख्यान की प्रशंसा की। ओ३म् शम्।

-मनमोहन कुमार आर्य

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