भक्ति आंदोलन ने देश को एकता के सूत्र में पिरोया: डॉ. कृष्णगोपाल

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Published on : 11 Oct, 18 10:10

मनीषी पं. जनार्दनराय नागर संस्कृति रत्न अलंकरण समर्पण समारोह २०१८ अलंकृत: डॉ. कृष्णगोपाल संस्कृति रत्न से सम्मानित

भक्ति आंदोलन ने देश को एकता के सूत्र में पिरोया: डॉ. कृष्णगोपाल उदयपुर| भारतीय कला-संस्कृति व जीवन मूल्यों को संरक्षित करने एवं उनके प्रचार-प्रसार में अतुलनीय योगदान के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल को गुरूवार को जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ डिम्ड टू बी विश्वविद्यालय की ओर से आयोजित गरिमामय कार्यक्रम में चतुर्थ ’’मनीषी पण्डित जनार्दनराय नागर संस्कृति रत्न अलंकरण २०१८‘‘ से नवाजा गया। सम्मान समारोह जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ डिम्ड टू बी विश्वविद्यालय के प्रतापनगर स्थित कम्प्यूटर एण्ड आईटी विभाग के सभागार में हुआ। मुख्य अतिथि डॉ. हरीसिंह गैर विवि सागर मध्यप्रदेश के कुलाधिपति प्रो. बलवंत शांतिलाल जॉनी व कुलपति प्रो शिवसिंह सारंगदेवोत ने डॉ. कृष्ण गोपाल को शॉल, पगडी, एक लाख रूपए का चेक, प्रशस्ती पत्र व जन्नूभाई रचित ग्रंथ शंकराचार्य की प्रति भेंट कर सम्मानित किया। प्रशस्ती पत्र का वाचन कुलपति ने किया। इस अवसर पर संस्कृति रत्न अलंकरण से सम्मानित डॉ कृष्ण गोपाल ने अंलकरण सम्मान की १ लाख रूपए की राशि भारतीय साहित्य परिषद को प्रदान करने की घोषणा की।
मुख्य वक्ता के रूप में डॉ. कृष्ण गोपाल ने ’’भारतीय मध्यकालीन संत परम्परा और वह काल ‘‘ विषयक व्याख्यानमाला में कहा कि भक्ति आंदोलन ने देश को एकता के सूत्र में पिरोने काम किया है। भक्ति आंदोलन, संत आंदोलन की मिसाल दुनिया में कहीं भी देखने को नहीं मिलती। उस बिखराव के वक्त में यह आंदोलन समाज को फिर से आध्याम से जोड गया। इस आंदोलन में आध्यात्मिकता है, प्रामाणिकता है, संघर्ष करने की ताकत है। यह लोगों के हदय को जागृत करता है। सच को सच करने की हिम्मत रखता है। महिलाओं को समाज में उनका सही स्थान दिलाता है। मुख्य अतिथि प्रो बलवंत जानी ने कहा कि राजस्थान विधापीठ शिक्षा के साथ संस्कार, भारतीय जीवनमूल्य और शिक्षा के साथ हमारी प्राचीन प्रणाली का संरक्षण कर रहा है। उन्होंने कहा कि मध्यकालीन भारत में जब बहुत बडी संख्या में धार्मंतरण हो रहा था, कई जातियों को मुस्लिम बनाया जा रहा था, ऐसे समय में संत आंदोलन ने जन मानस को प्रेरणा देकर उनमें भारतीयता की भावना जगाई। अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो एसएस सारंगदेवोत ने कहा कि मध्यकालीन संत परम्परा में भक्तिमति मीरंा, संत रैदास, गुरू नानकदेव, रज्जब, कबीर, तुलसीदास, रामानुज, चैतन्य महाप्रभु सहित कई संतों ने भारतीय सभ्यता और संस्कृति को बचाने तथा समाज से कुरीतियों व रूढिवादी परम्पराओं को समाप्त करने में महत्वपूर्ण योगदान किया। राष्ट्रवाद की भावना भी यहीं पर उपजी व पल्लवित हुई जो बाद में आजादी के संघर्ष का आधार बनी। समारोह के विशिष्ठ अतिथि डॉ. हरिसिंह गौर विवि सागर मध्यप्रदेश के कुलपति प्रो. राघवेन्द्र पी तिवारी, विशिष्ठ अतिथि स्टडी अब्रॉड प्रोग्राम गुजरात विवि के निदेशक डॉ. नीरजा गुप्ता, विशिष्ठ अतिथि केन्द्री हिन्दी संस्थान आगरा के निदेशक प्रो. नन्द किशोर पांडेय, आरएसएस के वरिष्ठ प्रचारक रामस्वरूप महाराज, कुल प्रमुख बी.एल. गुर्जर ने भी विचार व्यक्त किए। संचालन डॉ हीना खान ने किया। धन्यवाद रजिस्ट्रार डॉ आरपी नारायणीवाल ने दिया। इस अवसर पर विधापीठ के डीन, डायरेक्टर्स सहित बडी संख्या में शहर के साहित्यकार, गणमान्यजन व बडी संख्या में प्रबुद्ध श्रोता मौजूद घ्

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