“प्रसिद्ध वैदिक गुरुकुल निगम-नीडम् वेदगुरुकुलम्, तेलंगाना”

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Published on : 13 Mar, 19 08:03

-मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून।

“प्रसिद्ध वैदिक गुरुकुल निगम-नीडम् वेदगुरुकुलम्, तेलंगाना”

गुरुकुल निगमनीडम् वेदगुरुकुलम् (सांगोपांग वेदमहाविद्यालय), तेलंगाना आर्यसमाज की विचारधारा का आदर्श गुरुकुल है। यह गुरुकुल महर्षि दयानन्द मार्ग, ग्राम पिडिचेड़, तहसील गज्वेल जिला सिद्धिपेट, राज्य तेलगांना पिनकोड 502278 पते पर स्थित है। गुरुकुल से सम्पर्क करने के लिये मोबाइल नं0 9440721958 व ईमेल nigamaneedam@gmail.com पर सम्पर्क कर सकते हैं। इस गुरुकुल की स्थापना आचार्य उदयन मीमांसक जी ने दिनांक 3 अप्रैल सन् 2005 को की है। आचार्य उदयन मीमांसक जी  तेलंगाणा निवासी है। आपका जन्म 16 जुलाई सन् 1970 को माता श्रीमती स्वराज्य लक्ष्मी जी और पिता श्री लक्ष्मी नारायण जी से जनपद करिंनगर के भार्गवपुर (हुस्नाबाद) ग्राम में एक सामान्य शैव परिवार में हुआ था। आपने मथुरा में आचार्य स्वदेश जी, राजस्थान के तिलोरा में कीर्तिशेष आचार्य वेदपाल सुनीथ जी (काशिका पर्यन्त) एवं बहालगढ़-हरयाणा में रामलाल कपूर ट्रस्ट के अन्तर्गत संचालित गुरुकुल में भारत के राष्ट्रपति जी से सम्मानित कीर्तिशेष आचार्य विजयपाल जी से अध्ययन किया है। सन् 2001 में आपने ‘वाचस्पति’ एवं सन् 2003 में ‘मीमांसक’ की उपाधि प्राप्त की है। आप आचार्य वेदव्रत मीमांसक जी (स्वामी ब्रह्मानन्द जी) की प्रेरणा से संस्कृत एवं वैदिक धर्म के अध्ययन में प्रवृत्त हुए थे। गुरुकुल निगम-नीडम् की स्थापना आपका एक प्रशंसनीय महत्कार्य है। हम अनुभव करते हैं कि गुरुकुल की स्थापना आपका ऋषि दयानन्द एवं अपने सभी आचार्यों के ऋण को उतारने का श्रद्धांजलि-स्वरूप एक अत्यन्त पवित्र कार्य है। आप तन, मन व धन से इसका पोषण कर रहे हैं। अध्ययन पूरा करने के बाद स्वात्मप्रेरणा से ही आपने निगम-नीडम् नामक एक भव्य एवं अध्ययन-अध्यापन में उत्तम आदर्श गुरुकुल की स्थापना की है। आपका स्वभाव पढ़ने व पढ़ाने सहित धार्मिक एवं साहित्यिक विषयों का अनुसंधान कर लेखन कार्य करना है।

 

                गुरुकुल का प्रबन्ध आपके द्वारा स्थापित व संचालित एक न्यास के द्वारा किया जाता है। गुरुकुल पूर्णरुपेण गतिशील एवं  सक्रिय है। अध्ययन की पद्धति आर्ष शिक्षा व अष्टाध्यायी-महाभाष्य प्रणाली है।  वर्तमान में गुरुकुल में कुल 30 ब्रह्मचारी अध्ययन कर रहे हैं। न्यायदर्शन, महाभाष्य, काशिका, प्रथमावृत्ति व अष्टाध्यायी आदि में क्रमशः 6, 4, 2, 2 एवं 16 ब्रह्मचारी अध्ययन कर रहे हैं। गुरुकुल अपनी 3 एकड़ भूमि पर स्थित है। यहां निम्न भवन बने हुए हैं:

 

1-  यज्ञशाला,

2-  ध्यानशाला,

3-  छात्रावास,

4-  आचार्यकक्ष,

5-  कार्यालय,

6-  गोशाला,

7-  पुस्तकालय,

8-  पाकशाला,

9-  भोजनालय,

10- अतिथिशाला एवं

11- स्नानागार आदि।

 

                गुरुकुल में अध्यापन कराने के साथ आचार्य जी लेखन एवं अनुसंधान कार्य भी करते हैं। उनका अध्ययन व चिन्तन पुस्तक लेखन का रूप लेता भी है। इन ग्रन्थों का प्रकाशन वैदिक सिद्धान्तों व मान्यताओं के प्रचार लिए किया जाता है। गुरुकुल के पास अपनी आय के निश्चित नियमित साधन नहीं हैं। आर्यजनों, वेदप्रेमियों एवं स्थानीय जनता से दान आदि प्राप्त कर यह गुरुकल संचालित हो रहा है। गुरुकुल को गोशाला, पाकशाला एवं भोजनशाला को व्यवस्थित रूप से चलानें के लिये धमप्रेमी बन्धुओं से आर्थिक सहयोग की आवश्यकता है।

 

                आचार्य जी के गुरुकुल विषयक निम्न सुझाव भी हैं:

 

1-  आर्ष पाठ्य-प्रणाली पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिये।

2-  अधिक से अधिक वैदिक विद्वानों के निर्माण पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिये।

3-  वैदिक सिद्धान्त विषयक साहित्य के प्रचार व प्रसार हेतु पुरुषार्थ किया जाना चाहिये।

4-  अग्निहोत्र-यज्ञ एवं संस्कारों के प्रचलन व प्रचार के लिये विशेष प्रयत्न करना आवश्यक है।

 

                गुरुकुल ने अपने एक पत्रक में अपने 11 उद्देश्य दिये हैं। हम यहां प्रथम पांच उद्देश्यों को प्रस्तुत कर रहे हैं।

 

1-  सम्पूर्ण वैदिक वांग्मय का अध्ययन-अध्यापन एवं अनुसंधान।

2-  वैदिक विद्वानों का निर्माण।

3-  वैदिक धर्म के प्रचारकों तथा पुरोहितों का निर्माण।

4-  वैदिक संस्कृति और सभ्यता की रक्षा।

5-  वैदिक वांग्मय एवं वेदानुकूल प्रमुख ग्रन्थों का प्रकाशन।

6-  वैदिक आश्रम-धर्म की रक्षा हेतु वानप्रस्थ और संन्यास आश्रम की स्थापना आदि।

 

                आचार्य उदयन मीमांसक जी ने संस्कृत, हिन्दी एवं तेलगू भाषा में 12 ग्रन्थों का निर्माण भी किया है जो संस्कृत व्याकरण सहित विविध विषयों से सम्बन्धित हैं। गुरुकुल ने अभी 14 वर्षों की यात्रा जी पूरी की है। अभी इस गुरुकुल वा आचार्यजी को अपने उद्देश्यों को पूरा करने के लिये लम्बी यात्रा व संघर्ष करना है। महर्षि दयानन्द जी ने अकेले कार्य आरम्भ किया था और वैदिक धर्म को विश्व का आदर्श सर्वकल्याणमय एवं प्राणीमात्र का हितकारी धर्म स्थापित करने में आंशिक सफलता को प्राप्त किया। उन्होंने जो कार्य किया वह विश्व के इतिहास में अनूठा है। आज संसार में ऐसा कोई मत नहीं है जो वैदिक धर्म के सिद्धान्तों की स्वधर्म से तुलना कर स्वयं के मत को वेद से श्रेष्ठ कह सके वा सिद्ध सके। हम आशा करते हैं कि आचार्य जी को भावी जीवन में सफलतायें प्राप्त होती रहेंगी। आर्यजनता आचार्य उदयन मीमांसक जी को यथाशक्ति सहयोग प्रदान करते रहें और उनके गुरुकुल में अवसर मिलने पर पधार कर उनका उत्साहवर्धन भी करे। ओ३म् शम्।

                -मनमोहन कुमार आर्य

पताः 196 चुक्खूवाला-2

देहरादून-248001

फोनः09412985121


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