साईंटिफिक एलिमेन्ट्स के बोझ तले दबते जा रहे हैं बच्चे - गगन मिश्रा

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Published on : 20 May, 16 09:05

साईंटिफिक एलिमेन्ट्स के बोझ तले दबते जा रहे हैं बच्चे  - गगन मिश्रा जयपुर / जयपुर के गोलछा सिनेमा में 22 मई तक जिफ दावरा आयोजित किए जा रहे रहे 8 दिवसीय “16 इन्टरनेशनल फिल्म फेस्टीवलस” के पांचवे दिन लव और रोमांटिक सिनेमा पर लेखक और पत्रकार ईश मधु तलवार से फिल्म लेखक डा. दुष्यंत, चिल्ड्रन विषय पर गगन मिश्रा से और एनीमेशन में बढ़ती संभावनाओं पर डा. विभूति पाण्डे और देवेश शर्मा से रीतु वर्मा और प्रघ्या राठौर ने चर्चा की।
साईंटिफिक एलिमेन्ट्स के बोझ तले दबते जा रहे हैं बच्चे - गगन मिश्रा

भविष्य का बेहतर देश और दुनियाँ बनानी है तो बच्चों को सजाना है संवारना है। बच्चे आज भारी भरकम बस्ते, अधिकतम आंक लाने की दौड़, साईंटिफिक एलिमेन्ट्स के बोझ तले दबते जा रहे है। हम बच्चो को दादी-नानी से दूर करते जा रहे हैं। हम उन्हें फैमिली रूट्स सीखा ही नहीं रहे हैं। आज केवल बच्चों को साईंटिफिक नॉलेज तो दे रहे है पर संस्कारों से दूर हटा रहे हैं। इसका सीधा असर उनके मानसिक विकास पर पड़ रहा है। इस तरह से बच्चों का मेकैनिजम माईंड तो डवलप हो रहा पर उनमें मानवीयता और संवेदनाओं से दूर हटाते जा रहे हैं।

जरूरत है उन्हें ररूटस की तरफ ले जाना। रीजनल नॉलेज और भाषा की जानकारी देना। मॉरल एजुकेशन को बढ़ावा देना। किताबों के साथ साथ फिल्म एजुकेशन को बढ़ावा देना। फिल्मों के माध्ययम से बच्चे जल्दी सीख पाते हैं। फिल्म एजुकेशन टेक्स्ट एजुकेशन से सरल और आसान है। जैसे बच्चों को चिल्ड्रंस ऑफ हेवन और तारें जमीन पर फिल्में बहुत अच्छी लगी। 18 मई को इसी फेस्टीवल में दिखाई गई फिल्म यारो समझा करो से बच्चों को बहुत सारी जानकारी मिली और बच्चो ने इसे आत्मसात किया, 11 साल का राजेश कहता है फिल्म देखकर पता चला की स्कूल वाले भी कितने गलत हैं, हमारी माता पिता भी गलत कर रहे होतें है कई बार, मैंने सीखा की हमें एक दूसरे बच्चों की मदद कैसे करनी चाहिए।

एनिमेशन के क्षेत्र में रोजगार की संभावनाएं की कोई कमी नहीं है - डा. विभूति पांडे

भारत में एनीमेशन का बाजार 2005 के आस पास तेजी से बढ़ा। कई एनीमेशन एकेडमीज खुली। अकेले जयपुर में ही 10 से ज्यादा एकेडमीयां खुली। राजस्थान सरकार ने भी खोली। पर ज्यादातर बंद हो गई।

इसके बाद भारत में कुछ एनीमेशन फिल्में भी बनी। जैसे गोविंद निहलानी ने कमलू बनाई, निखिल आडवाणी ने देहली सफारी बनाई, किरीट खुराना ने अजय देवगन और काजोल को लेकर टूनपुर का सुपर हीरो बनाई पर सभी फ्लाप रही। इसका कारण है, इनका प्रोडकसन कमजोर रहा। जबकी हॉलीवुड की फिल्मों में एक्शन, थ्रीलर और एडवेंचर खूब होता है। अभी चल रही जंगल बूक को ही देख लीजिये बच्चे और लोग पसंद कर रहे हैं। इतनी तो शाहरुख खान की फिल्म भी नहीं चल पाई।

मोटी मोटी बात ये है की भारत में होम एनीमेशन प्रोडकसन कम है जबकी यहाँ हॉलीवुड के काम ज्यादा आता है। भारत में एनिमेसन पढे बच्चे जो काम कार रहे हैं वो बाहर का प्रोडकसन है। बाहर वालों के लिए यहाँ काम सस्ते में हो जाता है।

इस तरह से एनीमेशन के फिलड़ में रोजगार तो हैं। फिर एनीमेशन का जॉब अब वी एफ एक्स में बदल रहा है जैसे बाहुबली में वी एफ एक्स का बहुत काम हुआ है।

भारत में हजार से ज्यादा फिल्में बनती पर पिछले सालों में एनिमेसन एक भी नहीं बनी। हाँ शॉर्ट एनीमेशन जरूर बन रही है। पर भविष्य के लिहाज ये इंडस्ट्री अच्छी है। यहाँ रोजगार काफी है।

रोमांटिक सिनेमा जीवन में सोमरस की तरह है – ईशमधु तलवार

फिल्मों में रोमांटीकता शुरू से ही है जैसे हमारे जीवन में। पहले सामाजिक मर्यादाएं ज्यादा कठीन थी सो फिल्मों में रोमांटिक सीनस को पक्षीयों आदि के माध्यम से दिखाया गया था। जैसे दो पक्षियों को चोंच लड़ाते हुये। पहले की फिल्मों में रोमांस के साथ सवेन्दानाओं की ज्यादा अहमियत थी। राजेशा खन्ना की तो एक बड़ी पहचान ही रोमांटिक स्टार के रूप में बन कर उभरी।
पर आज के सिनेमा में दर्शनीयता ज्यादा है इसमें कामुकता और फूहड़ता ज्यादा आ गई है।

कोई भी रोमनतिक फिल्म देखिये वो हमारे जीवन में सोमरस की तरह होती है। हम उस फिल्म से जुडते चले जाते हैं। हम हमेशा से इस तरह की फिल्में पसंद करते आए हैं। हमारी हिंदी फिल्में तो बिना रोमानटिकता या रोमांस के अधूरी सी है। और इसके बिना फिल्म देखनबा हमारी लिए भी एक अधूरापन सा लगता है।

चर्चा के बाद 11 फिल्मों की स्क्रीनिग की गई

गोलछा की नाईल में राजस्थान से अकीब मिर्जा की शॉर्ट फिल्म बलरड एस्पेक्ट, अमेरीका से अनिमेशन फीचर फिल्म एडवेंचर अप्पू और गप्पु तथा अमित रंजन विश्वाश के निर्देशन में बनी रोमांटिक बंगाली फीचर फिल्म ब्रिज भारत से दिखाई गई। दो अजनबी, इस फिल्म को देश विदेश में सराहा जा रहा है। फिल्म अभी रिलीज नहीं हुई है।

“अप्पू और गप्पू” 60 मिनट की एनीमेशन फीचर फिल्म हैं। इसकी कहानी में अप्पू और गप्पू है और 11 साल की उम्र में जो सबसे अधिक लोकप्रिय जासूसी जोड़ी बन गए हैं, और दुनिया उन्हे जानने लगती है। बच्चों ने फिल्म को बहुत पसंद किया और एंजॉय किया।

ग्राउंड फ्लोर पर एक अनिमेशन फीचर फिल्म द रिटर्न ईरान से और 7 शॉर्ट एनिमेशन फिल्में यूके, अमेरीका, जर्मनी, चाईना और सायप्रस से स्क्रीन हुई।

प्रोग्राम (शुक्रवार, 20 मई)

20 मई को शाम 5 बजे ग्लोबल हुयूमन राईटस विषय पर राजस्थान मानव अधिकार आयोग के सदस्य डा. एम के देवराजन, फेमस मानव अधिकार कार्यकर्ता कविता श्रीवास्तव चर्चा करेंगे।

(20 मई को शाम 6 बजे से दिखाई जाने वाली फिल्में इस प्रकार रहेगी -

संवाद के बाद 6 बजे से आज भी होगी 11 फिल्मों की स्क्रींनिंग

गोलछा के नाईल में स्क्रीन होने वाली फिल्में - शूटिंग स्टार बुल्गारिया से 28 मिनट और चवेर 25 मिनट की, माय मोम 3 मिनट की, और हाउसफूल 15 मिनट की भारत से शॉर्ट फिल्में है। भारत से बोमियन म्यूजिसियन 13 मिनट, ए बेस्ट काल ब्यूटी 12 मिनट और वाराणसी जंकसन 16 मिनट की डाक्यूमेंटरी फिल्में है। और वेटींग फॉर द ट्रेन फार्स से 24 मिनट की डाक्यूमेंटरी फिल्म है। आज ही राजस्थान के फिल्म मेकर राकेश गोगना की “झेलम” फिल्म जो कश्मीरी पंडितों पर आधारित है स्क्रीन होगी।

गोलछा ग्राउंड फ्लोर पर स्क्रीन होने वाली फिल्में – भारत से चेतन गांधी की 19 मिनट की डाक्यूमेंटरी बेसिक और अमेरीका से 112 मिनट की डाक्यूमेंटरी फीचर फिल्म जुईस स्टेप फॉरवर्ड स्क्रीन होगी।

“शूटिंग स्टार” बुल्गारिया से 28 मिनट की शॉर्ट फिल्म है। लिली एक तलाकशुदा मां है - मार्टिन और एलेक्जेंड्रा की । एक दिन सर्दियों की शाम को मार्टिन बालवाड़ी से एलेक्जेंड्रा लेता है। अंधेरी सड़कों पर दुखद दुर्घटना हो जाती है जिसे शायद ही भूला या मिटाया जा सकता हो। इसके बाद लिली और उसके बच्चे फैसला करते है जिससे जीवन में बदलाव आता है।

FTII की छात्रा आकांक्षा चितकरा की 12 मिनट की डाक्यूमेंटरी है “अ बेस्ट काल्ड ब्यूटी”। ये फिल्म एक लड़की (वृत्तचित्र निदेशक) और उसके बॉडी ईमेज के मुद्दों से लड़ते हुए उसी पर एक वृत्तचित्र बनाने की यात्रा की कहानी है । मैं एक निर्देशक के रूप में मैं कैसे बॉडी ईमेज के मुद्दों का शिकार हुई की मेरी खुद की निजी कहानी सुनाई है और कैसे मैं एक वृत्तचित्र बनाने के माध्ययम से अवसाद को कम करने का निर्णय लिया। फिल्म का अंत लाईफ में और बेहतर करने की आशा के साथ होता है।

अमेरीका से 112 मीनट की डाक्यूमेंटरी फीचर फिल्म है “ज्वीस स्टेप फॉरवर्ड”। इसमें ज्वीस समुदाय सांस्कृतिक पहचान और सामाजिक न्याय की कहानी है।

फेस्ट में रोजाना शाम 5 बजे से स्पेशल चर्चा सत्र आयोजित किए जा रहे और शाम 6 बजे से फिल्म स्क्रीनिग्स की जा रही है।

समारोह में 60 देशों चयनित 65 टॉप फिल्मों दिखाई जा रही है।

बच्चों के लिए फिल्में देखने योग्य है। फेस्ट में सभी उम्र वर्ग के लोग भाग ले सकते हैं। फेस्टीवल में भाग लेने के लिए डेलीगेटस रजिस्ट्रेशन निशुल्क है। एंट्री पहले आओ पहले पाओ के आधार पर है । रजिस्ट्रेशन जिफ की वेबसाईट www.jiffindia.org पर ओपन है।
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