संतों की चेतावनी : सबरीमाला में हिन्दू आस्थाओं से खिलवाड़ बंद हो

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Published on : 21 Oct, 18 03:10

संतों की चेतावनी : सबरीमाला में हिन्दू आस्थाओं से खिलवाड़ बंद हो नई दिल्ली. सबरीमाला में अय्यप्पा भगवान के भक्तों पर जिस तरह की बर्बरता और गुंडागर्दी केरल पुलिस द्वारा की गई उसकी देशभर के संतों ने धोर निंदा की है. मार्क्सवादी सरकार द्वारा हिंदुओं की आस्था पर प्रहार तथा शांतिपूर्ण ढंग से सत्संग कर रहे भक्तों पर उसके द्वारा किए गए अत्याचारों की निंदा करते हुए सनातन धर्म प्रतिनिधि सभा दिल्ली के अध्यक्ष महा-मंडलेश्वर पूज्य स्वामी राघवानंद तथा दिल्ली संत महामंडल के महा मंत्री महा-मंडलेश्वर महंत नवल किशोर दास जी महाराज ने आज कहा कि केरल के मुख्यमंत्री विजयन की पुलिस के लाठीचार्ज और पत्थर बाजी से भक्तों की श्रद्धा विश्वास तथा भगवान के प्रति समर्पण को कुचला नहीं जा सकता।

सरकारी दमन व हिंदूद्रोही षड्यंत्र के विरोध में सबरीमाला कर्म समिति की गुरूवार की राज्य व्यापी हड़ताल की सफलता पर वहाँ के सभी सामाजिक व धार्मिक संगठनों को साधुवाद देते हुए संतों ने कहा कि सबरीमाला की वर्तमान परिस्थितियों के लिए केवल सीपीएम सरकार व उनके द्वारा पोषित हिंदू फोबिया से ग्रस्त कुछ तथा-कथित मानवाधिकारवादी ही जिम्मेदार हैं। महिलाओं को अधिकार दिलाने की आड़ में ये तत्व वास्तव में हिंदू आस्था को ही कुचलने का प्रयास करते रहे हैं। इन तत्वों ने कभी पादरी द्वारा बलात्कार से पीड़ित नन के लिए आवाज उठाने व पीड़ित नन को वेश्या कहने का दुस्साहस करने वालों के विरुद्ध कहने का साहस क्यों नहीं किया। मुस्लिम महिलाओं को मस्जिद में प्रवेश पर भी वे क्यों चुप्पी साध लेते हैं।


संतों ने कहा कि महिला अधिकारों की रक्षा में सीपीएम का रिकार्ड हमेशा संदिग्ध रहा है। उनके पॉलिट ब्यूरो में किसी महिला को तभी प्रवेश मिला है जब उनके पति पार्टी के महासचिव बने हैं। बंगाल के नंदीग्राम और सिंगुर में उन्होंने महिलाओं के ऊपर जो अत्याचार किए हैं, उससे उनका चरित्र समझ में आता है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय में प्रवेश की मांग करने वाला कोई भी आस्थावान नहीं है। अपितु अब इस तरह की महिलाएं सामने आ रही हैं जो अपने पुरुष मित्र के साथ मंदिर में जाकर भगवान के सामने यौन संबंध बनाने की धमकी देती है और वहां कंडोम की दुकान खोलने की बात करती है।

उन्होंने कहा कि हिंदू समाज कभी महिला विरोधी नहीं रहा है। परंतु हर मंदिर की कुछ परंपराएं रहती है जिनका सम्मान प्रत्येक को करना चाहिए। इन्हीं विविध परम्पराओं के कारण अनेकता में एकता भारत की विशेषता बन गई। ऐसा लगता है ये सब लोग मिलकर भारत की आत्मा पर ही प्रहार करना चाहते हैं। भारत में ऐसे कई मंदिर है जहां पुरुषों का प्रवेश वर्जित है। क्या ये लोग उन परंपराओं को पुरुष विरोधी कहेंगे? भगवान अय्यप्पा के भक्तों द्वारा चलाए जा रहे अहिंसक आंदोलन की प्रशंसा करने की जगह उसके लिए राज सत्ता द्वारा अपशब्दों का प्रयोग उचित नहीं। उन को समझना चाहिए कि हिंदू हमेशा परिवर्तनशील रहा है। क्या दक्षिण के मंदिरों में दलित पुजारियों को स्वीकार नहीं किया गया? परन्तु यह परिवर्तन इन आस्थावानों के अंदर से ही आना चाहिए। कोई भी बाह्य तत्व इनको थोप नहीं सकता।

वरिष्ठ संतों का कहना है कि सबरीमाला की यह परंपरा न किसी को अपमानित करती है और न ही किसी को कष्ट देती है। बल्कि यह पूर्ण रुप से संविधान की धारा 25 के अंतर्गत ही है। इसलिए यह लड़ाई संविधान की दायरे में रहकर संविधान की भावना की रक्षा करने के लिए ही है। तीन तलाक के कानून का विरोध करने वाले किस मुंह से इस आंदोलन का विरोध कर सकते हैं?

केरल की सीपीएम सरकार द्वारा देवसवोम बोर्ड का संविधान बदल कर हिंदू मंदिरों को गैर हिंदुओं के हवाले करने का भी संतों ने विरोध करते हुए चेतावनी दी कि कम्यूनिस्ट सरकार हिंदुओं को कुचलने का अपना अपवित्र षड्यंत्र बंद करे। उन्होंने राज्य सरकार को आगाह किया कि वह सबरीमाल के सन्दर्भ में अपनी गलती स्वीकार कर के पुनर्विचार याचिका डाले।
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