बाटना ही हे तो परिवार का प्रेम और सुख दुःख बांटिए

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Published on : 14 Oct, 18 12:10

भारतीय संस्कृति ही नही पुरे विश्व में भी गाय का मत्वपूर्ण स्थान #गौ सेवा से ही सूर्यवंश कुल का नाम रघुकुल हुआ*

बाटना ही हे तो परिवार का प्रेम और सुख दुःख बांटिए सुखेर : "सीता वात्सल्य धाम" निराश्रित बाल सेवा गृह जीवनज्योति छात्रावास में आयोजित श्री संगीतमय रामकथा के पांचवे दिन साध्वी श्री ने कथा में श्रीराम राज्याभिषेक प्रसंग व श्री रामवनवास गमन का वर्णन किया। दीदी मां ने बताया कि श्रीराम तो वैसे ही राजा बन रहे थे लेकिन भाई भरत को राज्य मिल जाए ऐसा सोचते हुए कैकेई के स्वार्थ भरे वचन,व पिता की आज्ञा को सहर्ष मानते हुए वनवास जाने का कठिन जीवन भी स्वीकार कर लिया।अर्थात उन्होंने अपने स्वार्थ को छोड़कर अपनी मां, पिताजी व भाई के लिए सोचा।ऐसे भाव केवल राम के थे।
दीदी मां ने बताया कि आज तो हम अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए अपनो का नुकसान भी करने को तैयार हो जाते है। सोचिए यदि राम अपना स्वार्थ सोच लेते तो बुराइ रूपी रावण कैसे समाप्त होता।हमें दुसरो की समस्याओं व दुख को समझकर उनकी सहायता के लिए सदैव तैयार रहना चाहिए।आज सभी जगह पर संयुक्त परिवार विभाजित होकर एकल परिवार बढ़ते जा रहे है।बटवारे के नाम पर धन,संपत्ति ही नही परिवार भी बट जाते है।दीदी मां ने समझाया कि बाटना हे तो परिवार का सुख दुःख बांटिए,प्रेम बांटिए।क्यों कि परिवार को बाटकर हम अकेले जीवन जीना चाहते है।पर उसमें आपको हर परिस्थिति का सामना भी अकेले ही करना पड़ता है।

# सूर्यकुल का नाम रघुकुल की मर्यादा का वर्णन करते हुए साध्वी श्री अखिलेश्वरी जी ने आज गौ सेवा की महीमा भी बताई। दीदी मांने पौराणिक कथाओं में से रघुकुल के राजा दिलीप की कथा को सुनाते हुए कहा कि राजा दिलीप से गौ अपराध और गुरु आज्ञा का उलंघन हुआ था इसीलिए उन्हें यहाँ कोई संतान की प्राप्ति नहीं हुईथी।गुरु वशिष्ठ की आज्ञा के अनुसार कामधेनु गाय की पुत्री नंदिनी गाय को देकर पुत्र प्राप्ति के लिए गौ सेवा का आदेश दिया। दीदी मां ने बताया कि राजा दिलीप की गौ सेवा व गौमाता की कृपा से ही रघु जैसा चक्रवर्ती राजा पुत्र के रूप में प्राप्त हुआ। जिनके नाम पर ही आगे सूर्यवंश के साथ रघुवंश का नाम भी चला। इसी रघुवंश में आगे जाकर स्वयं भगवान् राम के रूप में नारायण प्रगट हुए।
दीदी मां ने गौ का महत्व बताते हुए कहा कि यह सब गौ सेवा के कारण ही संभव हुआ।गाय भुत और भविष्य है। गौमाता को जो भी दिया जाता है उसका पूण्य कभी समाप्त नही होता गायमाता की सेवा करने से मानव को अपार मानसिक शान्ति,धन ,संपत्ति व यश प्राप्त होता है। गाय के पैरों के नीची की जमीन को तीर्थ कहा जाता है।साध्वी श्री अखिलेश्वरी जी ने कहा कि। गौ केवल हिन्दुओं की ही नहीं इस सम्पूर्ण विश्व की माता है ! गाय के अस्तित्व पर इस जगत का अस्तित्व है ,
इसलिए दीदी मां ने आज के आधुनिक युग पर चिंता प्रकट करते हुए सबसे कहा कि सोचिए अगर हम तो गौ रक्षा,संरक्षण,व सेवा नही करेंगे तो हमारी संस्कृति की रक्षा किस प्रकार होगी इसलिए आपसे अनुरोध है कि सभी गौ सेवा व संरक्षण करिए।जिससे हमें राजा राम जैसे आज्ञाकारी,समस्त गुणों से भरे हुए पुत्र की प्राप्ती हो।
*विश्व हिन्दू परिषद्- गौरक्षा विभाग व वि.हि.प.- गौरक्षाविभाग उदयपुर के नेतृत्व में गौमूत्र व गौबर से बनाये जाने वाले विभिन्न दैनिक उपयोग के सामानों की प्रशिक्षण कार्यशाला वही पर पांडाल में आयोजित की गई। उनके द्वारा सन्देश देते हुए "भारतीय देसी गौ को हम नहीं पालते वो तो हमें पालनें की क्षमता रखती है " कहते हुए प्रान्त प्रमुख प्रशिक्षण राजेन्द्र जी पुरोहित द्वारा देसी गाय के गौबर व गौमुत्र से बनाये जाने वाले विभिन्न प्रकार के देनिक उपयोग के सामानो को बनाकर सिखाये जाने के लिए निःशुल्क प्रशिक्षण दिया गया ,जिससे सामान्य व्यक्ति भी प्रशिक्षण प्राप्त कर अपने घर पर गौ उत्पाद बना कर आय कर सकते है
- गौमूत्र से शेम्पू मात्र नहाने का साबुन धूप व मच्छर बत्ती बर्तन साफ करने का साबुन गोनाइन,गौमूत्र अर्क आदि को बनाकर दिखाया व सिखाया गया ।साथ ही साध्वी जी व समिति द्वारा ने सभी से अनुरोध किया कि दूध नहीं देने की स्थिति मे गौमाता को आवारा पशु न बनने देवें, गौ उत्पाद बनाना सीखे व गौ रक्षा का पुण्य कमाये
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