"विक्रमोत्सव" नववर्ष आयोजन- नमो विचार मंच

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Published on : 13 Mar, 18 11:03

नमो मनायेगा विक्रमोत्सव
११,००० परिवारों में लड्डू बांटेगा नमो विचार मंच
समाजिक सरोकार के साथ हिन्दु नववर्श
हिन्दु नववर्श २०७५ पर २०७५ किलों लड्डू
नमो विचार मंच की ओर से नव संवत्सर हिंन्दू नववर्श २०७५ पर ’’विक्रमोत्सव‘‘ धूमधाम से मनाया जाएगा। इस मौके पर फतेह स्कूल स्थित हनुमान जी के मंदिर में २०७५ किलो लड्डू का भोग लगाया जाएगा। इसके ११,००० लड्डू बनाए जाएंगे जो प्रत्येक २०० ग्राम के होंगे। इन लड्डुओं को ११,००० परिवारों को उनके घर जाकर नववर्श की षुभकामनाओं के साथ बांटा जाएगा।
नमो विचार मंच के प्रदेष अध्यक्ष प्रवीण रतलिया ने सोमवार को मीडिया को बताया कि नमो विचार मंच ने नववर्श के लिए २५० टीमें बनाई जा रही है, जिसमें से ९३ टीमों का रजिस्ट्रेषन हो चुका है। हर टीम में १०-१५ कार्यकर्ता हैं। यह टीमें षहर में घर-घर जाकर लड्डू बांटेगी और सभी को हिंदू नववर्श की मंगलकामनाएं प्रेशित करेंगी। लड्डूओं के साथ एक भगवा पताका, एक स्टीकर, एक तुलसी का पौधा, एक हनुमान जी की तस्वीर और पॉकेट में रखने वाली हनुमान चालीसा की पुस्तिका ११,००० परिवारों में वितरित की जाएगी। स्टिकर घरों के बाहर चिपकाए जाएंगे और भगवा पताका छतों पर लगाने का आग्रह किया जाएगा। उन्होंने बताया कि नमो विचार मंच हिंदू नववर्श के संबंध में नई पीढी कम ही जानती है। यह विक्रम संवत भारत के प्राचीन ज्ञान विषेशकर खगोल विज्ञान की समृद्धता के बारे में बताता है और यह सिद्ध करता है कि भारत का ज्ञान सदियों से पूरे विष्व को षिक्षित करता रहा है। इसी के तहत यह आयोजन रखा गया है और राम भक्त हनुमान जी को इस आयोजन का ब्रांड एंबेसडर का स्वरूप माना गया है। हनुमान जी की आरती और लड्डू के भोग के बाद १८ मार्च, रविवार को सुबह ८ बजे टीमें अलग-अलग दिषाओं में रवाना हो जाएंगी महज २ घंटे में यह सभी कार्यकर्ता ११००० परिवारों तक पहुंचेंगे और उन्हें नववर्श की षुभकामनाएं देंगे।
उदयदीप प्रतियोगिता- इसके अन्तर्गत दीप-सज्जा की प्रतियोगिता रहेगी। सभी परिवार दीपों से घर को सजाकर उसकी तस्वीर नमो विचार मंच को वॉटस-एप करेंगे। चयनित १० परिवारों को ’उदयदीप‘ सम्मान से सम्मानित किया जायेगा।
सामाजिक सरोकार- ११,००० परिवारों को प्रसाद के बदले घर की कोई भी पुरानी वस्तु जैसे कपडे, जूते या बैग देने होंगे। जिनका वितरण ’मिशन एम जे‘ के तहत नमो विचार मंच आदिवासी क्षेत्रों में करेगा। क्योंकि षहरों में जहाँ स्कूली बच्चों के पास दर्जनों जूते और बेग है। वहीं ग्रामीण बच्चे नंगे पैरों में हाथों में भीगती बारिष में किताबे लेकर पढने जाते है।


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