चुनावी नतीजों पर त्वरित टिप्पणी: सवर्णों और दलितों का ढोंग से मोहभंग होना लोकतंत्र के लिये सुखद संकेत!

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Published on : 12 Dec, 18 04:12

लेखक: डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'

हिंदी भाषी तीन राज्यों की विधानसभाओं के चुनावी परिणामों का विशेषज्ञों द्वारा बारीकी से सांख्यिकी विश्लेषण तो जब होगा, तब होगा, लेकिन यदि तत्काल कोई निष्कर्ष निकालना हो तो मुझे यह कहने में कोई हिचक नहीं कि मोदी के नेतृत्व में भाजपा, संघ के कथित सबका साथ -सबका विकास की ओट में जारी पूंजीवाद समर्थक, कट्टर हिंदुत्वादी एवं आरक्षण विरोधी ऐजेंडे को तो इन राज्यों की जनता ने सीधे तौर पर निरस्त कर दिया है। इसके साथ-साथ ही साथ काल्पनिक अहंकार में आकंठ डूबकर कांग्रेस जैसी बड़ी पार्टी को अपनी शर्तों पर नचाने को आतुर मायावती द्वारा सवर्ण आरक्षण का समर्थन करते हुए दिखावटी अम्बेड़करवादी ढोंग को भी से दलित मतदाताओं तक ने स्वीकार करने साफ तौर पर इनकार कर दिया है? यही वजह है कि अपनी सुनिश्चित पराजय को जानते-समझते हुए भी जो दर्जनों वोट-काटू बसपाई उम्मीदवार, जिन विरोधी उम्मीदवारों को हराना चाहते थे, उन्हें हराने में भी पूरी तरह नाकामयाब रहे हैं!

इस प्रकार तीन राज्यों की विधानसभाओं के चुनावी परिणामों को देखा जाये तो मोदी, संघ, भाजपा के हिंदूवादी ढोंग और माया-बसपा के अम्बेड़करवादी ढोंग को निरस्त करने के लिये इन राज्यों के परिपक्व मतदाताओं को बधाई, मुबारकबाद और शुभकामनाएं देना बनता है। विशेष रूप से सवर्णों का संघ-भाजपा से और दलितों का अम्बेड़करी-बसपा से मोहभंग होना लोकतंत्र के भविषय लिये सुखद संकेत है।

इन चुनावी नतीजों से अब संघ-भाजपा को समझ में आ जाना चाहिये कि लोकतंत्र में आमजन को गुमराह करके बार-बार ईमानदारी से चुनाव नहीं जीते जा सकते! इसी प्रकार माया-बसपा और इनके अंधभक्त दलितों को भी समय रहे यह बात समझ में आ जानी चाहिये कि अम्बेड़कर तथा संविधान के नाम से लगातार फैलाये जा रहे झूठ के सहारे, भोले-भाले दलितों को हिंदुओं के विरुद्ध खड़ा करके, अंदरखाने हिंदुओं से समझौता करके सवर्णों को आर्थिक आधार पर आरक्षण की मांग करने का असली मकसद दलित मतदाता को भी ठीक से समझ में आने लगा है। यही नहीं अब अम्बेड़करवाद के नाम से 70 सालों से गुमराह किये जा रहे ओबीसी, अल्पसंख्यकों, आदिवासियों आदि शेष सभी वंचित समुदायों को भी अम्बेड़कर के कथित संविधान निर्माण में योगदान तथा माया के बहुजन समाज का असली मतलब ठीक से समझ में आने लगा है!

ऐसे में उम्मीद की जा सकती है कि इस स्थिति में आने वाले समय में लोकतंत्र अधिक परिपक्व होगा और जनहित तथा आम इंसान राजनीतिक दलों के लिये अधिक महत्वपूर्ण बनेगा। यही नहीं अब आने वाला समय कांग्रेस नेतृत्व के लिये भी अधिक चुनौतीभरा होगा। केवल तीन विधानसभाओं में अच्छा प्रदर्शन करने मात्र से कुछ नहीं होने वाला। मोदी, भाजपा और संघ की नीतियों से दु:खी मतदाता के बल पर 2019 का लोकसभा चुनाव जीतने के लिये, काबिल धर्मनिरपेक्ष एवं जनहितवादी राजनीतिक दलों से सम्मानजनक राजनीतिक समझौते भी करने होंगे। सोशल मीडिया के युग में ऐसी पारदर्शी सरकार चलाने वाली नीतियों का खुलासा करना होगा। जिनके बल पर देश के वंचित समुदायों, अल्पसंख्यकों, किसानों, सैनिकों, आरक्षित वर्गों और महिलाओं के हकों को संरक्षित किया जा सके और मोदी सरकार से विरासत में मिलने वाली आर्थिक बदहाली, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, साम्प्रदायिक उन्माद, असुरक्षा आदि से हर आम-ओ-खाश को निजात मिल सके। साथ-साथ ऐसी नीतियां निर्मित करनी होंगी जिनसे देश के संवैधानिक संस्थानों की विश्वसनीयता तथा साख को भी पुनर्जीवित करने का विश्वास जगाया जा सके। सबसे बड़ी बात जातिगत जनगणना के आंकड़े उजागर करके पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिये दूरगामी संवैधानिक नीतियों का भी खुलासा करना होगा। अन्यथा तीन राज्यों की जीत का खुमार उतरने में समय नहीं लगेगा!

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