जल की महत्ता समझें विद्यार्थी

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Published on : 14 Jan, 19 04:01

’’पानी की कहानी’’ चित्रकला प्रतियोगिता में 106 विद्यार्थियों ने लिया भाग

जल की महत्ता समझें विद्यार्थी

झालावाड़।  भारतीय सांस्कृतिक निधि (इंटेक) झालावाड़ अध्याय द्वारा निजी स्कूल एसोसिएशन के सहयोग से अखिल भारतीय स्तर पर पानी की कहानी (माय वाटर हेरिटेज) विषय पर पोस्टर एवं निबंध प्रतियोगिता इमानुअल मिशन सीनियर सैकेण्ड्री स्कूल में आयोजित की गई। प्रतियोगिता में 11 विद्यालयों के कक्षा 6 से 9 तक के 106 विद्यार्थियों ने भाग लिया। 

इंटेक के संयोजक राज्यपाल शर्मा ने संस्था के विभिन्न कार्यक्रमों एवं उद्धेश्यों की जानकारी देते हुए प्रतिभागियों को प्राचीन मनीषियों द्वारा प्रतिपादित जल के महत्व एवं संरक्षण के बारे में बताया। उन्होंने जिले में स्थित पुरानी बावडियों का विरासत के रूप में संरक्षित करने की आवश्यकता में युवाओं के योगदान की महत्ता प्रतिपादित की।    

इस अवसर पर कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रावईवेट स्कूल एसोसिएशन के अध्यक्ष उदयभान सिंह ने इस प्रकार के कार्यक्रमों के माध्यम से युवाओं को विरासत के प्रति जागरूक करने की आवश्यकता जताई। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग के सहायक निदेशक हेमन्त सिंह ने कहा कि राजस्थान के अधिकांश भू-भाग मरूस्थलीय है जहां पानी की उपलब्धता नगण्य है, महिलाओं को बहुत दूर से सर पर मटका रखकर पानी लाना पडता है। इसलिए वे पानी की प्रत्येक बूंद का महत्व जानती है। उन्होंने बताया कि राजस्थान के मारवाड व शेखावटी क्षेत्रों में वर्तमान में भी चारमीनारों वाले कुए पानी के लिए स्तेमाल किए जाते हैं। ये कलात्मक चारमीनारों वाले कुए झालावाड के हाडौती क्षेत्र के कुए जो जमीन से लगे होते है उनसे बिल्कुल भिन्न ऊंचाई पर चारों कौनों पर मिनारे बनाकर निर्मित किए गए है।

कार्यक्रम में इंटेक के सदस्य मधुसुदन आचार्य ने बताया कि पृथ्वी के 75 प्रतिशत भू-भाग पर समुद्र है तथा धरती पर पीने योग्य पानी केवल एक प्रतिशत ही उपलब्ध है। उन्होंने बताया कि जल की जीवन के लिए महत्ता कारण ही मानव सभ्यता का विकास जल सोत्रों के निकट हुआ है। इनका समुचित उपयोग मानव सभ्यता के लिए आवश्यक है। इस अवसर पर राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय की प्राध्यापक डॉ. अशोक कंवर शेखावत ने संसार का निर्माण पंच तत्वों जल, पृथ्वी, अग्नि, वायु एवं आकाश से हुआ है। यही पंच तत्वों के रूप में पिण्ड हमारा शरीर है। शरीर का 70 प्रतिशत भाग जल है, बिना जल के जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है। जल अपने प्राकृतिक रूप में रहेगा तो ही प्राणिमात्र के लिए हितकर है। उसका प्राकृतिक स्वरूप बिगाडने से जल दूषित हो जाता है। दूषित जल बीमारी का कारण बनता है।

संस्था के सचिव दिलीप कुमार श्रीवास्तव ने मंच संचालन करते हुए बताया कि इस प्रतियोगिता में अखिल भारतीय स्तर पर एक सौ क्षेत्रीय विजेता घोषित किए जाएंगे तथा दस राष्ट्रीय विजेताओं को गुजरात का शैक्षणिक भ्रमण कराया जावेगा। इस अवसर पर इमानुअल स्कूल के चैयरमेन थामस सेम ने ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन संस्था में आयोजित करने पर आभार व्यक्त किया तथा संस्था के सह संयोजक भारत भूषण जैन ने धन्यवाद ज्ञापित किया। 

प्रतियोगिता में छात्र-छात्राओं ने विभिन्न जल सोत्रों यथा नदी, तालाब, बावडियों आदि का चित्रण किया तथा उन पर निबन्ध लिखे गए। वहीं विभिन्न विद्यालयों के शिक्षकगणों एवं प्रतिभागियों को स्मृति चिन्ह प्रदान किए गए।


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