बधाई हो , घर लक्ष्मी आई है ……

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Published on : 11 Mar, 18 12:03

सृष्टि और दृष्टि- जुड़वाँ बहनों की जीवन संघर्ष की अनोखी कहानी - भारत देश में बचे हुए सबसे छोटे जुड़वा बच्चों में से एक जीवन्ता हॉस्पिटल ने फिर रचा इतिहास

बधाई हो ,  घर लक्ष्मी आई है …… उदयपुर शहर के जीवन्ता चिल्ड्रन हॉस्पिटल जो आज तक कई नौनिहालों की रूकती साँसों में फिर से जान डाल कर उन्हें नया जीवन देने में काम आया है . ऐसा ही एक उदहारण अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पे देखने को मिला , जब मात्र 24 हप्तों में जन्में जुड़वाँ लड़कियों , जिनका वजन था मात्र 600 ग्राम व 620 ग्राम , 115 दिनों के जीवन और मौत के बीच चले लम्बे संघर्ष के बाद अपने घर आई .
मोतिहारी, बिहार के निवासी चिंतादेवी और चन्देश्वरराम दम्पति को शादी के 21 साल बाद नीलकंठ हॉस्पिटल में टेस्ट ट्यूब बेबी प्रक्रिया से माँ बनने का सौभाग्य मिला. डॉ सिमी सूद ने बताया की साढ़े पांच माह [24 हफ्ते ] में ही माँ का ब्लड प्रेशर बेकाबू हो गया , डायबिटीज बिगड़ने लगी और रक्तस्त्राव होने के कारण माँ और शिशुओं के जान को खतरा हो गया इसलिए आपातकालीन सिजेरियन ऑपरेशन से जुड़वाँ लड़कियों का जन्म 25 अक्टूबर 2017 को कराया गया. जन्म के वक्त पहले शिशु का वजन 600 ग्राम और दूसरे का मात्र 620 ग्राम था। जन्म पर शिशु खुद से श्वांस नहीं ले पा रहे थे,उनका शरीर नीला पड़ता जा रहा था। जीवन्ता चिल्ड्रन्स हॉस्पिटल के नवजात शिशु विशेषज्ञ डॉ सुनील जांगिड़, डॉ निखिलेश नैन एवं उनकी टीम ने डिलीवरी के तुरंत पश्चात नवजात शिशुओं के फेफड़ों में नली डालकर पहली श्वांस दी एवं नवजात शिशु इकाई एनआईसीयू में अति गंभीर अवस्था में वेंटीलेटर पर भर्ती किया। शादी के 21 वर्ष बाद मिले दोनों बच्चें ही इस दम्पति की आखरी उम्मीद थी और वे हर हालत में इन्हें बचाना चाहते थे। . उनको डॉ सुनील जांगिड़ की टीम जीवन्ता पर पूरा भरोसा था, जो पहले भी 400 ग्राम वजनी प्रीमयचुअर शिशु को जीवनदान दे चुके है.

नवजात शिशु विशेषज्ञ डॉ सुनील जांगिड़ ने बताया की इतने कम दिन व कम वजन के शिशुओं को बचाना एक चुनौतीपूर्ण था। ऐसे कम दिन एवं बच्चे का शारीरिक सर्वांगीण विकास पूरा हुआ नहीं होता , शिशु के फेफड़े , दिल, पेट की आते , लिवर, किडनी, दिमाग, आँखें, त्वचा आदि सभी अवयव अपरिपक्व, कमजोर एवं नाजुक होते है और इलाज के दौरान खाफी कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है. I हमेशा आप को एक नाजुक सी डोर पे चलना होता है और कभी कभी सारी कोशिशों के बाद भी सफलता नही मिल पाती. हलकी सी आवाज, हलचल या ज़रा सी भी ज्यादा दवाई की मात्रा से ऐसे शिशु के दिमाग में रक्तस्त्राव होने का खतरा होता है.बेहतरीन इलाज़ के बावजूद भी केवल 20% -30% शिशु के बचने की संभावना होती है और केवल 5%- 10 % शिशु मस्तिष्क क्षति के बिना जीवित रहते है.
शिशुओं को जीवित रखने के लिए ग्लूकोज़, प्रोटीन को सेंट्रल लाइन के द्वारा दिया गया , फेफड़ों के विकास के लिए फेफड़ों में दवाई डाली गयी . नियमित रूप से मस्तिष्क एवं ह्रदय की सोनोग्राफी भी की गयी जिससे आतंरिक रक्तस्त्राव तो नहीं हो रहा है को सुनिश्चित किया जा सके.
प्रारंभिक दिनों में शिशुओं की नाजुक त्वचा से शरीर के पानी का वाष्पीकरण होने के वजह से उनका वजन 500 ग्राम तक आ गया था . पेट की आंतें अपरिपक्व एवं कमजोर होने के कारण , दूध का पचन संभव नहीं था. इस स्थिति में शिशु के पोषण के लिए सभी आवश्यक पोषक तत्व - ग्लूकोज़, प्रोटीन्स एव वसा उसे नसों के द्वारा दिए गए. धीरे धीरे बून्द बून्द दूध, नली के द्वारा दिया गया. शिशुओं को कोई संक्रमण न हो इसका विशेष ध्यान रखा गया. शुरुवाती 2 ½ महीने तक श्वसन प्रणाली एवं मस्तिष्क की अपरिपक्वता के कारण , शिशु सांस लेना भूल जाते थे एवं कृत्रिम सांस की जरुरत पड़ती थी. 80 दिनों के बाद शिशु स्वयं श्वास लेने में समर्थ हुए . शिशुओं की 115 दिनों तक आई सी यु में देखभाल की गयी . शिशुओं के दिल, मस्तिष्क , आँखों की नियमित रूप से चेक अप किया गया . आज 4 महीने बाद उनका वजन 2000 ग्राम और 1945 ग्राम है ,स्वस्थ है एवं घर जा रही है.
पिता चन्देश्वरराम ने कहा की हम बिहार के एक गरीब परिवार से है और हमारे लिए बच्चिओं का ईलाज करने की क्षमता नहीं थी, हम जीवन्ता हॉस्पिटल के आभारी है की ईलाज का 50 % खर्चा हॉस्पिटल ने खुद वहन किया . आज दोनों लड़कियों को गोद में लेकर बहुत ख़ुशी हो रही है और इनका बचना कोई चमत्कार से कम नहीं है . हमने इनका नाम सृष्टि और दृष्टि रखा है .
डॉ सुनील जांगिड़ ने बताया की ज्यादातर इतने कम वजनी व कम दिन के जुड़वाँ शिशुओं में सारी कोशिशों के बाद भी सिर्फ एक शिशु को ही बचाया जा सकता है , किन्तु सृष्टि और दृष्टि भारत देश में बचे हुए सबसे छोटे जुड़वा बच्चों में से एक हैं. आज कल नवीनतम अत्याधुनिक तकनीक , अनुभवी नवजात शिशु विशेषज्ञ डॉक्टर्स व प्रशिक्षित नर्सिंग स्टाफ की टीम से 500 से 600 ग्राम के प्रीमैचुअर शिशु का बचना भी सम्भव हो चूका है. जीवन्ता हॉस्पिटल ने पिछले 4 साल में कई 6 मासी गर्भावस्था एव 500 से 600 ग्राम के बच्चों का सफल इलाज किया है और हाल में ही जीवन्ता हॉस्पिटल ने दक्षिण एशिया व भारत देश की सबसे छोटे 400 ग्राम वजनी मानुषी का सफल ईलाज भी किया है और वो आज पूरी तरह से स्वस्थ है.

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