“महाराष्ट्र में वेद प्रचार करने वाले यहाँ उत्साही ऋषिभक्त सन्तोष आर्य”

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Published on : 11 Mar, 19 07:03

-मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून।

“महाराष्ट्र में वेद प्रचार करने वाले यहाँ उत्साही ऋषिभक्त सन्तोष आर्य”

वैदिक धर्म का आरम्भ सृष्टि के आरम्भ में परमात्मा से प्राप्त वेद ज्ञान के अनुसार हुआ। वैदिक धर्म ही सनातन धर्म है। यही धर्म सृष्टि के आरम्भ से अब तक चला आ रहा है और शुद्ध वैदिक धर्म ही इस ब्रह्माण्ड के अन्य लोकों व इससे पूर्व के कल्पों में भी सभी ब्रह्माण्ड में रहा है, यह बात विश्वास के साथ कह सकते हैं। यह भी सत्य है कि महाभारत के बाद वैदिक धर्म अपने शुद्ध स्वरूप को स्थिर नहीं रख सका। ऋषि दयानन्द ने विलुप्त हो रहे वैदिक धर्म को अपने शुद्ध स्वरूप में पुनः पुनर्जीवित किया। इसे वैदिक धर्म का पुनरुद्धार भी कहा जाता है। हमारा कर्तव्य है कि हम वैदिक धर्म को यथार्थ रूप में स्वयं पालन करें तथा अन्य लोगों में भी इसका प्रचार कर उन्हें सत्य को अपनाने और असत्य को छोड़ने की प्रेरणा करें। श्री सन्तोष आर्य जी महाराष्ट्र के जालना क्षेत्र में आर्यसमाज का का काम पूर्ण उत्साह से कर रहे हैं। श्री सन्तोष जी हमारे फेसबुक मित्र भी हैं। आज इस संक्षिप्त लेख में हम उनका परिचय दे रहे हैं।

 

                श्री सन्तोष आर्य जी के पिता का नाम श्री बाबूराव जी एवं माता जी का नाम श्रीमती मण्डोदरी देवी है। यह दोनों दिवंगत हो चुके हैं। आप अपने माता-पिता की इकलौती सन्तान हैं। आप केवल आठवीं कक्षा पास ऋषि भक्त हैं परन्तु आपका उत्साह बड़े बड़ें पढ़े लिखों से कहीं अधिक है। आपने 20 बार सत्यार्थप्रकाश का अध्ययन किया है। 52 वर्षीय श्री सन्तोष आर्य जी की जन्म तिथि 28-9-1967 है। आप विगत 30 वर्षों से आर्यसमाज का काम कर रहे हैं। आपने सत्यार्थप्रकाश, संस्कार विधि सहित ऋषि का पं0 लेखराम रचित जीवनचरित एवं अनेक ग्रन्थों को पढ़ा है। देश भर में ऋषि दयानन्द से जुड़े जो प्रमुख स्थान हैं, उन सभी स्थानों पर भी आप गये हैं। आप सन् 1975 में श्री कचरुलाल भक्खड़ जी द्वारा स्थापित आर्य हिन्दी विद्यालय, जालना-महाराष्ट्र में सेवारत हैं। यह विद्यालय कक्षा 10 तक का है। विद्यालय में 400 विद्यार्थी अध्ययनरत हैं। विद्यालय को सरकार से अनुदान मिलता है। आपका वेतन तीस हजार रुपये प्रतिमाह है। यह वेतन आपको यज्ञ व संस्कार कराने के लिये मिलता है। आप इस विद्यालय की प्रबन्ध समिति के सदस्य भी हैं। आप बच्चों को धर्म शिक्षक के रूप में यज्ञ एवं गायत्री मन्त्र आदि का पाठ भी सिखाते व कराते हैं।

 

                परिवार में आपकी धर्मपत्नी एवं दो पुत्र हैं। धर्मपत्नी जी का नाम श्रीमती सुनीता आर्या है तथा बड़े पुत्र का नाम श्री सुमित आर्य है। 27 वर्षीय पुत्र विवाहित है जिनकी पत्नी का नाम श्रीमती पूजा आर्या है। आपका 3 वर्ष का एक पौत्र है जिसका नाम वेदश्री आर्य है। आपका दूसरा पुत्र अमित आर्य है जिसकी वय 21 वर्ष है। यह वाणिज्य से स्नातक परीक्षा का अध्ययन कर रहा है और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का महामंत्री है। आपने बताया है कि अब तक आपने लगभग 3000 स्त्रियों की शुद्धियां की हैं और उनके हिन्दू लड़कों से विवाह सम्पन्न कराये हैं। आप आर्य प्रतिनिधि सभा महाराष्ट्र के अन्तर्गत जालना में काम करते हैं। आप हिन्दू लड़को को विधर्मी युवतियों से विवाह करने के लिये तैयार करते हैं। अनेक बार पुलिस ने आपको परेशान किया है परन्तु आप जो भी काम करते हैं वह कानून का पालन करते हुए ही करते हैं। जो अन्तर्समुदाय के विवाह आप कराते हैं उसकी पूरी कानूनी प्रक्रिया करते हैं और सबको प्रमाणपत्र दिलाया जाता है। आपने 15 पुरुषों को भी शुद्धि के लिये प्रेरित करने में सफलता प्राप्त की है।

 

      श्री सन्तोष आर्य जालना-महाराष्ट्र में रहते हैं। आपने सन् 2005 में यहां अपना दो मंजिला निवास बनाया है जहां आप अपने पूरे परिवार के साथ रहते हैं। आर्यसमाज और सत्यार्थप्रकाश के प्रति आपका यह प्रेम और दीवानापन ही कहा जायेगा कि आपने अपने इस निवास का नाम ‘‘सत्यार्थप्रकाश निवास” रखा है। आप जालना में सत्यार्थप्रकाश का प्रचार भी करते हैं। जब भी जिलाधीश के पद या पुलिस विभाग के नये उच्च-पदाधिकारी यहां स्थानान्तरण पर आते हैं तो आप उन्हें आर्ष साहित्य प्रचार ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित सत्यार्थप्रकाश ग्रन्थ भेंट करते हैं। आप यथाशक्ति दान भी देते हैं। अमरोहा से जब डा0 अशोक आर्य जी ने सत्यार्थप्रकाश का प्रकाशन किया तो आपने उन्हें ग्यारह हजार रूपये की आर्थिक सहायता प्रदान की। आर्यसमाज के विद्वानों को भी आप सहायता प्रदान करते हैं। आप जीवन अनुकरणीय एवं धन्य है। आपने बताया कि जालना में आर्यसमाज की स्थापना सन् 1934 में हुई थी। हैदराबाद आर्य सत्याग्रह में इस समाज की महत्वपूर्ण भूमिका थी। आर्यसमाज के बड़े बड़े नेता और विद्वान इस समाज में आते रहते थे। पं0 रामचन्द्र देहलवी जैसे विद्वान भी इस समाज में आये थे। आपका कहना है कि यदि आर्यसमाज ने हैदराबाद में सत्याग्रह न किया होता और देश को सरदार पटेल जैसा नेता, उपप्रधानमंत्री और गृहमंत्री न मिला होता तो हैदराबाद रिसायत की स्थिति कश्मीर के समान होती। जब भी श्री सन्तोष आर्य जी बात करते हैं तो उनमें आत्म विश्वास एवं उत्साह का भाव झलकता है जिसमें किंचित निराशा का भाव नहीं होता। श्री सन्तोष आर्य जी ने कुछ वर्ष पूर्व हरिद्वार तथा मसूरी आदि की यात्रा भी की है। इस यात्रा में आप स्वामी रामदेव जी तथा सुप्रसिद्ध आर्य विद्वान डा0 महावीर अग्रवाल जी से मिले थे।

 

                आप गुरुकुल, चेहराली-खण्डवा से भी जुड़े हैं। हमारी इस गुरुकुल के आचार्य श्री सर्वेश शास्त्री जी से बात हुई है। आपने बताया है कि आप गुरुकुल के बहुत बड़े सहयोगी हैं। ऐसे धर्मरक्षक ऋषिभक्त आर्यसमाज के प्रेमी वैदिक धर्म बन्धु पूरे आर्यजगत की ओर से सम्मान के योग्य हैं। श्री सन्तोष आर्य जी को आर्यजगत की ओर से शुभकामनायें। ओ३म् शम्।

-मनमोहन कुमार आर्य

पताः 196 चुक्खूवाला-2

देहरादून-248001

फोनः09412985121


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