कलाकारों शिल्पकारों ने ली विदाई

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Published on : 31 Dec, 17 08:12

दो दर्जन लक वाद्यों की झंकार से गूंजा आकाश,

कलाकारों शिल्पकारों ने ली विदाई उदयपुर, पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र के तत्वावधान में आयोजित दस दिवसीय ’’शिल्पग्राम उत्सव‘‘ का हृदय के तारों को झंकृत करने वाले तथा दो दर्जन से ज्यादा वाद्य यंत्रों से सजी ’’झंकार‘‘ की भावतिरेक प्रस्तुति के साथ समापन हुआ। जिसमें वाद्य यंत्रों की धमक तथा सुशीर, तंतु तथा ताल वाद्यों की लयकारी पर लगभग सभी कला दलों ने अपनी शैलिगत थिरकन से समां सा बांध दिया। समापन अवसर पर ही बिहू, लावाणी, सिद्दी व बोहाडा नर्तकों ने अपनी प्रस्तुति से उत्सव की समापन सांझ को स्मरणीय बनाया। उत्सव के आखिरी दिन पुरा शिल्पग्राम परिसर लोगों की रेलमपेल से अटा पडा नजर आया मानों शहर को नया पता मिला हो।

मुक्ताकाशी रंगमंच पर कार्यक्रम का आगाज महाराष्ट्र के मंगल वाद्य सुंदरी के वादन से हुआ। इसके बाद दादरा नगर हवेली के कलाकारों ने ’बोहाडा‘ नृत्य की प्रस्तुति से आदिम संस्कृति को दर्शाया। ठाणे जिले से आये कोंकणा कलाकारों की इस प्रस्तुति में जूट और कपडे से तैयार ंसंह की ठिठोली दर्शकों को खूब रास आई। इसके बाद वीर वीरई नटनम की प्रस्तुति को दर्शकों ने सराहा। समापन संध्या की मुख्य प्रस्तुति दो दर्जन से ज्यादा लोक वाद्यों से सजी ’’झंकार‘‘ थी। केन्द्र द्वारा विशेष रूप से परिकल्पित इस प्रस्तुति में बांसुरी, सुंदरी, कमायचा, सिन्धी सारंगी, ढोलक, ढोलकी, डिमडी, तुनतुना, सम्बळ, त्वतरी, मुरली, अलगोजा, मटकी, मोरचंग, खडताल, निशान, ढोल, पुंग चोलम, रणसिंगा, शक, असमी ढोल, पंबई, टपटी, सुरपेटी, मुगरवान, शहनाई, भपंग आदि वाद्य सम्मिलित थे। मोरचंग की तान के साथ शुरू हुई प्रस्तुति में में एक-एक कर सारे वाद्य अपनी बारी के साथ सिम्फनी में योग करने लगे। एक लयकारी पर विभिन्न वाद्य यंत्रों के सुर तथा उस पर नृत्य करती लावणी, चकरी, संबलपुरी, हिमाचली, बिहू की नर्तकियों ने दर्शकों के समक्ष लोक कलाओं का एक अविस्मरणीय नजारा प्रस्तुत किया। झंकार की प्रस्तुति का संयोजन केन्द्र निदेशक फुरकान ख्ाान तथा कार्यक्रम अधिकारी तनेराज सिंह सोढा द्वारा किया गया।

समापन अवसर पर ही मणिपुर के कलाकारों ने अपनी स्टिक परफोरमेन्स से दर्शकों पर जादू सा कर दिया। मणिपुरी ढोल की थाप पर हाथ में स्टिक ले कर उसे विभिन्न प्रकार से संतुलित करना दर्शकों को खूब रास आया। इस अवसर पर लावणी नृत्यांगनाओं ने अपने नर्तन से दर्शकों को रिझाया और अपनी समृद्ध परंपरा से रूबरू करवाया। ऑडीशा के संबलपुरी नृत्य को जहां दर्शकों ने चाव से देखा वहीं उत्तराखण्ड का छापेली कार्यक्रम की रोमान्टिक प्रस्तुति बन सकी। इंजरनियर भपंग वादक यूसुफ ने अपनी प्रस्तुति से दर्शकों का मनोरंजन किया व वाहवाही लूटी। समापन पर मणिपुर का पुंग ढोल चोलम मन भावन प्रस्तुति रही जिसमें ढोल वादकों ने हवा में उछल कर अनूठे अंदाज में ढोल बजाया। गुरात के सिद्दी कलाकारों ने समापन पर अपनी धमाल से दर्शकों का उल्लसित सा कर दिया। प्रस्तुति के दौरान संगीत की लयकारी पर दर्शक थिरकने लगे। बिहू नृत्यांगनाओं ने इस अवसर पर अपनी भावनाओं को दैहिक भंगिमाओं तथा युवा साथियों के सानिध्य को प्रेमिल अंदाज में अभिव्यक्त किया। पंजाब के भांगडा नर्तकों के जोशपूर्ण नृत्य पर दर्शकों का उत्साह देखते ही बना। इस अवसर पर केन्द्र निदेशक श्री फुरकान ख्ाान ने जिला प्रशासन, पुलिस विभाग, होमगार्ड्स, विकास आयुक्त हस्त शिल्प नई दिल्ली, विकास आयुक्त हथकरघा नई दिल्ली, नेशनल जूट बोर्ड नई दिल्ली, ट्राइफेड, सभी क्षेत्रीय सांस्कृतिक केन्द्रों, नगर निगम उदयपुर, नगर विकास प्रन्यास उदयपुर, अजमेर विद्युत वितरण निगम, आइडीबीआई बैंक, एक्सिस बैंक, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, बैंक ऑफ महाराष्ट्र, आइ सी आसी आई बैंक, बैंक ऑफ इंडिया तथा सभी प्रतिभागी कलाकारों व शिल्पकारों के प्रति आभार व्यक्त किया।

इससे पूर्व उत्सव के अंतिम मेला प्ररम्भ होने के साथ लोगों का शिल्पग्राम पहुंचना प्रारम्भ हो गया तथा दोपहर तक पूरा शिल्पग्राम परिसर लोगों की अथाह भीड से भर गया। शिल्पग्राम का प्रत्येक शिल्प क्षेत्र लोगों की काफी भी दिखाई दी। आखिरी दिन कुछ खरीदने की आस में आये ज्यादातर लोग हाट बाजार में खरीददारी करते नजर आये। शाम को हाट बाजार तथा शिल्पग्राम के भीतरी रास्तों में जहां नजर दौडाओ लोगों का रेला सा नजर आया। लोग धीरे-धीरे चल रहे थे तथा साथ अपने अपने परिजनों व दोस्तों से मौज मस्ती करते नजर आये व जगह-जगह एक देसरे की सेल्फी को मोबाइल में कैद करते नजर आये। अंतिम दिन हाट बाजार में लोगों ने जम कर खरीददारी की तथा खान-पान की वस्तुओं का लुत्फ उठाया।


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