उदयपुर| गीतांजली मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल द्वारा ’एंटी माइक्रोबियल प्रतिरोध के संदर्भ में स्वास्थ्य संबंधी संक्रमण के प्रति जागरुकता‘ विशयक सीएमई आयोजित की गई। इसमें वक्ताओं ने स्वास्थ्य संबंधी संक्रमण पर रोकथाम एवं सुधार पर चर्चा की। उन्होंने रोगी के अस्पताल में रहने के समय को कम करने एवं समग्र सुधार पर जागरुकता दी। इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य एंटी बायोटिक्स के उचित उपयोग पर केंदि्रत था। साथ ही वैश्विक चुनौती रोगियों में बढते एंटी माइक्रोबियल प्रतिरोध को कम एवं नियंत्रित करने पर विस्तार में चर्चा की गई।
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता नियोनेटोलोजिस्ट डॉ धीरज दिवाकर ने ’एंटी माइक्रोबियल स्टीवर्डशिप‘ पर व्याख्यान प्रस्तुत करते हुए चिंता व्यक्त की और कहा कि हर रोगी अलग है, उसकी बीमारी अलग है, ऐसे में सही रोगी के लिए सही दवा का चयन करना और सही खुराक के साथ सही माध्यम को अपनाने की आवश्यकता है। चिकित्सा क्षेत्र में इस विधि अपनाने के तरीके को स्टीवर्डशिप कहते है। उन्होंने निर्धारित निर्देषों के अनुसार एंटी बायोटिक्स के उपयोग के प्रति प्रतिबद्धता पर बातचीत की। उन्होंने यह भी बताया कि इंफेक्षन कंट्रोल की ग्लोबल एजेन्सी सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल (सीडीसी) के आंकडों के मुताबिक यदि एंटी माइक्रोबियल प्रतिरोध की रोकथाम के लिए उचित कदम नहीं उठाए गए तो साल २०५० तक साल में करीब १० लाख लोगों की मौत केवल इंफेक्षन के कारण से होगी जो कैंसर से भी ज्यादा है।
माइक्रोबायोलोजिस्ट एवं इंफेक्षन कंट्रोल ऑफिसर डॉ उपासना भुम्बला ने संक्रमण पर रोकथाम एवं नियंत्रण पर जागरुकता दी। जनरल फिजिषियन डॉ नवगीत माथुर ने रोगियों में एंटी बायोटिक्स के प्रतिरोध पर बातचीत की। साथ ही आईसीयू एवं ओटी स्टाफ को उचित हैंड हाईजीन पर जागरुक किया।
इस कार्यक्रम में गीतांजली मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ एफएस मेहता, गीतांजली मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल के सीईओ प्रतीम तम्बोली एवं चिकित्सा अधीक्षक डॉ नरेंद्र मेागरा आदि मौजूद थे। डॉ मेहता ने अपने वकतव्य में कहा कि चिकित्सकों को उनकी क्रियाविधि में क्वालिटी एवं संक्रमण पर नियंत्रण करने की जरुरत है। प्रतीम तम्बोली ने इस संदर्भ में प्रबंधन की जिम्मेदारियों पर बात की। इस कार्यक्रम में १०० से अधिक हेल्थ केयर प्रोफेश्नल्स ने भाग लिया था।