भगवान से कुछ पाने के स्थान पर स्वयं प्रभु को पाने की निष्ठा रखिए

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Published on : 18 Oct, 18 04:10

निष्ठा व विश्वास से सब कुछ मिल जाता है

भगवान से कुछ पाने के स्थान पर स्वयं प्रभु को पाने की निष्ठा रखिए सुखेर -पुष्करना भट्ट परिवार द्वारा आयोजित संगीतमय श्री राम कथा के आठवें दिन कथा वाचिका साध्वी अखिलेश्वरी जी ने राम वनवास कथा प्रसंग को आगे बढ़ाते हुए किष्किंधा कांड में प्रवेश कराया।राम ,हनुमान एवं सुग्रीव मिलन व मित्रता का प्रसंग प्रस्तुत करते हुए बताया कि भगवान कि भक्ति करो तोअपनी मांग व इच्छाओं को भगवान के सामने रखने की बजाय स्वयं प्रभु को पाने की इच्छा रख कर भक्ति करो जैसे हनुमानजी ने श्री राम की भक्ति की ,उसी तरह जिस पर तुम्हारी पूरी निष्ठा ,भक्ति होगी वो अपने आप तुम्हारा हो जाएगा ।रामकथा में हनुमानजी भगवान राम के प्रति पूर्ण समर्पण और भक्ति व पूर्ण निष्ठा को दर्शाते है। हनुमानजी जैसे अगर सच्चे सेवक ओर भक्त होंगे तो प्रभु स्वयं ही भक्त के पास चले जाएंगे। दीदी मां ने एक सच्चे भक्त में प्रभु को पाने के लिए किस तरह के गुण होने चाहिए उसका वर्णन किया।केवट ,शबरी, अहल्या ,हनुमानजी आदि ने किसी तरह की कठिन तपस्या करके श्री राम को नही पाया ,बल्कि उनकी सरल निश्छल ह्रदय की निष्ठा से पूर्ण भक्ति से पा लिया।दीदी मां ने प्रवचन दिए कि जीवन मे कामनाओ का अंत नही लेकिन भगवान की समीपता कामनाओं पर नियंत्रण जरूर ला सकती है।
#सुग्रीव से मिलन व मित्रता प्रसंग सुनाते हुए साध्वी जी ने मित्रता के भाव को समझाया कि जहां मित्रता है वहा स्वार्थ नही हो सकता ओर जहां स्वार्थ है वहां मित्रता नही हो सकती। सच्चा मित्र वही हे जो आपकी विपत्ति में काम आए।जब आपके पास सुख हे पैसा है तब आपके आस,पास सुख व ख़ुशीबांटने के लिए बहुत से लोग होंगे लेकिन विपत्ति के समय जो आपका साथ देता है वो आपका सच्चा मित्र व हितेषी हे।दीदी मां ने बताया कि मित्रता तो वह नाता है जो योनियों, जातियों, धर्मो, उंच नीच को पीछे छोड़, एक मनुष्य का दुसरे मनुष्य से रिश्ता कायम कर सकता है, और वो नाता है ‘मित्रता’ का| जिसमें कोई शर्त न हो, कोई लेन देन नहीं हो, किसी भी तरह का कोई स्वार्थ न हो, उस रिश्ते में सिर्फ प्यार का आदान प्रदान हो आपसी सहयोग हो समर्पण हो वही सच्ची मित्रता है।और यही तुलसी के राम का मित्रवत स्वभाव है।

#साध्वी श्री ने बताया कि राम शिव का रूप है तो सीता जी सती(शक्ति) का रूप है।दोनों ही एक दूसरे के बिना पूरे नही है। पूरे देश में मां भगवती को बालिका के कितने ही रूप में पूजा जाता है। पर जब तक हर बालिका दुराचार,हत्या जैसी दरिंदगी से गिरी हुई है तब तक हमारा कन्या पूजन व्यर्थ है जब हम उसकी रक्षा नही कर सकते तो पूजने का भी कोई अधिकार नही है। दीदी मां ने बताया कि हमारे देश में स्त्री को सतीजी के रूप में बेटी,भवानी के रूप मेंपत्नी को ओर जगतजननी के रूप में माँ को समजा जाता है।
दीदी मां ने इस बात पर दुःख करते हुए बताया कि हम स्त्री शक्ति को दैवीय रूप में तो सेकड़ो वर्षो से पूजते आ रहे है किंतु वास्तव के जीवन में स्त्री शक्ति को पहचान नही पाते जबकि स्त्री ही परिवार समाज देश संसार की जीवन दायनी है।इसलिए मां भगवती की वास्तव में पूजा करना तभी सफल है जब स्त्री जाति की सोई शक्ति को सम्मान देकर उसको पहचान को लौटाया जाए उसे सुरक्षा दी जाए।
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