कर्म के साथ धर्म के शूरवीर थे आचार्य आदिसागर

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Published on : 14 Feb, 18 12:02

उदयपुर। आचार्य आदिसागर महाराज का समाधि दिवस आज धूमधाम से मनाया गया। गुरुश्रेष्ठ आचार्यश्री के चरणों में प्रणाम कर आचार्य सुनील सागर महाराज ने कहा कि महाराष्ट्र के सांगली जिले के अंकली गांव में जन्मे जमींदार परिवार में शिवगौडा पाटिल बचपन से ही कर्म के शूरवीर थे। एक मुक्के से दरवाजा तोड देना, नारियल के पेड पर चढ जाना जैसे कई पराक्रम उनके बांये हाथ के खेल थे। कम उम्र में पिता के देहावसान के बाद वैराग्य के अंकुर फूटे। जिनवाणी सुनने नदी पार कर जाते थे जिससे अध्यात्म में उनकी रुचि प्रवृत्त होती गयी। बहन को बच्चों की जिम्मेदारी सौंप दी और जिनप्पा शास्त्री के पास क्षुल्लक दीक्षा ली। कठोर साधना और आत्म शुद्धि ही एकमात्र लक्ष्य था। आदिसागर अंकलिकर ले पास बडे बडे नेता, विद्धवान आते थे। उनका तेज, स्वरूप देखकर उन्हें मुनि कुंजर यानी मुनि श्रेष्ठ कहकर सम्मानित करते थे। सात दिन तक उपवास कर एक आहार करते थे। खूब सेवा की, कमंडल में खुद पानी भरा। खुद पुण्यार्जन करना ही सेवा का काम रहा। मौन सहज साधना करना, सेवा करना, खुद पुण्यार्जन करना सौभाग्य का काम है। मौन सहज साधना है। हर समय का सदुपयोग करना, जन तन को, पशु-पक्षी को, सर्प व शेर को प्रभावित कर जाते थे।



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