बैलगाडी में की यात्रा, चूरमा बाटी से रंजे विदेशी पावणें

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Published on : 15 Feb, 19 06:02

स्वागत में उमडा बस्सी, मेले जैसा बना माहौल

बैलगाडी में की यात्रा, चूरमा बाटी से रंजे विदेशी पावणें

चित्तौडगढ । मेवाडी भोजन का स्वाद, बैलगाडयों की सवारी, पुष्प वर्षा, लोक संगीत पर थिरकन के बीच ग्रामीणों के आत्मीय स्नेह से अभिभूत विदेशी पर्यटकों ने मेवाडी संस्कृति का भरपूर आनंद लिया। मंगलवार को बस्सी में आयोजित विलेज सफारी में पूरा बस्सी कस्बा विदेशी पांवणों के स्वागत में उमड पडा। मोली बंधन, तिलक, माला और साफा पहनाने के साथ ही हर ग्रामीण विदेशियों के साथ फोटो खिंचवाने को आतुर दिखा। दुसरी और पर्यटक भी इस आत्मीय अंदाज को देख उनके साथ अपनी खुद की सेल्फी लेने से नहीं रोक पाए। ग्रामीण संस्कृति का अद्भूत दृश्य देख उनकी सहजता चर्चा का विषय रही। विदेशी पर्यटकों ने बस्सी तालाब में नौका विहार का भी आनंद लिया। आयोजन स्थल पर कुंए की पनघट से पानी खिंचने और झुला झुलने का अनुभव भी प्राप्त किया।

जिला कलक्टर श्रीमती शिवांगी स्वर्णकार, एसपी अनिल कयाल, अतिरिक्त कलक्टर (प्रशासन) दीपेन्द्र सिंह राठौर, सीईओ जिला परिषद् अंकित कुमार सिंह, प्रशिक्षु आईएएस सुशील कुमार, चित्तौडगढ विकास अधिकारी धनसिंह राठौड भी अपने हाथों से परोसकर मेहमानों की मनुहार करते दिखे। जिला कलक्टर ने ग्रामीण हाट का भी भ्रमण किया और वहां प्रदर्शित हर कला की बारिकी से जानकारी ली। कार्यक्रम में अतिरिक्त कलक्टर (भू.अ.) चन्द्रभान सिंह भाटी, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग के सहायक निदेशक ओमप्रकाश तोषनीवाल, कर्नल रणधीर सिंह, सरपंच अंजु कंवर, उप प्रधान सी.पी. नामधराणी, रामगोपाल ओझा, लक्ष्मीनारायण सोनी, कमल कोठारी, किशन जागेटिया सहित ग्रामीण उपस्थित थे। 

कलक्टर ने खरीदी केलडी, चलाया चाक

जिला कलक्टर ने कुम्हार की दुकान पर मिट्टी के विभिन्न बर्तनों को देखकर उसके निर्माण एवं पकाने की कला को बारिकी से समझने की कोशिश की। कुम्हार द्वारा यह बताए जाने पर कि इन मिट्टी के बर्तनों से भोजना की स्वादिष्टता कई गुना बढ जाती है, तो जिला कलक्टर स्वयं को रोटी पकाने के उपयोग मे आने वाली केलडी (तवा) खरीदने से नही रोक पाई। जिला कलक्टर ने कुम्हार के चाक से मटका बनाने की कोशिश की। पर्यटक और प्रशासनिक अधिकारियों ने बस्सी क्षेत्र के प्रसिद्ध व्यंजनों का भी स्टॉलों के माध्यम से स्वाद चखा। 

 

देशी बोल पर थिरके विदेशी कदम

विलेज सफारी में आए विदेशी मेहमानों ने बस्सी में स्थानीय संगतकारों की ढोलक, मजिरों की धुन पर जमकर ठुमके लगाये। स्वागत सत्कार से अभिभूत पर्यटक समझ में न आने वाले गीतों के बोल पर स्थानीय लोगों के साथ जमकर नांचे। कलश बंधाओं रे, वीरों म्हारों आयो रे ! तथा म्हारा लल्ला की चुंदडी पे रंगवाई द्यो दादा मोड जैसे देशी शब्दों पर नाचते विदेशियों ने दो संस्कृतियों के अद्भूत मिलन का दृश्य बन पडा। गीत-संगीत और भावनाओं का साम्य किसी भाषा, स्थान या रंग पर निर्भर नही करती यह इसका जीवंत प्रमाण था।

भावी पीढी की प्राणवायु

विलेज सफारी में आधुनिक चकाचौंध, मोबाईल और इन्टरनेट की दुनिया से दूर परम्परागत शिक्षण की बानगी बस्सी काष्ठकला में देखने को मिली। यहा की प्रसिद्ध कावड के द्वारा खेल-खेल में शिक्षण पद्धति को देख विदेशी भी आश्चर्य चकित हुए। जंगल की कहानी विषयक कावड में खरगोश की बुद्धिमानी से चित्रित लघुकथा विदेशियों को समझते देर नहीं लगी। इसी कला की मीना की कहानी कावड में एक बच्ची का ग्रामीण क्षेत्र से निकलकर पढना और जीवन में सफल होकर समुदाय को बालिका शिक्षा के लिए प्रेरित करने के प्रसंग ने सभी को लुभाया। कई लोगों का कहना था कि कावड में समयानुकूल यदि वृहद स्तर पर परिवर्तन हो तो यह नई पीढी को इन्टरनेट के विषाक्त प्रभाव से बचाकर बाल शिक्षण का नया रास्ता हो सकता है।

आ गया............अच्छा है, ठीक है!

जर्मनी से आई पर्यटक हाईका बस्सी तालाब के घाट पर ग्रामीण महिलाओं से बतियाती नजर आई। हाईका ने ग्रामीण महिलाओं के साथ सेल्फी भी ली और हिन्दी में बात करने की कोशिश भी की। एक महिला की फोटो लेने के बाद महिला ने जब पुछा क्या मेरा फोटो आ गया तो सहजता से हाईका ने कहा अच्छा है, ठीक है । इसके बाद हाईका उन महिलाओं को अपने मोबाईल पर फोटो भी दिखाने लगी।

स्वच्छता की प्रशंसा  

विलेज सफारी में विदेशी पर्यटकों का स्वागत कुल्हड में परोसी शरबत के साथ किया गया तो वे आपस में चियर्स करते हुए नजर आए। स्वच्छता के प्रति प्रशासन की सजगता और विदेशी पर्यटकों की मानसिक बुनावट के चलते कचरा पात्र में खाली कुल्हड को डालने की उनकी गतिविधि प्रशंसा का विषय बनी।

 

विविध रंगों में रंगा खान-पान

मेवाडी खान-पान की स्नेही मनुहार से अभिभूत पर्यटक अपने खाने के अनोखे अंदाज से भी चर्चा में रहे। किसी का बाटी खाने का अंदाज निराला था, तो किसी का लड्डू । पालकी मारकर खाना खाने में असहज पर्यटक अपने उन्नमूक्त अंदाज में नजर आए।

वैदिक परम्परा के साथ आधुनिकता

बस्सी तालाब के घाट पर भारतीय परम्परा से पर्यटक रूबरू होते नजर आए। आयोजको ने वैदिक मंत्रोचार के बीच भारत की समृद्ध परम्परा से सभी को अवगत करवाया। कई पर्यटकों ने तो पास ही स्थित मंदिर में भगवान की पुजा अर्चना भी की।


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