
डॉ.प्रभात कुमार सिंघल,लेखक एवम् पत्रकार,कोटा 1857 की कान्ति की शुरुआत 10 मई 1857 को मेरठ से हुई जब सैनिकों ने चर्बी लगे कारतूसों का उपयोग करने से मना कर दिया और विद्रोह कर दिया।शीघ्र ही विद्रोह कानपुर,बरेली,झांसी,दिल्ली एवम् अवध आदि स्थानों पर फैल गया।
इस विद्रोह की चिंगारी कोटा राज्य में भी भड़की। कोटा में इस की शुरुआत प्रकट रूप में 15 अक्टूबर को हुई,जब पोलिटिकल एजेंट मेजर बर्टन द्वारा जयदयाल सहित कुछ प्रमुख आंदोलनकारियों को गिरफ्तार करने के षड्यंत्र का पता चलने पर फौजे भड़क उठी। इस के चलते सेना एवम् जनता ने एजेंटी बंगले को घेर लिया और चार घंटे तक गोलीबारी की।बंगले को आग लगा दी गई।मेजर बर्टन एवम् उसके दोनों पुत्रो की हत्या कर बर्टन का सिर शहर में घुमा कर तोप से उड़ा दिया।पुरे शहर पर कब्जा कर लिया तथा महाराव गढ़ में बंद हो गए।
महाराव की मदद के लिए गुप्त द्वार से राजपूत सरदार एवम् पर्याप्त सैनिक जमा हुए और उन्हों ने विद्रोहियों पर हमला करने की योजना बनाई। अंग्रेज सरकार से मदद के लिए दिल्ली जा रहे हरकारे को विदृहियों ने पकड़ लिया। विदोहियो ने भड़क कर गढ़ पर हमला बोल दिया। जब विद्रोही गढ़ पर कब्जा नही करसके तो नगर के सेठों एवम् जागीरदारों की हवेलियाँ लूटना शुरू कर दिया।मेहराब खां ने कोयला वालों की हवेली के द्वार को तोप के गोलों से उड़ा दिया। दानमल जी की हवेली पर भी हमला किया गया।
आन्दोलंकारोयों के होंसले बुलंद थे। कुछ दिन बाद महाराव ने 500-500 सैनिकों की टुकड़ियां गढ़ से पाटनपोल,केथूनीपोल दरवाजे की तरफ भेजी। दिन भर घमासान युद्ध के बाद सैनिक दरवाज़ों पर कब्जा करने में सफल रहे।करीब 500 राजपूत सैनिक मारे गए।क्षणिक शिकस्त का जोरदार जवाब देते हुए आंदोलनकारी पुनः गढ़ में घुस गए और कब्ज़ा कर दिलेरी एवम् साहस का परिचय दिया।
मथुराधीश के गोस्स्वामी की मध्यस्ता से महाराव एवम् आंदोलनकारियों का समझोता अधिक दिन नहीं चला।करौली से महाराव की मदद को आई सेना के वापस नहीं लौटने से आन्दोलंकारोयों ने पुनः गढ़ पर कब्जा कर लिया। सैनिक भी आंदोलनकारियों पर टूट पड़े और शाम पाटनपोल एवम् केथूनीपोल पर महाराव ने कब्जा कर लिया।दोनों दरवाज़े बंद कर तोपो पर भी महाराव का कब्जा हो गया।बुर्जो पर तोपे चढ़ा दी गई। दोनों तरफ से घमासान युद्ध शुरू हो गया।होली का दिन था।संघर्ष कई दिन चला।अबीर गुलाल की होली खून की होली में बदल गई।महाराव की सहायता के लिए 22 मार्च 1858 कोअंग्रेज फोज़ो ने जनरल लॉरेन्स एवम् राबर्ट के नेतृत्व में चम्बल के बाये किनारे नानता में पड़ाव डाला।
नान्ता से मेजर के नेतृत्व में300 सिपाहियों ने 27 मार्च 1858 को नदी पार कर आंदोलनकारियों को पीछे हटा कर उनकी 50 तोंपो पर कब्जा कर गढ़ में प्रवेश किया एवम् रणनिति तैयार कर 29 मार्च को आंदोलनकारियों पर तोपे चलवा दी ,बम फेंके। करीब दो हज़ार। क्रन्तिकारी बच निकले परंतु इस हमले में जयदयाल के भाई हरदयाल को पकड़ कर निर्मम हत्या कर दी गई।
अंग्रेज सैनिकों ने 31 मार्च को योजनब्ध हमला बोला।केथू नी पोल को तोप से उड़ा दिया गया।घमासान युद्ध में सूरजपोल सहित पुरे शहर पर कब्जा कर लिया।महाराव को उनका शासन सौप कर सेना 27 अप्रैल को वापस चली गई।
अंग्रेज फौज़ द्वारा शहर पर कब्जा करने से आंदोलनकारियों में भगदड़ मच गई।गढ़ में कैद विद्रोहियों के सर कटवा दिए गए। नान्ता के अनेक मकानों को लूटा गया। सम्पत्ति जब्त कर नीलाम कर दी गई। सगे सम्बन्धियो को भारी यातनाये दी गई। डडवाडा के पास चम्बल के किनारे मेवाती विद्रोहियों के टुकड़े-टुकड़े कर दिए गए।
इस संग्राम में बलिदान के लिए चिरस्मरणीय लाला हरदयाल एवम् मेहराब खाँ को अंग्रेजी सरकार ने महाराव पर दबा डाल कर 1860 में एजेंटी बगलें के नीम के पेड़ पर फाँसी लगवा दी।इन वीर सपूतों के बलिदान की स्मर्ति में कॉल्लेक्टरी चौराये पर स्मारक बनाया गया है।इस प्रकार कोटा राज्य ने भी प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अपना योगदान दिया।
1857 का सैनिक विद्रोह का कालान्तर में बिट्रिश सत्ता के विरुद्ध जान व्यापी विद्रोह के रूप में हुआ जिसे भारत का प्रथम स्व्तंत्रता संग्राम कहा गया। परिणाम स्वरूप् ईस्ट इंडिया से शासन निकल कर ब्रिटिश ताज (महारानी विक्टोरिया) के हाथों में चला गया। भारतियों में रास्ट्रीय एकता की भावना का विकास हुआ एवम् हिन्दू-मुस्लिम एकता ने ज़ोर पकड़ा जिसका कालान्तर में रास्ट्रीय आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान
साभार :
© CopyRight Pressnote.in | A Avid Web Solutions Venture.