भगवान झूलेलाल का चालीहा महोत्सव

( 43212 बार पढ़ी गयी)
Published on : 12 Aug, 18 01:08

भगवान झूलेलाल का चालीहा महोत्सव दयपुर ।सनातन धर्म सेवा समिति द्वारा भगवान झुलेलाल सांई चालीहा महोत्सव शक्तिनगर स्थित सनातन धर्म मंदिर पर 16 जुलाई से 24 अगस्त तक भगवान झूलेलाल का चालीहा महोत्सव मनाया जाएगा , 10अगस्त शुक्रवार को भक्तो द्वारा 56 भोग प्रसाद रखा गया उसके पश्चात शाम को भजन कीर्तन पूजा अर्चना, पंजडा,पल्लव व आरती हुई तथा शनिवार को 56 भोग प्रसाद भक्तों मे बाटा गया ।
समाज के उपाध्यक्ष जितेन्द्र तलरेजा ने बताया कि चालीहा का कार्यक्रम 24 अगस्त तक प्रतिदिन होगा इस कार्यक्रम में चालीस दिनों तक भक्तो द्वारा अलग अलग प्रसाद का भोग लगाया जाता है।
कार्यक्रम मे समाज के नानक राम कस्तूरी,जितेंद्र तलरेजा, विजय आहुजा, डब्बू,बसन्त कस्तूरी, नारायण दास , जेतुराम , अर्जुन खुराना आदि उपस्थित थे ।


----------------------------------------------------------------
*भगवान झूलेलाल चालीहा उत्सव क्यों मनाया जाता है*
----------------------------------------------------------------

श्री बिलोचिस्तान पचांयत के महासचिव विजय आहुजा ने बताया कि भगवान झूलेलाल के इस दिवस को सिंधी समाज चालीहा उत्सव के रूप में मनाता है। कुछ विद्वानों के अनुसार सिंध का शासक मिरखशाह अपनी प्रजा पर अत्याचार करने लगा था जिसके कारण सिंधी समाज ने 40 दिनों तक कठिन जप, तप और साधना की। तब सिंधु नदी में से एक बहुत बड़े नर मत्स्य पर बैठे हुए भगवान झूलेलाल प्रकट हुए और कहा मैं 40 दिन बाद जन्म लेकर मिरखशाह के अत्याचारों से प्रजा को मुक्ति दिलाउंगा। चैत्र माह की द्वितीया को एक बालक ने जन्म लिया जिसका नाम उडेरोलाल रखा गया। अपने चमत्कारों के कारण बाद में उन्हें झूलेलाल, लालसांई, के नाम से सिंधी समाज और ख्वाजा खिज्र जिन्दह पीर के नाम से मुसलमान भी पूजने लगे। चालीहा के दिन श्रद्धालु बहिराणा साहिब बनाते हैं। शोभा यात्रा में ‘छेज’ (जो कि गुजरात के डांडिया की तरह लोकनृत्य होता है) के साथ झूलेलाल की महिमा के गीत गाते हैं। ताहिरी (मीठे चावल), छोले (उबले नमकीन चने) और शरबत का प्रसाद बांटा जाता है। शाम को बहिराणा साहिब का विसर्जन कर दिया जाता है,सिंधी समाज हर साल जुलाई-अगस्त महीने में चालिहा उत्सव मनाता है। 40 दिनों तक कठिन व्रत रखते हुए अखंड ज्योति की पूजा अर्चना की जाती है। माना जाता है कि ऐसा करने से मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।
भगवान झूलेलाल के मंदिरों में पहुंचकर विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। देर रात तक भजन कीर्तनों का दौर जारी रहता है। आखिरी दिन भगवान झूलेलाल की झांकियां भी निकाली जाती हैं,झूलेलाल सिन्धी हिन्दुओं के उपास्य देव हैं जिन्हें इष्ट देव कहा जाता है। उनके उपासक उन्हें वरुण (जल देवता) का अवतार मानते हैं। वरुण देव को सागर के देवता, सत्य के रक्षक और दिव्य दृष्टि वाले देवता के रूप में सिंधी समाज भी पूजता है।
समाज का विश्वास है कि जल से सभी सुखों की प्राप्ति होती है और जल ही जीवन है। जल-ज्योति, वरुणावतार, झूलेलाल सिंधियों के ईष्ट देव हैं जिनके बागे दामन फैलाकर सिंधी यही मंगल कामना करते हैं कि सारे विश्व में सुख-शांति, अमन-चैन, कायम रहे और चारों दिशाओं में हरियाली और खुशहाली बने रहे।

साभार :


© CopyRight Pressnote.in | A Avid Web Solutions Venture.