अपराधियों को मिले पूरी सजा, वरना पब्लिक ले लेगी बदला

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Published on : 05 Aug, 18 02:08

अपराधियों को मिले पूरी सजा, वरना पब्लिक ले लेगी बदला सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अपराधियों को उनके गुनाह के लिए पर्याप्त सजा नहीं दी गई तो लोग सड़क पर ही बदला ले लेंगे। अदालतों के असफल होने पर प्रतिशोध की भावना से ग्रस्त पीड़ित व्यक्ति कानून को अपने हाथ में ले लेगा और हिंसा के लिए विवश हो जाएगा। गुनहगारों को पर्याप्त सजा न देने से समूचा न्यायिक सिस्टम निर्थक हो जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी अपने पड़ोसी का सिर फोड़ने वाले शख्स को मात्र छह दिन की सजा देने पर की। राजस्थान हाई कोर्ट ने तीन साल की सजा को छह दिन में तब्दील कर दिया था। हाई कोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने अचरज जताया। जस्टिस एनवी रमण और मोहन शांतानौगदार की बेंच ने कहा कि हाई कोर्ट का रवैया चौंकाने वाला है। पुलिस ने हत्या के प्रयास का मामला दर्ज किया था। वारदात में एक शख्स के सिर पर गंभीर चोटें आई थी। उसके सिर की हड्डी टूट गई थी। डाक्टर ने भी अपनी गवाही में कहा कि यह चोट जानलेवा थी। सत्र अदालत ने भी मामले को बहुत हल्के में लिया। आईपीसी की धारा 307 के बजाए अभियुक्त मोहन लाल तथा उसके एक अन्य साथी को आईपीसी की धारा 325 और 323 के तहत दोषी ठहराया और तीन-तीन साल की सजा दी। गुनहगारों की अपील पर फैसला देते समय हाई कोर्ट ने दरियादिली दिखाई और उतनी सजा दी जितनी वह विचाराधीन कैदी के रूप में काट चुके थे। जमानत पर छूटने से पहले अभियुक्त सिर्फ छह दिन जेल में रहे थे। छह दिन की जेल को सजा बताकर उन्हें खुला छोड़ दिया गया। हाई कोर्ट का फैसला झकझोरने वाला है। मात्र छह दिन की सजा देने के पीछे कोई कारण भी नहीं बताया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आईपीसी में अधिकतम और न्यूनतम सजा का जिक्र है। विधायिका ने अपराध के लिए सजा की अवधि अलग-अलग निर्धारित नहीं की है। सजा की अवधि का अधिकार अदालतों को दिया गया है। अदालतें अपने विवेक से सजा की अवधि तय करती हैं। लेकिन अपराधी को कितनी सजा दी जाए, इसके लिए अपराध की गंभीरता को देखा जाता है। अपराध के शिकार व्यक्ति की पीड़ा और आपराधिक कृत्य के बीच संतुलन कायम करके ही जेल में काटी जाने वाली अवधि तय की जाती है। हाई कोर्ट ने 1992 में दायर अपील का निपटारा 23 साल बाद 2015 में किया था। जमीन के विवाद को लेकर मोहन लाल और उसके साथी ने कपूरचंद और फूलचंद पर जानलेवा हमला किया था। दोनों घायलों के अलावा एक अन्य चश्मदीद ने ट्रायल कोर्ट में ठोककर गवाही दी थी। उनकी गवाही के बल पर सत्र अदालत ने अभियुक्तों को सजा सुनाई थी। वारदात राजस्थान के सांभरलेक जिले में हुई थी। गुनहगारों को दी गई मामूली सजा के खिलाफ राजस्थान सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वारदात के बाद से दोनों पक्षों के बीच समझौता होने की बात सामने लाई गई है। दोनों पक्ष आपसी मतभेद भुलाकर 25 साल से सौहार्दपूर्ण तरीके से रह रहे हैं। इसलिए गुनहगार को छह माह की सजा के साथ 25 हजार रपए जुर्माना उचित होगा। जुर्माने की रकम वारदात में घायल कपूर चंद को मुआवजे के तौर पर मिलेगी।
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