रामलला के जन्म पर भक्तों को मिला तुलसी का पौधा उपहार में

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Published on : 13 Oct, 18 05:10

भक्त की भक्ति की पहचान है माँ तुलसी

रामलला के जन्म पर भक्तों को मिला तुलसी का पौधा  उपहार में सुखेर| "सीता वात्सल्य धाम" में पुष्करना परिवार के तत्वावधान में आयोजित श्रीराम कथा को गति प्रदान की, दीदी मां ने भगवान के सभी अवतार हेतु कारण प्रसंग को सुनाते हुए प्रभु श्री राम के जन्म प्रसंग को सुनाया ।व उपहार स्वरूप 101 तुलसी के पौधों को भक्तों में वितरित किए गए। साथ ही मां तुलसी की महिमा को बताते हुए कहा कि जिस घर मे तुलसी है वहां भक्ति है।उस घर में कोई भी वास्तु दोष नही रहंते।
दीदी मां ने बताया किश्री प्रभु राम का जन्म नहीं हुआ, वह तो प्रकट हुए थे । जिनका नाम सुनने मात्र से अमंगल से बदलकर मंगल हो जाता है।दीदी मां ने श्रीराम जन्म से अयोध्या वासियों में उमड़ी खुशी का बड़े ही सुंदर शब्दों में वर्णन करते हुए कहा कि चंद्रमा ने जब भगवान से शिकायत की कि उसे प्रभु-दर्शन का सौभाग्य नहीं मिल रहा है तो भगवान ने चंद्र शब्द अपने नाम का आधार अर्थात रामचंद्र दिया । वही पर कुलगुरु द्वारा स्वभाव के अनुरूप चारों पुत्रों का नामकरण संस्कार भी हुआ।
दीदी मां ने कहा कि जब इंसान अकेले सुख भोगता है तो उसे आनंद कहते है, लेकिन जब उस सुख में सभी भागीदार होते है तो वह महोत्सव बन जाता है ,अतः किसी भी ख़ुशी को घर के सभी सदस्य को एक साथ मिलकर मनानी चाहिए जिससे वो खुशी और भी बड़ी हो जाएगी
राम जन्म के इसी महोत्सव के आनंद में डूबकर कथा श्रोता भक्तो ने आपस खूब बधाइयां बांटी।
श्रद्धालु-श्रोताओं को श्रीराम कथा की यात्रा कराते हूए दीदी मां ने महामुनि विश्वमित्र द्वारा मारीच-ताड़का जैसे राक्षसों के बध के लिए राजा दशरथ से श्रीराम और लक्ष्मण को मांगने वाले प्रसंग को भी सुनाया । उन्होंने कहां कि वैसे तो सभी ऋषियों व मुनियों में इतना बल था कि वे स्वयं उनके हाथों से उन सभी राक्षसों को पल में मार सकते थे पर उन दुर्गुणी राक्षसों का भी श्री राम के हाथों से उद्धार करवाना चाहते थे। ओर प्रभु श्री राम भी जानते थे कि उनको सत्य की राह केवल उनके गुरु ही दिखा सकते है इसलिए भगवान का अवतार होते हुए भी श्री राम ने पूरे जीवन में गुरु की आज्ञा का पालन किया।
साध्वीश्री ने अहिल्या-उद्धार की कथा का बड़े ही मार्मिक ढंग से वर्णन किया । दीदी मां ने कहा कि अहिल्या पत्थर की नहीं हुई थी, जगत की उपेक्षा और तिर्स्कार के कारण पत्थर बन गई थी ।
साध्वीजी ने कहा कि रामचरित मानस को हमने यदि केवल धार्मिक ग्रंथ ही ना मानकर अपने जीवन में भी उतार लिया होता तो आज देश में राम मंदिर बनवाने के लिए लड़ना नही पड़ता बल्कि भारत का हर कोना श्री राम मंदिर के समान ही होता।
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