मन रूपी पात्र पर सन्तोष का आवरण जरूरी: सुमित्रसागारजी

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Published on : 12 Aug, 18 03:08

 मन रूपी पात्र पर सन्तोष का आवरण जरूरी: सुमित्रसागारजी उदयपुर । तेलीवाड़ा स्थित हुमड़ भवन में बिराजित परम पूज्य चतुर्थ पट्टाधीश प्राकृताचार्य ज्ञान केसरी आचार्य श्री 108 सुनीलसागर जी महाराज के सुशिष्य क्षुल्लक सुमित्र सागरजी महाराज ने धर्मसभा में जैन रामायण का वाचन करते हुए मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम जी के जीवन की महिमा बताते हुए कहा कि उनके पास हर वैभव होने के बावजूद अपने माता- पिता का आज्ञा का पालन करते हुए एक पल में सब कुछ त्याग दिया। यह उन्होंने इसलिए किया ताकि संसार के प्राणियों को यह समझ आए कि धन- वैभव से भी बड़ी अगर संसार में कोई चीज है तो वह है धर्म और मर्यादा के रास्ते पर चलना। जिनके पास धन वैभव सब कुछ है लेकिन माता- पिता और गुरू का आशीर्वाद नहीं है तो वह मनुष्य धन- वैभव होते हुए भी संसार में एक Èकीर के समान होता है।
महाराज ने एक दृष्टान्त सुनाते हुए समझाया कि एक बार एक Èकीर अपना छोटा सा पात्र लेकर भिक्षा लेने राजा के दरबार में पहुंचा। राजा ने कहा- मांगों जो मांगना है। Èकीर ने कहा- मुझे ज्यादा कुछ नहीं चाहिये, बस मेरा यह छोटा सा भिक्षा का पात्र है वह स्वर्ण मुद्राओं से भर दो। राजा के यहां कोई भी याचक जाता उसकी सूर्यास्त से पहले इच्छा पूरी करने का नियम था। राजा ने स्वर्ण मुूद्राएं मंगवाई और याचक के पात्र में डालना शुरू किया लेकिन वह छोटा सा पात्र भर नहीं पा रहा था। राजा ने कई प्रयास किये, उनके पास जितनी भी स्वर्ण मुद्राएं थी उस पात्र में डाल दी Èिर भी वह पात्र नहीं भर पाया। राजा ने Èकीर से पूछा- यह आपका पात्र कोई साधारण पात्र नहीं है आखिर इसमें ऐसा क्या है जो यह खाली का खाली ही रहता है। Èकीर ने कहा- राजन यह पात्र मनुष्य के मन से बनाया गया है, इसे भरना इतना आसान नहीं है।
महाराज ने कहा कि जीवन का सार भी यही है कि जब तक हम अपने मन रूपी पात्र को अपने वश में नहीं कर लेंगे तब तक हम संसार में भटकते ही रहेंगे। इस पात्र को सन्तोष रूपी आवरण से ढंकना होगा तभी जीवन में शांति और आनन्द की प्राप्ति हो सकती है। प्रभुश्री राम ने भी अपने मन वचन और काया पर विजयी पाई और संसार में वह मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम के नाम से पूजनीय कहलाये।
सकल दिगम्बर जैन समाज अध्यक्ष शांतिलाल वेलावत ने बताया कि धर्मसभा में पूर्व आचार्यश्री सुनीलसागरजी महाराज के सभी पूर्वाचार्यों के चित्र का अनावरण किया गया। उसके बाद दीप प्रज्वलन, सुनीलसागाजर महाराज ससंघ की अद्वविली सेठ शांतिलाल नागदा, सुरेशचन्द्र राज कुमार पदमावत, सेठ शांतिलाल नागदा, देवेद्र छाप्या, पारस चित्तौड़ा, विजयलाल वेलावत, राजपाल लोलावत, शांतिलाल चित्तौड़ा, कनक माला छाप्या आदि श्रावकों ने मांगलिक क्रियाएं की। धर्मसभा का संचालन बाल ब्रह्मचारी विशाल भैया ने किया जबकि मंगलाचरण बाल ब्रह्मचारी पूजा हण्डावत ने किया।
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