महात्मा संतराम बीए जयंती 14 फरवरी पर विशेष

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Published on : 15 Feb, 18 11:02

कुम्भकार समाज का गौरव समाज सुधारक एवम् विचारक महात्मा संतराम बीए

महात्मा संतराम बीए का जन्म ग्राम पुरानी बस्सी, जिला होशियारपुर, पंजाब में १४ फरवरी १८८७ को एक कुम्हार परिवार में हुआ था. वे सौ वर्षों से अधिक जीवित रह कर समाज सुधार का कार्य किए. उनकी मृत्यु ५ जून 1988 को हुई. माता मालिनी देवी का देहांत बचपन में ही हो गया था. उनके पिता श्री राम दास गोहिल व्यवसायी के रूप में वे सुदूर कंधार, सिक्यांग तक यात्राएं किया करते थे.
संतराम जी अपने क्रन्तिकारी विचारों, प्रबुद्ध लेखन, आध्यात्मिक दर्शन, एवं सामाजिक सुधारों के लिए जाने जाते हैं.
वर्ष १९०९ में उन्होंने बीएकी डिग्री हासिल किया और अपने नाम के सामने बीए भी लिखना प्रारम्भ किया. हिन्दू धर्म के आडम्बरों की उन्होंने भर्त्सना की और दयानन्द सरस्वती के विचारों से प्रभावित होकर, अपने तरुणावस्था में ही आर्यसमाज में शामिल हो गये और अंत तक आर्य समाजी ही रहे. कुम्हार जाति में पैदा होने के कारण विद्यार्थी जीवन में छात्रावास में उनके साथ अस्पृश्य सा व्यव्हार द्विज छात्रों द्वारा किया जाता था. उन्होंने हिन्दू समाज से इस कोढ़ को दूर करने हेतु एक संगठन "जात पात तोड़ो मंडल की स्थापना १९२२ में की. जिसके प्रधान आर्य समाजी भाई परमानन्द जी को बनाया गया और स्वयं सचिव के पद पर रहे.
संतराम वेदों के चार वर्णों को तो मानते थे,किन्तु इसे जन्म जात नहीं, अपितु कर्मों के आधार पर मानते थे. उनका मानना था कि कर्म के अनुसार कोई भी व्यक्ति किसी भी वर्ण को धारित कर सकता था. जैसे शूद्र कुल में पैदा हुए बहुत से शूद्रों- बाल्मीकि, वेदव्यास को ऋषियों मुनियों का दर्जा प्राप्त हुआ था. उन्होंने स्वयं अपनी आत्मकथा "मेरे जीवन के अनुभव" में उद्घाटित किया हैकि किस प्रकार एक ही वंश के लोग किसी स्थान पर क्षत्रिय हैं और दूसरे स्थान पर कुम्हार या वैश्य अपने कार्यों के अनुसार हैं.

उत्तर वैदिक काल में विप्रों ने इसे कठोर जन्मजात जाति का स्वरुप प्रदान कर शूद्रों , वैश्यों और क्षत्रियों को उनके जाति के परंपरागत पेशा तक सीमित कर दिया. शूद्रों पर कठोर पाबंदियां लगायीं गयीं और उसके तोड़ने पर कठोर दंड का विधान किया गया और राजाओं के माध्यम से उसे लागू करवाया गया. उदाहरणार्थ एक कथानक के अनुसार जब शूद्र शम्बूक ने आध्यात्म का ज्ञान प्राप्त कर शूद्रों को वेदों का उपदेश देने लगा, तो राजा रामचंद्र से उसका वध विप्रों ने करा दिया. भीमा कोरेगाव की पहली जनवरी २०१८ की घटना से सर्व विदित हो गया कि जातीयता दो सौ वर्ष पूर्व तक कितने चरम पर थी जब ब्राह्मण पेशवा अपनी सेना में शूद्रों को भर्ती नहीं करते थे और शूद्र युवकों को अपनी रोजी रोटी कि लिए अंग्रेजों की फ़ौज में शामिल होना पड़ता था. इस कठोर व्यवस्था से भारत पतन की ओर उन्मुख हुआ. अंग्रेजों ने इन कठोर प्रथाओं को कानून बना कर तोड़ने का प्रयास किया और सभी लोगों को पढ़ने लिखने एवं संपत्ति इत्यादि का अधिकार दिया, वरना उत्तर वैदिक काल और मुस्लिम शासकों के आरम्भिक वर्षों में जो हाल शूद्रों की थी, वही हाल युगांतर तक रहने की संभावना थी, जैसा कि नेल्सन मंडेला के पूर्व तक रेसियल डिस्क्रिमिनेशन दक्षिण अफ्रीका में बीसवीं शताब्दी कि अंतिम दशक तक था.
संतराम जी जन्मजायते वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था के खिलाफ थे और इसे वे लोगों के मानसिक चिंतन एवं सोच को बदलकर ख़त्म करना चाहते थे. इसके लिए उन्होंने अनेकों लेख लिखे, पुस्तकें लिखी और जात पात तोड़ो मंडल की स्थापना वर्ष १९२२ में की. उन्होंने अपनी पुस्तक हमारा समाज में लिखा हैकि महान सम्राट अशोक ने समाज की सोच, बौद्ध धम्म के प्रचार एवं प्रसार के द्वारा भारत में वर्ण व्यवस्था एवं जातीयता समाप्त कर दी थी. अशोक ने तत्कालीन समाज की सोच एवं चिंतन को बौद्ध धम्म कि उपदेशों का प्रचार और प्रसार कर, देश एवं विदेश में शिला लेखों एवं स्तूपों पर बौद्ध धम्म के उपदेशों को लिखवाकर बदल डाला और बगैर युद्ध के ब्रिटिश भारत से वृहद् भारत का साम्राज्य कंधार से इंडोनेशिया तक फैलाया.
कहने की आवशयकता नहीं कि जात पात तोड़ो मंडल और उनके कार्यों का जितना समर्थन उन्हें समाज से मिला उससे कहीं अधिक ब्राह्मणवादियों ने उसका विरोध किया. यहां तक कि महाकवि सूर्यकांत निराला ने भी विरोध किया था. जात पात तोड़ो मंडल के6 १९३६वें अधिवेशन की अध्यक्षता हेतु बाबा साहब अम्बेडकर को आमंत्रित किया गया था और उनके द्वारा लिखित अध्यक्षीय भाषण को मंडल के समक्ष रखा गया था. अध्यक्षीय भाषण में वेदों पर भी कुछ ऐसी बातें लिखी गयी थी जो आर्य समाजियों श्री हंसराज, परमानन्द एवं कुछ अन्य लोगों को पसंद नहीं थी, जिसमें संशोधन करने को आंबेडकर जी तैयार नहीं थे. अत: वार्षिक अधिवेशन को ही स्थगित कर दिया गया. बाबा साहब का जात पात तोड़ो मंडल के लिए लिखा गया भाषण को बाबा साहब ने Annihilation of Castes के शीर्षक से प्रकाशित कराया. इसका हिंदी अनुवाद महात्मा संतराम BA ने स्वयं कर अपनी मैगज़ीन क्रांति में प्रकाशित किया.
समाज में समानता लाने हेतु बाबा साहब ने संविधान में OBC, SC, ST के लिए विशेष प्रावधान किए. जबकि महात्मा जी का विशेष बल अंतर्जातीय विवाह और जन मानस के विचारों में परिवर्तन लाकर जाति प्रथा को समाप्त करने का था. उन्होंने स्वयं अपनी पुत्री का विवाह अंतर्जातीय किया था. उनके द्वारा लिखित "हमारा समाज" पुस्तक को प्रत्येक भारतीय को पढ़ना चाहिए. पुस्तक पढ़ने से ज्ञात होगा कि भारत देश में विभिन्न जातियों की उत्पत्ति ब्राह्मण वादी व्यवस्था से कैसे फली फूली और जाति रहित समाज क्यों आवश्यक है?
महात्मा संतराम BA पंजाब राज्य के विधान परिषद् के सदस्य भी वर्ष १९८१ से १९९६ तक रहे. इस दौरान विधान परिषद् में दिए गए उनके महत्वपूर्ण भाषण एवं विचारों को आम जनता के समक्ष एक पुस्तक के रूप में पंजाब सरकार को लाना चाहिए और उनके विचारों पर शोधार्थियों को शोध पत्र भी निकालना चाहिए, क्योंकि जितनी जरूरत सामाजिक समरसता कायम करने की उस समय थी , उससे बढ़ी चुनौती वर्तमान काल को है।
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