उदयपुर सामाजिक राजनीतिक या आर्थिक क्षेत्र चाहे कोई भी हो महिलाए किसी से भी कम नहीं है। यह बात १६०० वी शताब्दी में मीरा बाई ने साहित्यिक संस्कृति और भक्तिकाल से सिद्ध कर दी थी। मीरा की साहित्यिक, संस्कृति आज भी सभी के लिए प्रेरणादायी है चाहे इनके संकलन में हजारो वर्ष गुजर गये हो लेकिन आज भी उनकी पवित्रता और सत्यता पर कोई दो राय साबित नही कर सकता। उक्त विचार शुक्रवार को जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ के संघटक कन्या महाविद्यालय में मीरा पीठ की ओर से आयोजित मीरा और भक्ति मार्ग विषयक पर आयोजित व्याख्यानमाला में इतिहासविद् व वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. कल्याण सिंह शेखावत ने कही। अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत ने कहा कि अगर हमें भक्ति का मार्ग अपनाना है तो अपने सभी बंधनो से मुक्त होना होगा। जब तक हम इन बंधनों से जुडे रहेगे तब तक हम न तो भक्ति कर सकते, न किसी की भलाई कर सकते, और न सफल हो सकते है। वर्तमान दौर में महिलाओं को सफल होना है तो मीरा के व्यक्तिव एवं कृतित्व को जानना होगा, मीरा बाई ने जिस तरह चुनौतियों का सामना करते हुए आगे बढी उसे सीख लेनी चाहिए। कुलपति प्रो. सारंगदेवोत ने समारेाह में मीरा बाई समर्पण पुरस्कार की घोषणा की जो मैधावी छात्रा को दी जायेगी। इस अवसर पर विशिष्ठ अतिथि प्रो. जी.एम. मेहता, सहायक कुल सचिव सुभाष बोहरा, डॉ. सरोज गर्ग, डॉ. अमिया गोस्वामी, डॉ. अर्पणा श्रीवास्तव ने भी अपने विचार व्यक्त किए । प्रारंभ में अतिथियों का स्वागत समन्वयक डॉ. अर्पणा श्रीवास्तव ने किया जबकि संचालन डॉ. रेखा कुमावत ने किया जबकि आभार डॉ. सीमा धाबाई ने जताया।
पुस्तक विमोचन व अभिनन्दन ः- प्राचार्य डॉ. अर्पणा श्रीवास्तव ने बताया कि समारोह में डॉ. सीमा धाबाई द्वारा सम्पादित जनजातियों के विकास में आवासीय विद्यालयों की भूमिका पुस्तक का विमोचन अतिथियों द्वारा किया गया। प्रो. कल्याण सिंह शेखावत का उपरणा, पगडी व मीरा बाई की तस्वीर भेट कर सम्मानित किया गया।
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