ईश्वर, वेद, आर्यसमाज और ऋषि भक्त पं. सत्यपाल पथिक - एक समर्पित प्रेरणादायक जीवन एवं उनके कुछ कार्य

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Published on : 21 May, 18 10:05

मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून

ईश्वर, वेद, आर्यसमाज और ऋषि भक्त पं. सत्यपाल पथिक - एक  समर्पित प्रेरणादायक जीवन एवं उनके कुछ कार्य पं. सत्यपाल पथिक जी आर्यजगत की दिव्य एवं महान विभूति हैं। आपने सारा जीवन आर्यसमाज की सेवा में लगाया है। आपने ईश्वर, वेद, ऋषि दयानन्द, आर्यसमाज और आर्य महापुरुषों के जीवन पर सहस्रों प्रभावशाली गीतों वा भजनों की रचना की है। आपके गीत व भजन न केवल आर्यसमाज के भजनोपदेशक व गायक ही गाते हैं अपितु पौराणिक घरों व उनके प्रचारकों द्वारा मुख्यतः सुधांशु महाराज द्वारा भी गाये जाते हैं। किसी भी रचनाकार के लिए ऐसे क्षण बहुत सुखद होते हैं जब वह अपनी रचना को अपनी विचारधारा के लोगों के द्वारा गाया व उसका लाभ लेता हुआ तो देखता ही है, इतर विचारधाराओं के लोगों द्वारा भी उन्हें पूरी तन्मयता व भाव विभोर होकर गाता व सुनता है। पथिक जी ने अनेक स्थानों पर इस बात को भी ध्यान में रखा है कि कुछ लोकप्रिय फिल्मी गीतों की धुनों पर भी अपने गीतों की रचना करें। उन्होंने ऐसा किया है और इसमें भी वह बहुत सफल हुए हैं।

पं. जी के हमें अनेक स्थानों पर दर्शन हुए हैं। देहरादून के गुरुकुल पौंधा तथा वैदिक साधन आश्रम तपोवन के प्रत्येक आयोजन में वह स्वेच्छा से उपस्थित होते हैं। आर्यसमाज में उनके समान भजनोपदेशक कम ही हैं जो किसी आयोजन में बिना आमंत्रण के एक श्रोता के रूप में अपनी ओर से यात्रा पर व्यय करके उपस्थित होते हों। उनका यह गुण हमें उन्हें सचमुच में महान बनाता है। उनकी कोटि का ऐसा भजनोपदेशक आर्यसमाज में इस समय शायद ही कोई और हो। काव्य रचना कोई सरल कार्य नहीं है। काव्य रचना कर लेने पर उसे दूसरे लोग पसन्द करें व उसे खुद गाया करें ऐसे रचनाकार बहुत कम ही होते हैं। पं. सत्यपाल पथिक जी का जीवन एवं व्यवहार बहुत सरलता एवं सादगी से युक्त है। वह साधारण लोगों से भी बड़े स्नेह व प्रेम से मिलते हैं। उनसे बातें करते हैं और उनके कार्यों के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं। ऐसा करके वह उन्हें प्रोत्साहित भी करते हैं। हम भी उनमें से एक हैं। पंडित जी को हमने गुरूकुल गौतमनगर दिल्ली, परोपकारिणी सभा अजमेर द्वारा आयोजित ऋषि मेले तथा ऋषि जन्म भूमि स्मारक न्यास, टंकारा के आयोजनों में प्रति वर्ष उपस्थित होते देखा है। उनकी ऋषि भक्ति अनूठी एवं प्रेरणादायक होने के साथ अनुकरणीय एवं प्रशंसनीय है। आर्यसमाज के अन्य भजनोपदेशकों को उनके जीवन, कार्य और त्यागभाव से प्रेरणा ग्रहण करनी चाहिये।

पंडित सत्यपाल पथिक जी के एक पुत्र श्री दिनेश पथिक जी हैं। आप भी आर्य भजनोपदेशक हैं। देश भर में आप आर्यसमाज के उत्सवों में आमंत्रित किये जाते हैं। हमने उन्हें देहरादून के वैदिक साधन आश्रम तपोवन तथा टंकारा में ऋषि जन्म भूमि न्यास द्वारा आयोजित ऋषि बोधोत्सव में भी सुना है। यूट्यूब पर भी आपके भजन सुलभ हैं। आप की आवाज बहुत सुरीली है। शास्त्रीय गायन व आजकल के फिल्मी व इतर गानों की तरह आप भजनों को बहुत प्रभावशाली ढंग से गाते हैं। सुनकर श्रोता मंत्र मुग्ध हो जाता है। आज दिनांक 20-5-2018 को आप आर्यसमाज सिलीगुड़ी (पंश्चिम बंगाल) में हैं। हमने उनकी व्हटशप पोस्ट में वहां के चित्र देखे हैं। इस अवसर का उनका चित्र भी हम इस पोस्ट के साथ प्रस्तुत कर रहे हैं। श्री दिनेश पथिक जी हिन्दी व पंजाबी दोनों ही भाषाओं के भजन गाते हैं। आपके द्वारा गाये जाने वाले भजनों में पंडित सत्यपाल पथिक जी के भजन होते हैं और अन्य विद्वानों के लिखे भजन भी होते हैं। श्री सत्यपाल पथिक जी ने अपने सुपुत्र श्री दिनेश पथिक जी को आर्य भजनोपदेशक बनाकर आर्यसमाज को एक बहुमूल्य देन दी है। यह आपकी ऋषि दयानन्द और आर्यसमाज के प्रति समर्पण, भक्ति एवं सेवा की भावना का प्रमाण है।

पथिक जी ने सहस्रों भजन लिखे हैं। आपका भजन संग्रह दो खण्डों में श्री घूड़मल प्रह्लादकुमार आर्य धर्मार्थ न्यास, हिण्डोन सिटी से प्रकाशित हुआ है। कुछ अन्य भजन भी दो खण्डों में प्रकाशित हुए हैं। आपके भजनों की सीडी व वीसीडी भी उपलब्ध हैं। समय समय पर हमने भी आपके अनेक भजनों की वीडियो रिकार्डिगं की है। यदा-कदा हम उन्हें सुनते रहते हैं। आपके भजनों को सुधांसु महाराज भी प्रभावशाली रूप से गाते हैं। कभी कभी हम उन्हें भी सुन लेते हैं। यह भी बता दें कि श्री सुधांसु महाराज भी कुछ वर्ष पूर्व आर्यसमाज दीवानहाल के भजनोपदेशक वा पुरोहित हुआ करते थे। इस कारण उनके प्रवचनों व भजनों पर आर्यसमाज की छाप स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होती है। पथिक जी ने दयानन्द चालीसा भी लिखी है और उसे भव्य रूप में प्रकाशित किया है। इसे उन्होंने 6 माह पूर्व वैदिक साधन आश्रम तपोवन में गाया था। वहां हमने इसकी रिकार्डिंग की थी। यह दयानन्द चालीसा भी सुनने योग्य है। पथिक जी और दिनेश जी इस दयानन्द चालीसा को बहुत तन्मय होकर गाते हैं। श्रोता भी इसे सुनकर मंत्रमुग्ध हो जाते हैं।

पंडित सत्यपाल पथिक जी ने आर्यसमाज के प्रचार व प्रसार के लिए अनेक प्रकार से तप व पुरुषार्थ किया है जिसके लिए आर्यसमाज उनका ऋ़णी है। आपने भजनोपदेशक के रूप में देश के दूरस्थ व दुगर्म स्थानों पर जाकर भजनों के द्वारा ऋषि भक्तों को आन्दोलित व अपने जीवन के सुधार की प्रेरणा दी है। भजन लेखन द्वारा आपका योगदान तो सारा आर्यजगत व अन्य लोग भी स्वीकार करते हैं। आपने गीत लेखन व भजन गायन के द्वारा आर्यसमाज की जो सेवा की है उसके कारण आप सदा अमर रहेंगे।

हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि पंडित सत्यपाल पथिक जी स्वस्थ, निरोग, बलवान रहते हुए पूर्ववत् सक्रिय सामाजिक जीवन व्यतीत करते रहें। हम उनकी नई नई रचनाओं से लाभान्वित होते रहें और उन्हें उनकी ही मधुर वाणी के माध्यन से सुनते रहे। उनका आशीर्वाद और स्नेह समस्त आर्यजगत को मिलता रहे। ओ३म् शम्।

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