“ऋषिभक्त राष्ट्रकवि श्री सारस्वत मोहन मनीषी से भेंट”

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Published on : 16 Mar, 19 04:03

-मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून।

“ऋषिभक्त राष्ट्रकवि श्री सारस्वत मोहन मनीषी से भेंट”

हमारा सौभाग्य है कि आज ऋषिभक्त राष्ट्रकवि श्री सारस्वत मोहन मनीषी जी से देहरादून निवासी हिन्दी कवि श्री वीरेन्द्र कुमार राजपूत जी के निवास पर भेंट हुई। आज दिन में श्री वीरेन्द्र राजपूत जी ने फोन पर कहा कि श्री मनीषी जी उनके निवास पर हैं। आप वहां आ जायें और भेंट कर  लें। हम फोन सुनकर कुछ समय बाद श्री राजपूत जी और श्री मनीषी जी के पास पहुंच गये। पहले परस्पर परिचय हुआ। आर्यजगत के माध्यम से मैं लगभग 40 वर्षों से श्री सारस्वत मोहन मनीषी जी से परिचित हूं। पं. क्षितीज वेदालंकार जी के आर्यजगत के सम्पादन काल में मनीषी जी की रचनायें आदि इस पत्र में प्रकाशित हुआ करते थे। तभी उनसे मेरा परिचय हुआ था। उनकी कविताओं में वैदिक विचारधारा के साथ भावों की सरलता होने के कारण उनका नाम व कुछ स्मृतियां हृदय में अभी तक अंकित हैं। यदा कदा जब कहीं उनका नाम पढ़ता, सुनता हूं वा टीवी आदि पर उनकी किसी कविता आदि का अंश सुनता हूं तो मुझे पुरानी स्मृतियां स्मरण हो आती हैं। लगभग डेढ़ घंटा तक हम बाते करते रहे। आपके 14 काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। प्रत्येक संग्रह में 150-200 से अधिक पृष्ठ हैं। स्वामी आर्यवेश जी के साथ वह कुरुक्षेत्र तथा रोहतक में पढ़े हैं। दोनों की आयु में कुछ ही वर्षों का अन्तर है। मनीषी जी इस समय 69 वर्ष पूरे कर रहे हैं। आप मूलतः हरयाणा के निवासी हैं परन्तु दिल्ली में दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य करने के कारण आपने रोहिणी सेक्टर 11 में अपना निवास बनवाया हुआ है जहां वह अपने पुत्र के साथ सपरिवार रहते हैं। उनकी एक पुत्री देहरादून के वैल्हम स्कूल में सेवारत है। उनके जामाता विश्व प्रसिद्ध ‘‘दून स्कूल” में अध्यापन करते हैं। उन्हीं से मिलने वह देहरादून आते रहते हैं। इस बार वह अपनी यात्रा में श्री राजपूत जी के निवास पर पधारे जिससे हमारी उनसे भेंट हो सकी। मनीषी जी की दूसरी पुत्री विदेश में रहती हैं। उसका आग्रह है कि वह उनके पास जाकर रहें। देहरादून की पुत्री भी चाहती हैं कि उनके पिता उनके पास देहरादून के स्वच्छ वायुमण्डल में रहें परन्तु दिल्ली की अनेक विशेषताओं के कारण वह दिल्ली में ही रहना पसन्द करते हैं। यह भी बता दें कि श्री वीरेन्द्र राजपूत जी एक प्रसिद्ध हिन्दी कवि हैं। आपने पं0 गुरुदत्त विद्यार्थी, वीर बन्दा बैरागी आदि इतिहास के महान पुरुषों सहित वेदों पर अनेक काव्य ग्रन्थों की रचना की है। आपका प्रमुख कार्य वेदों का काव्यानुवाद है। यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद का काव्यानुवाद पूर्ण होकर प्रकाशित हो चुका है। सम्प्रति वह ऋग्वेद का काव्यानुवाद कर रहे हैं। यद्यपि उनकी आयु 75 वर्ष के लगभग है तथापि वह तेजी से इस कार्य को पूर्ण करने में लगे हैं और आशा है कि जीवन की इस आयु जब मनुष्य का ज्ञान व अनुभव चरम पर होते हैं, वह इस कार्य को अत्यन्त उत्तमता से अवश्य पूर्ण करेंगे। इस बात का विश्वास उनको है।

 

                श्री सारस्वत मोहन मनीषी जी राष्ट्रकवि है और ऋषि दयानन्द  के निष्ठाचवान भक्त है। आर्यसमाज में पसन्द किया जाने वाला महत्वपूर्ण भजन ‘हमको पता न था सूरज बचकानी भाषा बोलेगा, न जाने कब लाल किला मर्दानी भाषा बोलेगा?’ मनीषी जी का ही लिखा हुआ है। हमने इस भजन को अनेक आर्य भजनोपदेशकों से सुना है जिसमें स्वामी रामदेव जी, बहिन अंजलि आर्या, पं0 सत्यपाल सरल जी आदि के नाम सम्मिलित हैं। आपकी एक सर्वोत्तम कविता है ‘सदा अहिंसा सर्वोत्तम मन की कस्तूरी है पर दुष्ट नहीं माने तो हिंसा बहुत जरूरी है’। हमें आज आपकी इस कविता को सुनने का अवसर मिला। वर्षों पूर्व भारत के राजनेताओं के सम्मुख भी आप इस कविता का पाठ कर चुके हैं पर तब आपको आश्चर्य हुआ था जब उस कवि सम्मेलन के समाचारों में से इस कविता और मनीषी जी के चित्र को पृथक कर प्रचारित किया गया था। आपने अनेक कवि सम्मेलनों की अध्यक्षता की हैं। पिछले दिनों हरयाणा में सम्पन्न एक कवि सम्मेलन की अध्यक्षता भी आपने की है। यह कवि सम्मेलन रात्रि 3 बजे तक चला। पिछले सप्ताह दिल्ली के मालवीय-नगर में दक्षिणी दिल्ली वेद प्रचार मण्डल की ओर से आयोजित वेद समारोह में कवि सम्मेलन भी सम्पन्न किया गया। इस कवि सम्मेलन की अध्यक्षता आपने ही की। कविता की सभी विधाओं पर आपने लिखा है। आप इतिहास के एक विलक्षण आचार्य चाणक्य के जीवन पर वृहद काव्य की रचना कर रहे हैं जिसके लगभग 450 पृष्ठ लिखे जा चुके हैं। आने वाले समय में यह महत्वपूर्ण काव्य रचना पाठकों तक पहुंचेगी। हम समझते हैं कि जिस प्रकार मनुष्य के प्रत्येक कर्म का फल परमात्मा देते हैं उसी प्रकार से मनुष्य के इस प्रकार के शुभ कर्मों का प्रभाव भी देश व समाज पर पड़ता है और इससे हमारे धर्म और संस्कृति की जड़े मजबूत होती हैं। इस दृष्टि से श्री मनीषी जी का काम अतीव महत्वपूर्ण हैं।

 

                श्री सारस्वत मोहन मनीषी जी ने अबोहर के एक विद्यालय में अध्यापन का कार्य किया है। आर्यसमाज के एक अन्य विद्वान प्रा0 राजेन्द्र जिज्ञासु जी भी अबोहर में रहते हैं। उन दिनों भी आप अबोहर में रहते हुए एक अन्य विद्यालय में अध्यापन कराते थे। दोनों में परस्पर मित्रता थी। जिन दिनों श्री मनीषी जी पंजाब में रहते थे तब वहां आतंकवाद जोरों पर था। उनकी देशभक्ति से पूर्ण कविताओं के कारण आतंकवादियों ने दो बार इन पर प्राणघातक हमला किया था। तब दोनों बार ईश्वर ने चमत्करिक रूप से आपकी प्राणरक्षा की थी। इन दोनों घटनाओं में यह कहावत चरितार्थ हुई थी ‘जाको राखे साईंया मान सके न कोय’। श्री मनीषी जी इस घटना का उल्लेख कर भावुक हो जाते हैं। आज भी उनमें राष्ट्रभक्ति हर क्षण हिलोरे लेती है। वह बतातें हैं कि कविता के क्षेत्र में वह जो कार्य कर रहे हैं वह एक प्रकार से ईश्वर उनसे करा रहा है। शायद इसी कारण परमात्मा ने उनके प्राणों की रक्षा की थी।

 

                हमें मनीषी जी से यह भी ज्ञात हुआ कि आप दो वर्षों तक आर्यसन्देश, दिल्ली साप्ताहिक पत्र के सम्पादक रहे हैं। हम आशा करते हैं कि अब हमारा सम्पर्क श्रद्धेय श्री सारस्वत मोहन मनीषी जी से बना रहेगा और हम उनसे लाभान्वित होते रहेंगे। ओ३म् शम्।

-मनमोहन कुमार आर्य

पताः 196 चुक्खूवाला-2

देहरादून-248001

फोनः09412985121


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