अपनी निजी स्वतंत्र्ता और स्वयं के फैसले लेने के लिये महिलाओं को अधिकार देना ही महिला सशक्तिकरण है। परिवार और समाज की हदों को पीछे छोडने के द्वारा फैसले, अधिकार, विचार, दिमाग आदि सभी पहलुओं से महिलाओं को अधिकार देना उन्हें स्वतंत्र् बनाने के लिये है। समाज में सभी क्षेत्रें में पुरुष और महिला दोनों को लिये बराबरी में लाना होगा । देश, समाज और परिवार के उज्जवल भविष्य के लिये महिला सशक्तिकरण बेहद जरुरी है। महिलाओं को स्वच्छ और उपयुक्त पर्यावरण की जरुरत है जिससे कि वो हर क्षेत्र् में अपना खुद का फैसला ले सकें चाहे वो स्वयं, देश, परिवार या समाज किसी के लिये भी हो।
हिन्दुस्तान जिंक द्वारा राजस्थान एवं पंतनगर में संचालित ना सिर्फ अपने सयंत्रें और खानों के विभिन्न विभागों में महिलाओं को पुरू६ाों के बराबर दर्जा है बल्कि आस पास के गांवों में संचालित की जा रही सखी परियोजना से जुडी महिलाएं समाज में कंधे से कंधा मिला कर परिवार के उत्थान के लिए कार्यरत है।
हिन्दुस्तान जिंक पिछले 10 व६ाोर् से अधिक समय से महिला सशक्तिकरण के लिए कार्य कर रहा है । कहा भी जाता है कि यदि आप एक महिला को सशक्त करते है तो एक परिवार को,गांव को ही नही देश को सशक्त करते है।
सखी का शाब्दिक अर्थ परमआत्मीय मित्र् से है जिसके साथ सुखदुख को साझा किया जाये व उचित परामर्श से स्वयं के जीवन में उचित बदलाव किये जायें।
पीढी दर पीढी चली आ रही रुढवादी परम्पराओं को तोडकर महिला सशक्शक्तिकरण कर उन्हें मुख्यधारा में जोडने के लिए सखी कार्यक्रम की शुरुआत हिन्दुस्तान जिंक द्वारा सखी कार्यक्रम के माध्यम से की गयी।
वेदांता की हेड सीएअसआर श्रीमती निलीमा खेतान ने बताया कि सखी कार्यक्रम ग्रामीण महिलाओं के सामाजिक व आर्थिक उत्थान कर समाज की मुख्यधारा में जोडने के लिये हिन्दुस्तान जिंक के वित्तिय सहयोग से सहेली समिति एंव मंजरी फाउंडेशन द्वारा तकनिकी व क्षमतावर्धन कार्यक्रम कर महिलाओं को जागरूक व स्वावलम्बी बनाया जा रहा है। सखी कार्यक्रम का संचालन 2 राज्यों राजस्थान व उत्तराखण्ड पन्तनगर- उत्तराखंड, अजमेर, भीलवाडा, राजसमंद,चित्तौडगढ, व उदयपुर जिले में किया जा रहा है।
सखी कार्यक्रम का उद्देश्य 5 वर्षो में 2300 समूहों द्वारा 27000 से अधिक महिला सदस्यों को आर्थिक व सामाजिक स्तर पर सुद्रढ कर मुख्याधारा में जोडने का है। वर्तमान में सखी कार्यक्रम द्वारा ग्रामीण क्षेत्र् की अनुचित जाती, जनजाति, अन्य पिछडा वर्ग व सामान्य वर्ग की 22556 महिलाओं को 1790 समूहों में 160 गाँवो से जोडकर स्वयं के विकास की और अग्रसर किया जा रहा है।
सखी कार्यक्रम द्वारा अब तक 160 गाँवो में पहुचं बनायी जा चुकी है जिसमें 1790 स्वयं सहायता समूह का निर्माण कर 22556 महिलाओं को जोडा गया है जिनके अब तक 1457 बैंक खाते खाले गये है। इन महिलाओं द्वारा 6.08 करोड से अधिक की बचत एवं 17.12 करोड से अधिक की आंतरिक लेन - देन किया जा चुका है। 20000 महिलाओं को वित्तिय साक्षरता का कार्य किया जा कर 5 फेडरेशन एवं 100 ग्राम संगठन का गठन किया गया है।
सखी कार्यक्रम द्वारा महिलाओं के जीवन में बहुत से बदलाव आये है आज महिलाये स्वयं की छोटी छोटी बचत करके इतनी बडी राशी को जमा कर पाई है तथा आज उसको अपनी स्वयं की जरूरतों को पूरा करने के लिए किसी अन्य पर निर्भर नहीं रहना पडता है।
स्वयं सहायता समूह से छोटे छोटे ऋण लेकर आज महिलायें स्वावलम्बन की और अग्रसर है तथा छोटे छोटे उद्योग भी स्थापित कर स्वयं व परिवार की आर्थिक प्रगति में पुरुषो के साथ कंधे से कन्धा मिलकर कल रही है।
एक महिला का जीवन कितना संघर्षपूर्ण होता है, रामचरित मानस में तुलसीदास जी ने कहा हैः-“कतिविधि सूजी नारी जगमाही, पराधीन सपने हु सुख नाही। महिला के जीवन में पर्दा, रीती- रिवाज, आडम्बर, सामाजिक आर्थिक परिस्थितियां, घर, परिवार, समाज की जिम्मेदारियाँ ये सब इनके जीवन के अवरोध है, लेकिन इन सब अवरोधों को दरकिनार करते हुये उदयपुर जिले के जावर ब्लाक की आदि-वासी महिलायें आज सखी परियोजना के माध्यम से अपने आप को सक्षम महसूस करते हुये विकास की और अग्रसर दिखाई दे रही है। वे आज स्वयं सहायता समूह के माध्यम से छोटी-छोटी बचत करके स्वयं उसमे से कर्ज लेकर अपनी जरूरतों को ही पूरा नहीं कर रही है बल्कि अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा, बालिकाओं को सिलाई का प्रशिक्षण तथा अपने पतियों को शराब से मुक्त करके आजीविका के नये नये आयाम स्थापित कर रही है। जावर के आदिवासी बाहुल क्षेत्र् में आज महिलायें गाँव के विकास की रूपरेखा तैयार करती है एंव संगठित नजर आने लगी है वे अपना वर्तमान अच्छा बनाकर बेहतर भविष्य की योजना बनाने लगी है। चाहे घर परिवार की बात हो या बालिका शिक्षा की बात हो हर मुद्दे पर खुलकर चर्चा करने लगी है। कार्यक्रम द्वारा क्षमतावर्धन होने से स्वावलम्बन की और बढती जा रही हैं।
श्रीमती कमला बाई- निवासी पुठोली चित्तौडगढ
पति की मृत्यु के बाद 18 वर्षीयपुत्र् ने भी जीवन की लडाई में कमला बाई का साथ छोड दिया। जीविकोपार्जन की जद्दोजहद के बीच कमला बाई सखी स्वयं सहायता समूह राधा रानी स्वयं सहायता समूह से जुडी और समूह में अपनी परेशानी को सामने रखा। कमला बाई के पास पांच स्थानीय किस्म की बकरियां थी। इन्होंने समूह से ऋण लेकर सिरोही नस्ल की बकरी पालन से अपना जीवन चलाने की योजना बानायी और आज वें बकरी पालन को ही अपनी आय का मुख्य स्रोत बनाना चाहती है।
श्रीमती सविता देवी- निवासी रेला गांव सराडा, उदयपुर
अब गांव के सभी लोग आरती स्वयं समूह की नेता सविता देवी के नाम से जानते है और यह पहचान मेरे लिए मायने रखती है। ग्राम संगठन से जुडी 120 महिलाओं का प्रतिनिधित्व और उनके हर सुख दुःख में साथ देने के साथ सभी साथी बहनों को आर्थिक रूप से संबंल बना परिवार और समाज में योगदान के लिए प्रेरित करना अब मेरा मुख्य उद्धे८य है।
सायर कंवर- जयसिंहपुरा, आगूचा, भीलवाडा
श्रीमती सायर कंवर द्वारा लगायी गयी चक्की से अब उनके परिवार का जीवन यापन आसानी से चल रहा है। सायर कंवर ७ाांती सखी समूह की सदस्य है जहां से उन्होंने ऋण लेकर आटा चक्की लगा अपना स्वयं का व्यवसाय ७ाुरू किया और अब वें अपनी कुशलता के कारण ग्राम संगठन की कैशयर भी है। इनका कहना है कि हिन्दुस्तान जिंक के सखी कार्यक्रम से जुडकर अब आत्मनिर्भर होने से उन्हें परिवार के प्रति नि८चतंता और आत्मवि८वास है।
टीना कंवर- दरीबा राजसमंद
जहां चाह है वहां राह है की सोच के साथ टीना कंवर ने आशा सखी समूह से जुडकर स्वरोजगार की राह निकाली और छोटी सी बचत एवं ऋण के साथ मनिहारी की दुकान ७ाुरू की। समूह की सभी महिलाओं ने टीना कंवर की मदद की और आज वह अपने दोनो बच्चों और स्वयं को आत्मवि८वास के साथ जीविकोपार्जन कर रही है।