GMCH STORIES

राजस्थान के सांसद संसद में क्यों है चर्चा में पीछे?

( Read 6135 Times)

01 Jun 20
Share |
Print This Page
राजस्थान के सांसद संसद में क्यों है चर्चा में पीछे?

राजस्थान की जनता ने लगातार दूसरी बार प्रदेश की सभी 25 लोकसभा सीटों पर भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवारों को विजयी बना कर एक इतिहास रचा। लेकिन यें सांसद लोगों की उम्मीदों पर कितना सफल साबित हुए इसका लेखा जोखा देखने पर पता चलता है कि कई माननीयों ने राज्य और जनता के हित से जुड़े मुद्दों और जनहित के विषयों को उठाने में इतनी रुचि नहीं दिखाई जितनी उनसे उम्मीद थी।कमोबेश यहीं स्थिति संसद  के ऊपरी सदन राज्यसभा में भी हैं।जबकि दोनों सदनों में राजस्थान से चुने सांसद जैसे राज्य सभा में सभापति  उपराष्ट्रपति एम वैंकया नायडू और लोकसभा में अध्यक्ष ओम बिरला हैं जो कि अपने सांसदों को बोलने का पूरा अवसर भी दे रहे हैं लेकिन
कतिपय सांसदों को छोड़ बाक़ी सांसद राज्य की उम्मीदों और कसौटी पर खरा नही उतरें हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार के 2.0 वर्ष का प्रथम वर्ष पूर्ण होने पर किए गए एक विश्लेषण के अनुसार राजस्थान से सर्वाधिक प्रश्न पूछने वाले सांसदों की सूची में सबसे उपर सीकर के सांसद स्वामी सुमेधानंद सरस्वती का नाम है जिन्होंने लोकसभा में 115 प्रश्न पूछे । इस सूची में पाली सांसद पी पी चौधरी और चितौड़गढ़ के सांसद सी पी जोशी ने दूसरा स्थान पाया हैं। दोनों सांसदों ने 110- 110 प्रश्न पूछे हैं।
बाँसवाड़ा-डूंगरपुर के सांसद श्री कनकमल कटारा  ने लोकसभा में अपने लोकसभा क्षेत्र के लिए 103 प्रश्न पूछकर राजस्थान के पहले पाँच सांसदों में अपना स्थान बनाया है।
वहीं जालोर-सिरोही के सांसद देवजी पटेल ने 100 प्रश्न और जयपुर के सांसद रामचरण बोहरा ने  92 प्रश्न पूछ बेहतर प्रदर्शन किया हैं।राहुल कस्वा(चुरूँ)और निहाल चंद ( श्री गंगा नगर)ने भी 89-89 प्रश्न पूछे।
प्रश्न पूछने के मामले में सूची में सबसे नीचे झुंझुनु के सांसद नरेंद्र कुमार है जिन्होंने महज़ दो प्रश्न पूछे। इसी कड़ी में भीलवाड़ा के सांसद सुभाष बहेडिया भी है जिन्होंने मात्र 6 प्रश्न पूछे। 
प्रदेश में सात सांसद ऐसे हैं जिन्होंने 50 से भी कम प्रश्न पूछे हैं।
पिछले एक साल में प्रदेश के 25 सांसदों ने लोकसभा में हुए वाद-विवाद में 714 बार हिस्सा लिया। वहीं 6 सांसदों ने तो 10 बार से भी कम बार इसमें भाग लिया है। जिनमें पूर्व केन्द्रीय राज्य मन्त्री और जयपुर ग्रामीण के सांसद कर्नल राज्यवर्धन सिंह भी शामिल है ।
सांसद प्रकोष्ठ की भूमिका भी नही रही विशेष
पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती वसुन्धरा राजे के मुख्यमंत्री के रूप में पहले कार्यकाल में आवासीय आयुक्त कार्यालय नई दिल्ली में सांसद प्रकोष्ठ  का गठन कर एक अच्छी शुरुआत की गई थी। इसका उद्देश्य राज्य हित के मुद्दों और जनहित से जुड़ें विषयों को सामूहिक ढंग से संसद में उठाना,नए सांसदों को विधायी प्रक्रिया और प्रश्न बनाने और उन्हें संसद में रखने में सहयोग करना आदि था। इस प्रकोष्ठ में तब रघुवीर सिंह कौशल जैसे वरिष्ठ सांसद को संयोजक नियुक्त किया गया था। वसुन्धरा राजे के दूसरे मुख्यमंत्रित्व कार्यकाल में भूपेन्द्र यादव और नारायण लाल पंचारिया जैसे वरिष्ठ सांसदों को को यह ज़िम्मेदारी दी गई। संसद के अनुभवी सेवानिवृत्त अधिकारी को भी बतौर समन्वयक लगाया गया।लेकिन सांसद प्रकोष्ठ वह गति नही पा सका जिसके लिए उसका गठन हुआ था। राजस्थान में हर पाँच वर्ष में सरकार बदल जाती है और संसद में प्रतिनिधियों और दलों का प्रतिनिधित्व भी। इस कारण भी राज्य सरकार इस पर विशेष ध्यान नही देती है। जब कि सांसद प्रकोष्ठ का उद्देश्य राज्य के मुद्दों और हितों से जुड़े विषयों को सामूहिक रूप से केन्द्र सरकार के सामने रखना है। सांसद प्रकोष्ठ आज भी चल रहा है लेकिन मात्र औपचारिकता के रूप से ।राज्य के सांख्यिकी विभाग द्वारा पेंडिंग इशूज़ पर जारी एक पुस्तिका का वितरण करवाने के अलावा इसमें और कोई उल्लेखनीय कार्य नही हो रहा। राज्य सरकार इस सांसद प्रकोष्ठ पर हर वर्ष लाखों रु. खर्च कर रही है। लेकिन परिणाम आशानुरूप नहीं होने से 
सांसद प्रकोष्ठ की भूमिका विशेष नही दिखाई दे रही है बल्कि यह सवालों के घेरें में है।
यही वजह है कि सही मार्ग दर्शन के अभाव में प्रदेश के सभी लोकसभा और राज्य सभा के सांसद द्वारा अपने प्रदेश और क्षेत्र के विकास के लिए विभिन्न विषयों पर सही ढंग से प्रभावी प्रश्न देश की सबसे बड़ी पंचायत संसद में विभिन्न सत्र के दौरान रख नही पा रहे है।राज्य हित के मुद्दें , समस्याएँ और जनहित के विषय सामूहिक रूप से सही ढंग से नही रख पाने की वजह से आज़ादी के क़रीब 74 वर्षों के बाद भी विशिष्ट भौगोलिक  परिस्तिथियों और बार-बार आने वाली प्राकृतिक आपदाओं के बावजूद राजस्थान को अभी तक विशेष राज्य का दर्जा नही मिल पाया है और नहीं करोड़ों लोगों द्वारा बोली जाने वाली राजस्थानी भाषा को संविधानिक मान्यता।


Source :
This Article/News is also avaliable in following categories : National News , Rajasthan
Your Comments ! Share Your Openion

You May Like