उदयपुर नगर में रियासतकालीन बडी होली

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Published on : 17 Mar, 19 06:03

डॉ. गिरीश नाथ माथुर प्रो. इतिहास

उदयपुर नगर में रियासतकालीन बडी होली

उदयपुर नगर मे होली के त्यौहार मनाने का अपना इतिहास रहा है। यह त्यौहार प्रतिवर्ष फाल्गुन शुक्ल पक्ष १४ को मनाया जाता था।

नगर में सगरवंशी माली समाज द्वारा ‘होली‘ मनाने की विशेष परम्परा रही है। माली समाज के अध्यक्ष नाथूलाल माली के अनुसार इस समाज के लोग उदयपुर नगर की स्थापना करने वाले महाराणा उदयसिंह (१५३७-७२ ई.) के साथ ही यहां आये थे। उस समय नगर क्षेत्र में भोई समाज व माली समाज के पास ५२ कुएं व ३५ वाडया थी इस समाज के लोगों को महाराणा द्वारा अधिकार दिया गया था कि ये उस क्षेत्र से लकडी काट सकते थे।

माली समाज के लोग होली के दो माह पूर्व ही उस क्षेत्र से दो बबूल काट कर सूखने के लिए छोड देते थे तथा एक माह पूर्व अपने समाज के चौक में होली दहन स्थल पर ले आते थे। वहां एक सुथार उन दोनों बबूलों को जोडकर होली के रूप में गाड देता था। दो बबूलो को जोडने से होली का स्वरूप दुगना हो जाता था। इसी कारण इसे बडी होली कहा गया। होली का स्वरूप दुगना करने वाले सुथार को समाज की ओर से रहने के लिए मकान दिया गया। सुथार वंशज घनश्यामजी व विजयराज जी के परिवार के पास वह मकान आज भी मौजूद है।

बडी होली जलाने की परम्परा स्वयं महाराणा द्वारा हुई। महल में होली जलाने के बाद स्वयं महाराणा बडी होली जलाने के लिए पहुँचते थे। इस कारण यह परम्परा बनी कि महल में होली जलने के बाद सर्व प्रथम बडी होली जलती थी। उसके बाद नगर की अन्य स्थानों पर होली जलाई जाती थी।

बडी होली की एक विशेषता यह भी थी कि होली जलाने से पूर्व उसके चारों ओर गायों को खिलाने वाला चारा बांध दिया जाता था। होली को गोबर से बने बडुलियों की मालाएं पहनाई जाती थी। दहन के पश्चात् महिलाएं उन बडुलियों को ठण्डा कर उनसे सोलह पिण्डियों बनाती थी। जिसे गणगोर के रूप में पूजा की जाती थी। दहने के समय लिलवे अर्थात् हरे चन्ने व गेंहू की बलियां डाली जाती थी। जो फसल पकने व प्रकृति पूजा का प्रतीक माना गया।

होली दहन के बाद बडी होली चौक में ही गैर खेली जाती थी व अन्य समाज के लोग इसकी परिक्रमा करना शुभ समझते थे।

वर्तमान में वहाँ यह बताने को कोई तैयार नहीं है कि बडी होली दहन की वह अनोखी परम्परा कब बंद हो गई। शायद घनी बस्ती हो जाने के कारण होली का स्वरूप छोटा करना पडा होगा।

यह जानकारी अवश्य बुजुर्ग लोग देते हैं कि बडी संख्या में महाराणा ने माली समाज के लोगों को यहा बसाया। यह लोग राजमहल व नगर के धार्मिक स्थलों पर चढायी जाने वाली माला व फूल नियमित रूप से पहचाते रहे। बडी होली क्षेत्र ‘कोली मोहल्ला‘ के नाम से प्रसिद्व हुआ।

वर्तमान में बडी होली चौक मण्डी क्षेत्र से जुडा हुआ है। होली चौक के पास ही समाज की ओर से बनाया हुआ प्राचीन चारभुजा का मंदिर स्थित है।

उदयपुर नगर के नगरीकरण के अध्ययन की दृष्टि से माली समाज को महाराणा द्वारा प्रदत्त सुविधाएँ -सम्मान व उनके परिवार को बसाने के लिए उनके द्वारा निर्मित बडी होली के दहन के लिए स्वयं पहुँचने आदि का ऐतिहासिक महत्व है।


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