कोटा के सुधा मल्टीस्पेशिलिटी होस्पिटल में एक नवजात को सफल उपचार के जरिए नया जीवन प्रदान किया गया है। चिकित्सालय की पीडियाट्रिक टीम ने ये सफलता शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. हेमराज की देखरेख व अस्पताल निदेशक डॉ. पलकेश अग्रवाल के मार्गदर्शन में हांसिल की। डॉ. हेमराज सोनी ने बताया कि अनंतपुरा निवासी नवजात का जन्म एक नर्सिंग होम में हुआ था। जन्म के समय गन्दा पानी श्वास नली में जाने से बच्ची को अम्बू बेग द्वारा कत्रिम श्वास दिया गया। उसके बाद उसको ऑक्सीजन (सीपीएपी) मशीन पर रखा गया। लेकिन अगले दिन 100 प्रतिशत ऑक्सीजन देने पर भी बच्ची का ऑक्सीजन लेवल बढ़ नहीं रहा था। इसके साथ ही श्वास में परेशानी लगातार बढ़ती जा रही थी। महज एक दिन की बच्ची को सुधा अस्पताल में लाते ही उसका एनआईसीयू में उपचार किया साथ ही कई नवाचार भी किए गए, जिसकी वहज से बच्ची की जान बच सकी। जबकी इस तरह के मामले में बच्चों के बचने की संभावना महज 5 से 10 प्रतिशत ही रहती है।
सबसे एडवांस तकनीक व उपकरणों की मदद से लौटी जिंदगी
डॉ. सोनी ने बताया कि बच्ची के श्वास नली में ट्यूब (ईटी ट्यूब) डालकर अम्बू द्वारा कत्रिम श्वास दी गई। यहां मरीज को एचएफओ वेंटिलेटर पर शिफ्ट किया जो सबसे एडवांस्ड माना जाता है। बच्ची का बीपी बहुत ज्यादा कम था, एवं हाथ पैर नीले पड़े हुए थे। नाभि की नसों द्वारा सेंट्रल आर्टियल लाइन (यूवीसी, यूएसी) डाली गई, ताकी लगातार बीपी की मॉनिटरिंग हो सके।
उल्टा हो रहा था रक्त का प्रवाह
डॉ. हेमराज सोनी ने बताया कि बच्ची की हार्ट की 2-डी ईको कराई गई जिसमें पता चला की लंग्स में बहुत ज्यादा प्रेशन पाया गया। जिसकी वहज से पीडीए पर रक्त का प्रवाह उल्टा हो रहा था। उल्टा प्रवाह रुख सके। और आखिर इसमें भी सफलता मिली।
- आक्सीजन लेवल था 4, होना चाहिए 50 से अधिक
डॉ. सोनी ने बताया कि बच्ची की एबीजी की जांच कराई गई, जिसमें ऑक्सीजन मात्र केवल 4 पाई गई जो को बहुत ज्याद गंभीर बात थी। ऐसे बच्चों के बचने की संभावना बेहद ही कम होती है। धीरे-धीरे एनआईसीयू टीम के अथक प्रयासों से बच्ची की हालत में सुधर होने लगा। 6वें दिन वेंटीलेटर से बच्ची को हटाया गया व 7वें दिन ऑक्सीजन हटा दी गई। सभी दवाईयां धीरे-धीरे बंद कर दी गई। 9वें दिन बच्ची स्तनपान करने लगी। पूणतया स्वस्थ्य होने के बाद उसे छुट्टी दे दी गई। जानकारी के अनुसार इस तरह के मामले हजारों में एक बच्चे में पाए जाते हैं, अक्सर ऐसे बच्चों को बचाना बेहद ही मुश्किल होता है, लेकिन सुधा अस्पताल की टीम के अथक प्रयास व अत्याधुनिक सुविधाओं के चलते बच्ची को बचाया जा सका।