“अभावों से झूझते हुए युवा पीढ़ी में वैदिक संस्कार भर रहा है आर्ष गुरुकुल दयानन्द वाणी, मधुबनी-बिहार”

( 26827 बार पढ़ी गयी)
Published on : 10 Mar, 19 08:03

-मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून।

“अभावों से झूझते हुए युवा पीढ़ी में वैदिक संस्कार भर रहा है आर्ष गुरुकुल दयानन्द वाणी, मधुबनी-बिहार”

आर्यसमाज की वैदिक विचारधारा के अनुरूप गुरुकुलीय शिक्षा पद्धति को उत्तम मानते हुए ऋषि दयानन्द के अनुयायी देश के अनेक भागों में गुरुकुलों का संचालन कर रहे हैं। ऐसा ही एक गुरुकुल है ‘‘आर्ष गुरुकुल दयानन्द वाणी, मधुबनी (बिहार)’’। गुरुकुल का विस्तृत पता है दयानन्द बाग, निकट मध्य विद्यालय, ग्राम जरैल, पत्रालय जरैल, थाना अरेर, तहसील बेनीपट्टी, जिला मधुबनी राज्य बिहार। गुरुकुल से सम्पर्क करना चाहें तो मोबाइल न0 8809852187 पर सम्पर्क कर सकते हैं। गुरुकुल का इमेल आईडी है dayanand.jankalyanashram@gmail.com. इस गुरुकुल की स्थापना श्री सुशील कान्त मिश्र जी ने 27 मई सन् 1995 को की थी। आचार्य वेदश्रमी जी गुरुकुल के पूर्व आचार्य हैं। आचार्य श्री रामदयाल जी फरवरी 2019 तक आचार्य रहे हैं। इनका मोबाइल न0 9304908062 है। गुरुकुल का संचालन व व्यवस्था ‘दयानंद जनकल्याण आश्रम न्यास’ के द्वारा की जाती है। गुरुकुल अपने उद्देश्य की पूर्ति में सक्रिय एवं गतिशील है। वर्तमान समय में इस गुरुकुल में 12 ब्रह्मचारी अध्ययनरत हैं। गुरुकुल की भूमि पंजीकृत है और इसका क्षेत्रफल 17 कट्ठा दशधूर अर्थात् लगभग 1 बीघा है। गुरुकुल में दो भवन, एक यज्ञशाला एवं 1 गोशाला शेड है। इसी में गुरुकुल चल रहा है।

 

                गुरुकुल में गोशाला चल रही है। समय समय पर प्रशिक्षण शिविर लगते रहते हैं। गोमूत्र, गोबर आदि से दवा एवं खाद का निर्माण किया जाता है। गुरुकुल के पुस्तकालय से भी लोग लाभ उठाते हैं। अध्ययन सहित इन सभी कार्यो को करने के अतिरक्त समय-समय पर ग्राम-ग्राम जाकर वेद-प्रचार किया जाता है। निकटवर्ती जिन-जिन स्थानों पर ईसाई हिन्दुओं का धर्मान्तरण कर रहे हैं वहां जाकर वेद प्रचार कर लोगों को धर्म का यथार्थ स्वरूप व वैदिक धर्म का महत्व बताकर उन्हें पुनः वैदिक धर्म ग्रहण करने के लिये प्रेरित किया जाता है। जो लोग ईसाई नहीं बने हैं तथा जिनके बनने की सम्भावना हो सकती है, उन्हें भी वैदिक धर्म का महत्व बताया जाता है जिससे वह ईसाई बनने का अविवेकपूर्ण निर्णय न लें और विधर्मियों के किसी प्रलोभन में न फंसे। इस प्रकार से स्वबन्धुओं को जागृत किया जाता है।

 

                आचार्य रामदयाल जी ने इस गुरुकुल में अध्यापन कराया है। वह अजमेर के ऋषि उद्यान में आचार्य सत्यजित्त आर्य जी से पढ़े हैं। आप व्याकरणाचार्य, दर्शनाचार्य एवं निरुक्ताचार्य हैं। आपने जोधपुर के एक मौलाना से अरबी भाषा का अध्ययन भी किया है। आप फरवरी, 2019 में गुरुकुल से अन्यत्र चले गये हैं। वर्तमान गुरुकुल के संस्थापक श्री सुशील कान्त मिश्र जी अध्यापन करा रहे हैं। गुरुकुल के एक ब्रह्मचारी श्री अनिल जी ने जर्मनी के ओलम्पिक खेलों में कुश्ती में स्वर्णपदक भी प्राप्त किया है। यह इस गुरुकुल की सबसे बड़ी उपलब्धि कही जा सकती है। यह ब्रह्मचारी मधुबनी के ही छपराड़ी गांव के रहने वाले हैं। इनकी वर्तमान में आयु 30-35 वर्ष के मध्य बताई गयी है। गुरुकुल के ब्रह्मचारी वसुनीथ एवं गोपाल जी ने संस्कृत में एम.ए. किया है। इन्होंने नेट परीक्षा भी पास की है। ब्रह्मचारी प्रवीण ने पी0एच0डी0 की है।

 

                गुरुकुल से शिक्षित कई छात्र महाविद्यालयों में शिक्षक हैं। एक छात्र ट्रेनिंग कालेज में प्रवक्ता है।  गुरुकुल का एक ब्रह्मचारी पटना के सचिवालय और 5-6 छात्र दिल्ली में आर्यसमाज मन्दिर सहित आर्य परिवारों में यज्ञ आदि कर्मकाण्ड कराते हैं। यह लोग योग के माध्यम से आर्य सिद्धान्तों का प्रचार भी करते हैं। गुरुकुल के 2 छात्र भजनोपदेशक बन कर देश भर में जाकर प्रचार कार्य करते हैं। इनके नाम श्री सुमन कुमार झा एवं श्री शिव नारायण आर्य हैं।

 

                गुरुकुल की आय का कोई निश्चित स्रोत नहीं है। केवल चन्दे से ही सब कार्य सम्पादित किये जाते हैं। केन्द्र व राज्य सरकारों से भी गुरुकुल को किसी प्रकार का सहयोग प्राप्त नहीं है।

 

                गुरुकुल में आचार्य एवं अतिथियों हेतु निवास कक्ष नहीं हैं। गोशाला की गायों के चारों को रखने के लिये भी कक्ष नहीं हैं। आचार्य जी को दक्षिणा के रूप में दस हजार रूपये मासिक, गो सेवक को पांच हजार रूपये, एक अन्य शिक्षक को पांच हजार रुपये, भोजन बनाने वाले को पांच हजार रुपये मासिक दिया जाता है। इनकी व्यवस्था में आर्य समाज के भक्तों को नियमित सहयोग भेजने का आग्रह है। यदि सरकार गुरुकुल की सभी आवश्यकतायें पूरी कर दे, तो यह गुरुकुल के स्थायित्व एवं अध्ययन में उन्नति में काफी सहायक हो सकता है। सरकार को यह कार्य करना भी चाहिये।

 

                गुरुकुल के आचार्यों का सुझाव है कि गुरुकुल के विद्यार्थियों की परीक्षा की व्यवस्था ऐसी हो जिसकी मान्यता पूरे देश में हो। इस पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। राज्य स्तर पर भी हमारे ऐसे संगठन हों जो संस्था के सभी क्रियाकलापों की जानकारी रखें और गुरुकुलीय संस्थाओं को आवश्यक सहयोग दिलाने में सहायक हों।

 

                संस्था में फरवरी, 2019 तक आचार्य रामदयाल जी रहे हैं। अब गुरुकुल के संस्थापक श्री सुशील कान्त मिश्र जी अध्ययन करा रहे हैं। श्री योग मुनी जी प्रबन्ध समिति के प्रधान हैं। मंत्री श्री सुशील कान्त मिश्र जी हैं तथा कोषाध्यक्ष ब्रह्मचारी ज्ञाननिष्ठ है। ओ३म् शम्।

-मनमोहन कुमार आर्य

पताः 196 चुक्खूवाला-2

देहरादून-248001

फोनः09412985121

 

 

 

 


साभार :


© CopyRight Pressnote.in | A Avid Web Solutions Venture.