2004 में सुंदर लाल जी ने परिवार के सभी सदस्यों से बात करके देहदान की शपथ ली थी,उनसे प्रेरणा लेकर परिवार के बाकी सदस्यों ने नैत्रदान अंगदान का संकल्प लिया । सुंदरलाल गुप्ता 75 वर्ष के थे,दादाबाड़ी शास्त्री नगर निवासी,रेल्वे में सीनियर क्लर्क से रिटायर्ड थे । सभी रिश्तेदारों के लिए वह शुरू से ही प्रेरणादायी रहे है । नाती पोतों को भी उनसे खूब लगाव था ।
नैत्रदान की पूरी प्रकिया में नाती पोते,नैत्रदान से जुड़े सवाल जवाब पूछते रहे, जिनका ज़वाब डॉ गौड़ ने बख़ूबी दिया ।
सुंदरलाल जी सेवानिवृत्त होने के बाद से समाज,रिश्तेदारों के व अपने मित्रों के दुखः दर्द में हमेशा खड़े रहते थे,इनके मिलने जुलने वाले लोग यदि किसी कारण से अस्पताल में भर्ती होते थे,तो यह पहले इंसान होते थे जो उसकी सेवा में लग जाते थे । इनके पत्नि ललिता गुप्ता भी इनके साथ बराबर लगी रहती थी । देहदान और नैत्रदान क प्रति उन्होंने अपने दोनों बेटे विमल और विनय को अच्छे से कह दिया था कि मेरी मृत्यु के बाद कोई भी ऐसा कार्य न करना जिससे पशु,पक्षियों व किसी भी मनुष्य को कोई तकलीफ हो,मेरे दाग में पेड़ मत जलाना, उसको दान कर देना ।
नेत्र निकालने के टेक्निशन दीवाली की छुट्टियों में घर गया था तो डॉ कुलवंत गौड़ जो की स्वंय भी कोर्निया लेने के लिए प्रशिक्षित थे,उन्होंने ही घर पहुंच कर नैत्रदान लिया ।
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