विदेशी पक्षियों का स्वर्ग देखना होतो चले आये केवलादेव पक्षी राष्ट्रीय उद्यान

( 19455 बार पढ़ी गयी)
Published on : 13 Jan, 19 15:01

विदेशी पक्षियों का स्वर्ग देखना होतो चले आये केवलादेव पक्षी राष्ट्रीय उद्यान
राजस्थान के भरतपुर स्थित केवलादेव पक्षी राष्ट्रीय उद्यान में।यह उद्यान फरवरी तक सैलानियों की चहल कदमी से आबाद रहता है।
सर्दियों में पक्षी विशेषज्ञों और पर्यावरण प्रेमियों के लिए ये जगह एक तरह से स्वर्ग बन जाती है जब लगभग 200 से ज्यादा स्थानीय प्रजातियों के अलावा विदेशी परिंदे जिनमें साइबेरियन क्रेन
सर्वाधिक उल्लेखनीय हैं यहां दाना चुगते, घोंसले बनाते, प्रजनन करते देखे जा सकते हैं।
पर्यटकों की सबसे ज्यादा भीड़ पेंटेड स्टॉकर्स की कॉलोनी के सामने रहती हैं।असंख्य सरसों के कलरव से पार्क का गुलजार यह स्थान सर्वाधिक आकर्षण का केंद्र होता है। सरसों का प्रजनन काल खत्म होने पर झील के बीच कोई बबुल का पेड़ और डाली ऐसी नही होता जिस पर घोंसला न हो और उन घोंसलो से चोंच निकाले, रूई के गोलों से सफेद चूजे, अपने खाने के इंतजार में शोर न कर रहे हों। पूरे वयस्क होने पर सरसों की चोंच नारंगी एवम शरीर पर नारंगी,गुलाबी,काली धारियां नजर आने लगती हैं।
सर्दी के मौसम यहाँ में कई वर्षों से करीब 365 प्रजातियों के प्रवासी पक्षी अफगानिस्तान ,तुर्की एवम चीन और सुदूर साइबेरिया तक से हजारों किलोमीटर का सफर तय कर के घना पहुँचते आये हैंए इसका उल्लेख मुग़ल सम्राट बाबर के ग्रन्थ बाबरनामा में भी मिलता है। दुर्भाग्य से अनेक कारणों से अब इस राष्ट्रीय पार्क में पिछले कुछ सालों में साइबेरियन क्रेन की यात्राएं और प्रवास दुर्लभ होता जा रहा हैं। यह पक्षी 5000 किलोमीटर की यात्रा कर यहाँ पहुँचता है।
 
भरतपुर का केवल देव राष्ट्रीय उद्यान वर्ष1985से यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में शामिल है। इस उद्यान का क्षेत्रफल 2.873 हेक्टेयर है।पौराणिक ब्रज क्षेत्र के एक भाग भरतपुर में केवलादेव महादेवद मंदिर की अवस्थिति के कारण केवलादेव या घाना कहा जाने लगा। इसे 1965 में अभ्यारण्य एवम 27 अगस्त 1981 को राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया।
इस पक्षीविहार का निर्माण लगभग करीब 250 वर्ष पहले किया गया था। ढाल होने के कारण यहाँ वर्षा के दौरान अक्सर बाढ़ का सामना करना पड़ता था। इसलिए भरतपुर के शासक महाराजा सूरजमल ने अपने शासन काल में 1726 से 1763 के दौरान यहां अजान बाँध का निर्माण करवाया जो दो नदियों गँभीरी और बाणगंगा के संगम पर बनवाया गया था।
संरक्षित वन क्षेत्र घोषित किये जाने से पहले सन 1850 ईस्वी से रियासत काल में केवलादेव का इलाका भरतपुर राजाओं की निजी शिकारगाह हुआ करता थाए जहाँ वे और उनके शाही मेहमान मुर्गाबियों का शिकार किया करते थे। अंग्रेज़ी शासन के दौरान कई वायसरायोंऔर प्रशासकों ने यहां हजारों की तादाद में बत्तखों और मुर्गाबियों का संहार किया था।लॉर्ड लिलिनथगो जैसे अंग्रेजों ने 1938में एक दिन की श्शूटश् में यहां चार हज़ार दो सौ तिहत्तर परिंदों को गोली का निशाना बनाया थाए ये शर्मनाक.तथ्य आज भी यहां अंकित पत्थर के एक शिलालेख पर अंकित है !
भारत की स्वतंत्रता के बाद भी 1972 तक भरतपुर के पूर्व राजा को उनके क्षेत्र में शिकार करने की अनुमति थीए लेकिन 1982 से उद्यान से घास काटने और हरा चारा लेने पर भी प्रतिबन्ध लगा दिया गया।यहां की झीलों और बांधों. मोतीमहल ,साही बांध, बारेन बाँध केअलावा बयाना तहसील के बांध बारेठा के आसपास स्वाभाविक तौर पर पक्षियों का निवास है। यहांसेही,सियार,अजगर,खरगोश, हिरन आदि के अलावा जंगली.बिल्ली भी यहाँ देखे जा सकते है। सवाना एवम विभिन्न प्रकार की घास एवमएकई प्रकार की झाड़ियां पक्षियों के प्रवास के लिए उपयुक्त हैं। कदम एवम देसी बबूल के असंख्य पेड़ों पर वे अपने घोसलें बनाते हैं।

साभार :


© CopyRight Pressnote.in | A Avid Web Solutions Venture.