राज भाषा हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में राजकीय पंडित दीनदयाल उपाध्याय सार्वजनिक मण्डल पुस्तकालय द्वारा पुस्तकालय के सभागार में 14 सितम्बर को सम्भाग स्तरीय राजभाषा हिंदी दिवस सम्मेलन 2018 का आयोजन किया गया। समारोह का आरंभ अतिथियों द्वारा माँ सरस्वती की स्तुति, माल्यार्पण और दीप प्रज्ज्वलन कर किया गया।माँ सरस्वती की स्तुति ‘सुर से मैं वंदन करती हूँ, शब्द तुझे अर्पण करती हूँ..’ पुस्तकालय की सहायक पुस्तकालय अध्यक्ष श्रीमती शशि जैन ने सस्वर गा कर समारोह में ऊर्जा प्रवाहित की। उन्होंने स्वागत गीत भी प्रस्तुत किया।
पुस्तकालय अध्यक्ष डॉ. दीपक कुमार श्रीवास्तव ने समारोह के अध्यक्ष सेवानिवृत्त संयुक्त निदेशक सूचना एवम् जनसंपर्क विभाग एवं स्वतंत्र पत्रकार डॉ.प्रभात कुमार सिंघल, मुख्य अतिथि शिक्षाविद् डॉ. लखन शर्मा, विशिष्ट अतिथि कोटा की साहित्य त्रैमासिक पत्रिका ‘दृष्टिकोण’ के प्रबंध सम्पादक श्री नरेंद्र कुमार चक्रवर्ती, विशिष्ट ,वरिष्ठ पत्रिकार श्री मनोहर पारीक, सहित प्रमुख वक्ता कला महाविद्यालय, कोटा के सह आचार्य डॉ. मनीषा शर्मा, सह आचार्य डॉ.अनीता वर्मा और सह आचार्य डॉ. विवेक मिश्र का स्वागत किया।
समारोह में हिंदी भाषा सेवी सम्मान से सह आचार्य डॉ. मनीषा वर्मा, डॉ. विवेक , डॉ. अनिता वर्मा, साहित्यकार डॉ. गोपाल कृष्ण भट्ट ‘आकुल’ , श्री नरेन्द्र कुमार चक्रवर्ती प्रबंध सम्पादक दृष्टिकोण, विशिष्ट अतिथि, श्री विजय जोशी, कथाकार एवं समीक्षक , डॉ. प्रभात कुमार सिंघल, सेवानिवृत्त संयुक्त निदेशक जनसम्पर्क एवं स्वतंत्र पत्रकार ,डॉ. लखन शर्मा , शिक्षाविद्,श्रीमती सीमा घोष, शिक्षाविद् एवं सामाजिक कार्यकर्ता, श्री कँवर बिहारी दीक्षित, उद्घोषक, श्री सलीम अफरीदी, शायर, डॉ.योगेंद्र शर्मा, निदेशक शिशु भारती शिक्षा समूह, श्री मनोहर पारीक, वरिष्ठ पत्रकार , को सम्मानित किया गया. श्री योगेन्द्र सिंह तँवर को कम्प्यूटर अनुप्रयोग के लिए प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया।
पुस्तकालय द्वारा आयोजित विभिन्न प्रतियोगिताओ के विजेताओ को अतिथियों ने प्रशस्ति पत्र, स्मृति चिह्न दे कर सम्मानित किया। नारा लेखन में भगवान प्रजापत, प्रथम, रामावतार नागर, द्वितीय, सुश्री रूबिना आरा,तृतीय, श्री महावीर वर्मा को सांत्वना पुरस्कार से सम्मानित किये गए। निबंध लेखन में श्री मनोज सेन, प्रथम, श्री सागर सोनी द्वितीय, महावीर वर्मा, तृतीय, श्री भगवान प्रजापत, श्रीमती डिम्पल लोधा, श्री योगेन्द्र सिंह मीना को सांत्वना पुरस्कार एवम् श्रुतिलेखन प्रतियोगिता में श्रीमती डिम्पल लोधाप्रथम सुश्री अनिता सैजवाल , द्वितीय , सुश्री शिवानी सोनी, तृतीय सुश्री साक्षी जैन, सुश्री रूबिना आरा, श्री रामावतार नागर को सांत्वना पुरस्कार दिये गया।
आयोजित नेट / जे.आर.एफ. परीक्षा में अर्हता प्राप्त करने पर श्री रमाशंकर शर्मा, साहित्यकार, श्री विकास मालव, प्रतियोगी परीक्षार्थी, सुश्री निशा गुप्ता शोधार्थी को राजभाषा हिंदी सम्मान पत्र प्रदान किया गया. सुश्री अभिलाषा थोलम्बिया को नवोदित कवयित्री का सम्मान पत्र दिया गया. नाइजीरिया से भारत आए हिंदी का ज्ञान अर्जित करने पर नव साक्षर सम्मान से माइकेल इसीयू को सम्मानित किया गया।
अध्यक्षीय उद्बोधन मेँ सूचना एवम् जंदम्पर्क विभाग के पूर्व संयुक्त निदेशक डॉ. प्रभात कुमार सिंघल ने कहा कि आज हिंदी की सूचना एवं प्रोद्योगिकी से टक्कर है।भाषा तो अपना स्थान धीरे धीरे बना ही रही है, उसे सहेजने और उसके मान सम्मान व प्रतिष्ठा के लिए ज्यादा प्रयास जरूरी नहीं, जरूरी है हमें आज की सूचना व प्रोद्योगिकी के क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ने की है ताकि हम अपनी हिंदी भाषा को स्थापित कर सकें।आज मोबाइल क्रांति इसका उदाहरण है।
मुख्य वक्ता कला महाविद्यालय की सह आचार्य श्रीमती अनीता वर्मा ने कहा कि हिंदी केवल भाषा ही नहीं वह हमारे मान, सम्मान, हमारी प्रतिष्ठा का द्योतक है. कोई भी राष्ट्र, कोई भी जीवंत समाज अपनी भाषा के दम पर ही पहचान पाता है, क्यों भाषा अभिव्यक्ति की संवाहक होती है. उन्होंने कहा कि पुस्तकालयों का महत्व आज भी है, पर समय के साथ कदमताल मिला कर चल कर वर्तमान में सूचना एवं संचार माध्यमों व तकनीकी के साथ कदम ताल मिला कर भी चलना होग।
मुख्य वक्ता कला महाविद्यालय, कोटा की ही सह आचार्य श्रीमती मनीष शर्मा ने कहा कि हिंदी दिवस व हिंदी भाषा का प्रश्न ‘नित गौरव का नित ध्यान रहे, हम भी कुछ हैं यह ज्ञान रहे, जब जाये पर मान रहे ‘ मैथिली शरण गुप्त जी की यह बात दुहराते हुए कहूँगी कि हमें अपनी मातृभाषा का भी मान रखना होगा. उन्होंने रामायण के वाक्य का भी दृष्टांत देते हुए कहा- -जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’’ कि भगवान राम को भी अपनी जन्मभूमि सभी वैभवों से सर्वोच्च व प्यारी थी. उन्होंने बताया कि हमें इस मानसिकता को दूर करना होगा कि हिंदी अंग्रेजी से श्रेष्ठ है, हमें अपनी मानसिकता बदलनी होगी. संयुक्त राष्ट्र संघ में हमारे पूर्व प्रधानमंत्री ने भाषण अपनी राष्ट्र की भाषा हिंदी में दिया था, फिर वह कहाँ श्रेष्ठ नहीं है, इसलिए हमें हिंदी की मार्यादा के लिए अपनी भूमि, अपनी भाषा से जुड़ना होगा और अपनी मातृभाषा को सँभालना होगा।। उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता के समय जो राज भाषा समिति बनाई गयी थी उसे पंद्रह वर्ष का समय दिया गया था, आज दुनिया में अधिकतर देशों में हिंदी पढ़ाई जा रही है, अनेक विश्वविद्यालय इस भाषा को गंभीरता से ध्यान दे रहे हैं, अब राजभाषा समिति को हिंदी को राष्ट्र भाषा बनाये जाने के लिए अपनी अनुशंसा कर देनी चाहिए।
अपने वक्तव्य में कला महाविद्यालय के ही सह आचार्य डॉ. विवेक मिश्र ने कहा कि हम सब हिंदी से जुड़े हुए लोग हैं, हमें मेरा यह दृढ़ता के साथ मानना है कि आपके भीतर आत्मसम्मान होगा, तो आप न केवल अपनी भाषा की सर्जना करेंगे, अपने आप को भी मुक्त करेंगे.भाषा का काम होता है आपको अपने बंधन में बाँधना जिसके तहत आप अपनी भाषा का उन्नयन करते हैं और पूर्णत: सीखने पर फिर आपको मुक्त कर देती है. आज भी हम भले ही अंग्रेजी जानते हैं पर जब बोलते हैं तो हिंदी को सोच कर बोलते हैं, हिंदी की तरह धाराप्रवाह नहीं बोल पाते, इसलिए आपको अपनी भाषा से जुड़े होने का प्रमाण है. हिंदी हम भारतीयों के लिए सार्वभौमिक भाषा हे, इसके बिना हमारा अस्तित्व कुछ भी नहीं।
विशिष्ट अतिथि श्री नरेंद्र चक्रवती ने बताया कि आज की महती आवश्यकता है कि हम भी उनकी तरह अपनी हिंदी के ही माध्यम से वर्तमान सूचना एवं प्रोद्योगिकी को अपना कर विश्व में अपना एक स्थान अपना एक बाजार स्थापित कर सकते हैं। हिंदी का उद्भव संस्कृति से हुआ कालांतर में धीरे धीरे हिंदी का स्वरूप छंदों व भक्ति रचनाओं के माध्यम से विकसित हुआ, मुगलकाल में अरबी फारसी के कारण हिंदी के ही रूप में उर्दू स्थापित हुई क्योंकि राष्ट्र भी भाषा के माध्यम से ही जनता के मध्य सेतु का कार्य करता ।. मुगल शासन में उर्दू/अरबी/फारसी राष्ट्र की प्रशासनिक भाषा बनी, हिंदी उर्दू के रूप में जन जन की भाषा बनी, बाद में अंग्रेजी शासन में अंग्रेजी का प्रभाव बढ़ा, और स्वतंत्रता प्राप्ति के समय हमारे देश में सभी भाषाओं की अपनी लोक भाषा अवश्य थी किंतु प्रशासनिक स्तर पर हिंदी को पूरा समर्थन नहीं बन पाया और हिंदी को राष्ट्र भाषा के स्थान पर राजभाषा का दर्जा दिया गया।
. समारोह में कवि शायर शकूर अनवर ने हिंदी पर एक नज्म प्रस्तुत की इसी क्रम में मण्डल पुस्तकालय अध्यक्ष के आभार प्रदर्शन के पूर्व पुस्तकालय के लिए डॉ. गोपाल कृष्ण भट्ट ‘आकुल’ द्वारा ‘पुस्तक’ शब्द पर रचित एक गीतिका के पोस्टर का विमोचन किया गया।
डॉ.दीपक श्रीवास्तव ने सभी का आभार जताते हुए कहा कि आज हमारा पुस्तकालय भी सूचना प्रोद्योगिकी से कदम ताल चल कर चल रहा है। यूनिकोड के बारे में बताते हुए कहा कि एक ऐसा कोड सब में सार्वभौमिक रूप से रूपांतरित कर देता है। कमाल देखें इसे जो लोग देख नहीं पाते, बुजुर्ग लोग बिना चश्मा पढ़ नहीं पाते, अब किताबें बोल उठेंगी, हिंदी ओसीआर एक सोफ्टवेयर है उसे लोड करिये , किसी भी किताब को स्केन कर उसे उसमें लोड कर दीजिए, वह यूनिकोड में बदल जायेगी, प्ले टेक वाच लगाइये और पूरी किताब को पढ़ लीजिए. उन्होंने लाइब्रेरी में तकनीकी के इस्तेमाल के बारे में भी बताया।
समारोह क संचालक श्री विजय जोशी ने किया।
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