प्राचीनतम चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद

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Published on : 31 Oct, 18 09:10

आयुर्वेद दिवस पर विशेष

आयुर्वेद विश्व की सबसे प्राचीनतम चिकित्सा पद्धति है। इसलिए वेदों में भी इसका उल्लेख मिलता है।
आयुर्वेद का सबसे ज़्यादा वर्णन अथर्ववेद में मिलता है, इसलिए आयुर्वेद को अथर्ववेद का उपांग कहा गया है।
वैसे तो आयुर्वेद शाश्वत है और अनादिकाल से चला आ रहा है।
परंतु भारत सरकार ने दो वर्ष पूर्व धन्वन्तरि जयंती को आयुर्वेद दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया है।
इस कड़ी के अन्तर्गत्त आज हम तृतीय आयुर्वेद दिवस मना रहे हैं।
आज भारत और विश्व मेंअनेक रोगों का प्रादुर्भाव हो चुका है।
लोग विभिन्न व्याधियों से ग्रस्त है , और इनमें से कई लाइलाज हैं ।
कैंसर ,मधुमेह ,ह्रदय रोग,संधि रोग, यकृत, वृक्क और मानसिक इत्यादि रोगों से विश्व जूझ रहा है।
ऐसा नहीं है कि विज्ञान प्रगति नहीं कर रहा है ,परंतु नए नए रोगों का प्रादुर्भाव भी हो रहा है।
अब प्रश्न यह उठता है कि विज्ञान की प्रगति के बाद भी ,लोग विभिन्न व्याधियों से ग्रस्त क्यों होते जा रहे हैं ?
क्यों मधुमेह,कैंसर ,ह्रदय रोग, श्वास रोगों के मरीज़ बढ़ते जा रहे ?
यदि हम इनके कारणों पर दृष्टिपात करते हैं तो हमें निम्नलिखित कारण मिलते हैं :-(१)सदवृत्त का पालन न करना
(२)दिनचर्या का पालन न करना
३()ऋतुचर्या का पालना न करना
(४)मानसिक कारण तनाव ,द्वेष,क्रोध ,भय इत्यादि।
(५)किसी भी प्रकार का श्रम न करना (गृहकार्य )आदि
(६)व्यायाम न करना
(७)प्रदूषण
(८)दूषित वायु,दूषित जल का सेवन करना एवं दूषित भूमि में उत्पन्न खाद्य पदार्थों का सेवन करना ।
(९)खाद्य पदार्थों में मिलावट
(१०)कृषि भूमि में कीटनाशक दवाओं का प्रयोग
(११)जीवन को सुविधाजनक बनाने वाली वस्तुएँ जैसे एसी ,फ़्रीज़ ,माइक्रोवेव इत्यादि का दुरुपयोग
(१२)मोबाइल और इंटरनेट का दुरूपयोग
(१३)आगंतुक कारण जैसे बैक्टीरिया ,वायरस ,प्रोटोजोअल इत्यादि
(१४)वंशानुगत और आनुवंशिक कारण
इस तरह अन्य भी अनेक कारण होते हैं, जो जीवन शैली को सुचारु रूप में न रखने के फलस्वरूप उत्पन्न होते हैं जिन्हें लाइफ़स्टाइल डिसआडर के अंतर्गत रखा जाता है।
आयुर्वेद के अनुसार जिस व्यक्ति के दोष, अग्नि,धातु, मल आदि की क्रियाएँ सम हो,और जिसकी आत्मा, इन्द्रिय और मन प्रसन्न हो उसे स्वस्थ व्यक्ति कहा जाता है।
शारीरिक और मानसिक दो तरह के रोग होते हैं ।अतः शरीर और मन दोनों स्वस्थ और प्रसन्न होने चाहिए ।
आयुर्वेद रोगों के उपचार के साथ साथ उन का प्रादुर्भाव ही ना हो, इस बात पर ज़ोर देता है ।
इसके लिए ब्रह्ममुहूर्त में उठने से लेकर, रात्रि में सोने तक ,व्यक्ति की दिनचर्या क्या होनी चाहिए ? ऐसी वृत्तियाँ या क्रियाएँ जो व्यक्ति को स्वस्थ रखती है जैसे ख़ान -पान, आचार -विचार ,व्यायाम,योग- प्राणायाम ,स्वच्छता का ध्यान ,आदि सभी कार्यों के लिए सदवृत्त का वर्णन किया गया है।
ऋतु संधि में होने वाली बीमारियों जैसे सर्दी ,जुकाम ,खाँसी ,ज्वर से बचने के लिए ऋतुचर्या का वर्णन किया है ।
छ: ऋतुओं के अनुसार किस ऋतु में किन किन पदार्थों का सेवन करना चाहिए ,और किसका नहीं करना चाहिए, आयुर्वेद में स्पष्ट रूप से वर्णित है।
जल प्रदूषण से उदर के रोग, वायु प्रदूषण से श्वासादि रोग,ध्वनि प्रदूषण से उत्मांगों के रोग(शिरोरोग ,नेत्र रोग,कर्ण रोग )से बचने के लिए वृक्षारोपण ,स्वच्छता और गाड़ियों का नियंत्रित उपयोग अति आवश्यक है ।खाद्य पदार्थों में मिलावट और कृषि भूमि में दवाओं का अनियंत्रित प्रयोग मानव समाज को अंदर से खोखला कर रहा है।
मोबाइल और इंटरनेट का दुरुपयोग, ख़ासकर बच्चों को शारीरिक और मानसिक रूप से अपंग बना रहा है ।बच्चों में मोटापा और व्यवहार में उग्रता के लिए भी मोबाइल और इंटरनेट ज़िम्मेदार है।
अतिसर्ववर्जयेत के अनुसार किसी भी चीज़ का ज़रूरत से ज़्यादा उपयोग विनाश का कारण बनता है ।अत: जीवन को सरल बनाने वाली सुविधाओं का उपयोग, जीवन को सरल बनाने के लिए करें ,अपंग बनाने के लिए नहीं ।
शरीर सौष्ठव के लिए आयुर्वेद में अनेक रसायनों का प्रयोग बताया है,जिससे रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है ,और शरीर बीमारियों से लड़ने में ज़्यादा सक्षम होता है।
इसके लिए हमें नित्य प्रति आँवलें ,गुडूची,हरीतकी ,त्रिफला ,तुलसी और कालमेघ का सेवन करना चाहिए।
अदरक ,पिप्पली ,लहसुन ,अजमोदा का प्रयोग करना चाहिए। लोंग ,दालचीनी ,काली मिर्च ,मधु का प्रयोग भी करना चाहिए।
कहने का तात्पर्य यह है कि एक कुशल गृहिणी की रसोई सर्दी ,खाँसी ,जुकाम जो बदलते मौसम की बीमारियां है ,उनका इलाज कर सकती है।
डॉक्टर मनजीत कौर
आयुर्वेद चिकित्सा अधिकारी प्रभारी बीकानेर हाउस, नई दिल्ली।
साभार :


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