उल्टी परिक्रमा से खुश होती हैं देवी मैया

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Published on : 10 Jun, 18 10:06

अनूठा देवी तीर्थ झाँतला माता उल्टी परिक्रमा से खुश होती हैं देवी मैया लकवाग्रस्तों को मिलता है सेहत का वरदान

उल्टी परिक्रमा से खुश होती हैं देवी मैया डॉ. दीपक आचार्य/9413306077/www.drdeepakacharya.com शक्ति एवं भक्ति के धाम मेवाड़ में शक्ति उपासना की प्राचीन परम्परा रही है। क्षेत्र भर में हर कहीं देवी मैया के छोटे-बड़े और प्राचीन व नवीन मन्दिर विद्यमान हैं, जिनके प्रति जन आस्था का ज्वार उमड़ता रहा है।

मेवाड़ के विभिन्न क्षेत्रों में इन जागृत एवं सिद्ध शक्तिपीठों की पुरातन श्रृंखला विद्यमान हैं, जिनके प्रति आमजन से लेकर ख़ास तक में श्रृद्धा और भक्ति का समन्दर लहराता रहा है। इसी तरह का प्रसिद्ध देवी तीर्थ है झाँतला माताजी।

आशाओं का द्वार है यह धाम

चित्तौड़गढ़ जिला मुख्यालय के समीप माताजी की पाण्डोली गांव में राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे प्राचीन देवी तीर्थ विस्तृत परिसर में अवस्थित है। कई खासियतों से भरा यह धाम लकवाग्रस्त रोगियों के लिए रोगमुक्ति के धाम के रूप में दूर-दूर तक मशहूर है। देवी तीर्थ का भव्य प्रवेश द्वार मेहराब और गवाक्षों से सुसज्जित है।

सात बहनों वाला मन्दिर

झांतला माताजी के मूल मन्दिर में अधिष्ठान पर सात देवी प्रतिमाएं हैं जिन्हें बहनें माना जाता है। गर्भगृह में चाँदी की सुन्दर कारीगरी की हुई है। गर्भगृह के ठीक बाहर पाश्र्ववर्ती दीवारों पर बने आलीयों में दोनों तरफ भैरवनाथ तथा बाहरी तरफ देवी मूर्तियां, सिंह, द्वारपाल आदि की प्रतिमाएं हैं। मन्दिर के परिक्रमा स्थल के तीनों तरफ प्राचीन कलात्मक मूर्तियां स्थापित हैं।

लहराता है अगाध आस्था का समन्दर

लोगों की अगाध आस्था झांतला माता पर इतनी अधिक है कि भक्तजन इन्हें मनोकामना पूरी करने और आरोग्य देने वाली मैया के रूप में पूजते हैं और अपनी संरक्षक के रूप में श्रद्धा-भक्ति के साथ मानते हैं। पुराने जमाने से झांतला माता उन लोगों के लिए वरदान है जिन्हें लकवा का प्रकोप घेर लेता है।

मन्दिर परिसर ही है अस्पताल

लकवाग्रस्त रोगी मैया के दरबार में पहुंचकर देवी मैया की मूर्ति के समक्ष धोक लगाते हैं और मन्दिर परिसर तथा परिक्रमा स्थल में ही डेरा जमाये रहते हैं। देवी मैया की यथाशक्ति अधिक से अधिक उल्टी परिक्रमा करते रहते हैं। इसके अलावा देवी मैया का नाम लेकर अभिमंत्रित तेल की मालिश अपने परिजनों से करवाते हैं।

हर जन्म के पापों से मुक्ति

परिक्रमा के मामले में यह मन्दिर अनूठा है। यहाँ देवी की परिक्रमा सीधी न होकर विपरीत दिशा से की जाती है अर्थात मूल मन्दिर की बांयी ओर से परिक्रमा की जाती है। लोक मान्यता है कि इससे पुराने जन्मों के दैहिक, दैविक और भौतिक संतापों का शमन होता है और देवी मैया प्रसन्न होती हैं।

देवी शक्तियों से भरा है वटवृक्ष

मन्दिर प्रांगण में कई सारे प्राचीन वटवृक्ष है, जिनमें से एक विराट वट वृक्ष को जिसे देवी मैया की दिव्य शक्तियों से परिपूर्ण मानकर पूजा जाता है। लकवाग्रस्त स्त्री-पुरुष इस दिव्य वृक्ष के विशाल तने की उल्टी परिक्रमा करते हैं और दो तनों के बीच से होकर निकलते हैं। भक्तों की आस्था है कि वट वृक्ष की परिक्रमा और तनों के बीच से होकर निकलने पर देवी की कृपा से मानसिक और शारीरिक बीमारियां दूर होकर आरोग्य एवं सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।

यह भी है अनूठा अनुभव

इस वटवृक्ष के स्तंभों के बीच से होकर निकलना भी अलग ही अनुभव देता है। एक ओर जहां आस्था की ताकत जिस्म में सामथ्र्य लाती है, वहीं लगातार परिक्रमाएं और वटवृक्ष के तने से होकर निकलने में शारीरिक मुद्राओं का परिवर्तन किसी फीजियोथैरेपी से कम नहीं होता।

मिलता है सभी को आरोग्य का सुकून

लकवा रोगियों के अलावा यहाँ आने वाले आम दर्शनार्थी भी उल्टी परिक्रमाएं, दर्शन, पूजन-अर्चन आदि करते हैं। इनका विश्वास है कि झांतला माता की कृपा से जीवन में लकवे के प्रकोप से बचे रहते हैं वहीं आरोग्य बना रहता है और रोगों से मुक्तिदायी प्रतिरोधक शक्ति हमेशा बनी रहती है।

दूर-दूर तक मशहूर हैं झांतला माता

मेवाड़ का यह देवी धाम न केवल चित्तौड़ और आस-पास बल्कि समीपवर्ती जिलों से लेकर मध्यप्रदेश तक के भक्तजनों में प्रसिद्ध है। साल भर भक्तों का आवागमन बना रहता है। दोनों नवरात्रियों में हजाराें श्रृद्धालु यहाँ पहुंचते हैं।

बड़ी संख्या में लकवा प्रभावित रोगियों को मन्दिर परिसर तथा आस-पास के विश्रामस्थलों में आराम फरमाते अथवा परिक्रमा करते हुए देखा जा सकता है। लकवा रोगियों को उनके परिजन देवी मैया का नाम लेकर तेल मर्दन करते हैं।

इनका विश्वास है कि झांतला माता के दरबार में आया व्यक्ति लकवे से मुक्त होकर ही घर लौटता है। कई लोग सप्ताह से लेकर पखवाड़े भर तक यहाँ रुककर देवी मैया से प्रार्थना, परिक्रमा आदि करते हैं।

अभिमंत्रित धागों का संसार

यहाँ आने वाले लकवाग्रस्त रोगियों को देवी मैया की मूर्तियों से स्पर्श कराया हुआ धागा लकवाग्रस्त अंग पर बांधा जाता है। यह तब तक रहता है जब तक की रोगमुक्त न हो जाएं।

लकवे से मुक्ति पा चुकने के बाद इस धागे को खोलकर यहाँ प्रांगण में अवस्थित वटवृक्ष या इसके चारों ओर बनी रेलिंग पर बांध दिया जाता है। इस स्थल पर हजारों ऎसे धागे बंधे हुए हैं जो इस बात के साक्षी हैं कि देवी मैया की कृपा से अब तक हजारों रोगी भले-चंगे हो चुके हैं।

इसके अलावा उन लोगों के भी धागे बंधे हुए हैं जिनकी मनोकामनाएं झांतला माता की कृपा से पूर्ण हो चुकी हैं। ये धागे बताते हैं कि देवी की कृपावृष्टि अनवरत बनी रहती है।

श्रद्धालुओं के लिए हैं व्यापक बन्दोबस्त

झांतला माता धाम पर श्रृद्धालुओं के लिए सार्वजनिक और विभिन्न समाजों की कई धर्मशालाएं, विश्राम स्थल आदि बने हुए हैं जहां दर्शनार्थियों के लिए सभी प्रकार की सुविधाएँ उपलब्ध हैं।

भक्तों के अनुसार झांतला माता की जोत जहाजपुर (भीलवाड़ा) से यहां लाई गई है और इस वजह से भीलवाड़ा व आस-पास के क्षेत्रों के भक्तों की यहाँ बहुतायत रहती है। देवी तीर्थ की व्यवस्थाओं, देखरेख तथा विकास के लिए मन्दिर श्री झांतला माताजी सार्वजनिक प्रन्यास बना हुआ है। धार्मिक सामग्री और खाने-पीने आदि की कई दुकानें हैं।

झांतला माता की कृपा से आरोग्य प्रदान करने वाला यह प्राचीन धाम लोक श्रद्धा और आस्था का बड़ा भारी केन्द्र है जो यह अनुभव कराता है कि देवी मैया की कृपा और दिव्य शक्तियों का सान्निध्य हर मनचाहा सुकून देने को काफी है। इसका अहसास वही कर सकता है जो इस धाम पर कदम रख चुका हो।
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