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बचपन से ही डालें सामाजिक समानता की नींव ः डॉ. दशोरा

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22 Sep 16
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बचपन से ही डालें सामाजिक समानता की नींव ः डॉ. दशोरा विश्व स्तर पर सामाजिक असमानता को दूर करना है तो प्राथमिक व माध्यमिक स्तर के पाठ्यक्रम में ‘सामाजिक समानता’ को शामिल करना पडेगा ताकि बच्चा माध्यमिक स्तर तक आते-आते सामाजिक, आर्थिक, भौगोलिक, वैयक्तिक, पारिवेशिक, सांस्कृतिक असमानताओं के बीच सबको समान समझना सीख जाए। इसी थीम को अध्यापक शिक्षा में भी ग्रास रूट स्तर पर समावेशित करना होगा ताकि अध्यापक भी उसी मानसिकता के साथ विश्व के भविष्य का बेहतर निर्माण कर सके। ये विचार कोटा विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. परमेन्द्र कुमार दशोरा ने ‘शिक्षा में सामाजिक न्याय ः अध्यापक शिक्षण के विशेष संदर्भ में’ विषय पर बुधवार को ‘सामाजिक न्याय हेतु शैक्षिक नेतृत्व के मुद्दों एवं चुनौतियां’ विषयक अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार के समापन सत्र में व्यक्त किए।
प्रो. दशोरा ने कहा कि ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः,’ सर्वे सन्तु निरामयाः पर आधारित भारतीय संस्कृति के रोम-रोम में वैश्विक सामाजिक समरसता की सोच रची-बसी है। सामाजिक न्याय के मामले में भारत को विश्व में कोई सानी नहीं। हमें अपनी संस्कृति को रेखांकित करते हुए वैश्विक सामाजिक विभिन्नताओं को खत्म करना होगा। शिक्षक यह नहीं समझें कि वो निजी कॉलेज में पढाता है, सुविधाएं कम हैं, कई तरह के पूर्वाग्रह व बाधाएं हैं। उसे खुद पर गुमान होना चाहिए कि ‘मैं एक अध्यापक हूं’, ‘मुझ पर समाज के नवनिर्माण की जिम्मेदारी है’।


डॉ. भीमराव अम्बेडकर का उदाहरण देते हुए प्रो. दशोरा ने कहा कि तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद भारतीय समाज ने हर स्तर पर उनकी रूढियों की बेडियों को तोडने में मदद की। इसीलिए उन्होंने अपने नाम में तब उच्च जाति का सूचक शब्द रहा ‘अम्बेडकर’ लगाया। उन्होंने कहा कि वह व्यक्ति शिक्षक कहलाने का अधिकारी नहीं है जो वंचित वर्ग के बच्चों के साथ समान व्यवहार कर उसे न्याय नहीं दिला सकता। इसके लिए उसे खुद रोल मॉडल बनना होगा। उसके खुद के पूर्वाग्रह हैं मगर यह प्रक्रिया निरंतर परिष्कार, बेहतरी और सकारात्मक सोच के साथ बेहतर वैश्विक सामाजिक समानता का परिवेश बनाने की दिशा में चलती रहनी चाहिए।
प्रो. दशोरा ने विदेशी शिक्षाविदों से कहा कि भारत के कण-कण में ‘अनेकता में एकता’ के दर्शन होते हैं। हमने विश्व को शांति, सद्भावना का पाठ पढाया कर विश्व गुरू की उपाधि हासिल की है। जिसने भारत को समझ लिया, मान लीजिए पूरे विश्व को समझ लिया। शिक्षाविद जॉन पोल का उदाहरण देते हुए वे बोले कि समानता के साथ गुणवत्ता होनी जरूरी है। आप सबको एक कतार में खडा नहीं कर सकते। सबके अलग-अलग ‘स्टार्ट पॉइंट’ होने चाहिए। हमें सामाजिक समानता में वैज्ञानिक तकनीकी को भी अपनाना होगा। जॉर्डन के शिक्षाविद प्रो. वासेफ मार्शेद ने कहा कि शिक्षक एक ‘फिजिशियन’ है। वो एक जादूगर है जिसकी आवाज पीढियों तक असर करती है।
प्रो. हेमलता तलेसरा व डॉ. इंदू कोठारी ने बताया कि पैनल डिस्कशन सत्र में प्रो. विजयालक्ष्मी चौहान, डॉ. अनिल पालीवाल, डॉ. सीमा सरूपरिया, डॉ. कल्पना जैन, प्रो. प्रणव, डॉ. पुष्पा, प्रो. जेनसन आदि ने स्कूली शिक्षा में सुधार, अध्यापक शिक्षा के माध्यम से वैश्विक न्याय की प्राप्ति, देहात में शिक्षा की दशा और दिशा, शैक्षिक उन्नयन में विभिन्न राष्ट्रों के बीच समतामूलक समन्वय आदि पर चर्चा की। दोपहर में मेलबोर्न विवि आस्ट्रेलिया के डॉ. डेविड गुर का की-नोट हुआ व मेरी व्यावसायिक अकादमी आस्ट्रेलिया की निदेशक डॉ. नादी जेरनी ने ‘सफल विद्यालय को समझना’ पर उद्बोधन दिया। यहां पुस्तक का विमोचन व पोस्टर प्रस्तुतिकरण कार्यक्रम डॉ. शशि कुमार के निर्देशन में भी हुए। हिन्दी परिचर्चा सत्र में डॉ. एसडीसिंह, डॉ. दिनेश कुमार मुख्य वक्ता थे। आभार प्रो. हेमलता तलेसरा ने ज्ञापित किया।
12 विभूतियों को सीसीईएएम फैलोशिप ः
समापन समारोह के मुख्य अतिथि अमेरिका की रेडफोर्ड युनिवर्सिटी के प्रो. ग्लेन टी. मार्टिन, अध्यक्षता कॉमनवेल्थ की प्रशासनिक एवं प्रबंधन समिति के अध्यक्ष केनेडा के डॉ. केन बिन, विशिष्ट अतिथि मेलबोर्ड विवि आस्ट्रेलिया के डॉ. डेविड गुर आदि ने सामाजिक न्याय के क्षेत्र में उपलब्धिमूलक सेवाकार्य करने वाली 12 विभूतियों को सीसीईएमए फैलोशिप सम्मान प्रदान किया। सम्मान प्राप्त करने वालों में डॉ. वाशिफ मरसड, डॉ. दिनेश कुमार, डॉ. उषाशी , डॉ. वी.एम. शशिकुमारी, डॉ. राजेश मन्नी, डॉ. भारती माटे, डॉ. सुधा सत्या, डॉ. निम्मी मरिया, डॉ. नसरीन, प्रो.उमाशंकर शर्मा, प्रो.परमेन्द्रकुमार दशोरा, डॉ. इन्दु कोठारी को सीसीईएम फैलोशिप सम्मान दिया गया। सीसीईएएम के नागपुर चेप्टर की ओर से लाइफ टाइम एचीवमेंट अवार्ड एवं सीसीईएएम के प्रेसीडेंट को विशेष सम्मान प्रदान किया गया।
अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के निष्कर्ष व संकल्प ः
- स्कूली शिक्षा से ही जीवन मूल्य सिखाएंगे ताकि बच्चों में बेहतर वैश्विक समतामूलक सोच का विकास हो सके।
- भारत सरकार ने जो 1॰ जीवन मूल्य अनिवार्य रूप से सभी स्कूलों में लागू करने के निर्देश दिए हैं उनके क्रियान्वयन के लिए सीसीईएएम मॉनिटरिंग करेगा। इसके लिए परीक्षा हो, माक्र्स दिए जाएं।
- विदेशी शिक्षाविदों ने कहा कि उनके देशों में भी कमोबेश भारत जैसी ही असमानताएं मौजूद हैं। शिक्षा का स्तर लगातार गिरता जा रहा है। उन्हें दूर करने के लिए सीसीईएएम संकल्प व समाधान बिन्दु जारी करें ताकि उन पर वहां भी कार्य किया जा सके।
- सामाजिक परिवर्तन सिर्फ शिक्षक ही ला सकते हैं क्योंकि बच्चे सिर्फ उनकी बात सुनते, समझते और जीवन में उतारते हैं। ऐसे में शिक्षक खुद रोल मॉडल बनें। अध्यापक शिक्षा में भी इसी पर जोर दिया जाएगा।
- हर अध्यापक और बच्चे में ‘लीडरशिप स्किल’ विकसित की जाएगी ताकि वे दूसरों को ‘इग्नाइट’ कर सकें। इसके साथ ही लीडरशिप ट्रांसफार्मेशन पर भी कार्य करेंगे। इसके मायने यह हैं कि हर लीडर दूसरे को अपनी क्षमतां हस्तांतरित करेगा ताकि बेहतर विश्व का निर्माण किया जा सके।
- वैश्विक शिक्षा व समानता का लक्ष्य पाने के लिए तो ग्रामीण शिक्षा पर फोकस करेंगे। वंचित बच्चों को ध्यान में रखते हुए सिलेबस व शिक्षक, शैक्षिक परिवेश तैयार करेंगे। इसकी हर देश में साल में दो बार मॉनिटरिंग होगी।
- सामाजिक न्याय के लिए बच्चों के स्तर से ही असरकारी ‘कम्यूनिकेशन स्किल’ का विकास करेंगे ताकि वे परिस्थितयों के अनुसार खुद को अभिव्यक्त कर सकें। शाब्दिक संयम और सशक्तीकरण से कई असमानताओं को दूर किया जा सकता है।
- सभी देशों में महिला-असमानता की स्थिति चिंताजनक है। उनके सशक्तीकरण की दिशा में काम करेंगे। इसके लिए इसी वर्ष कई कार्यक्रम हाथ में लिए जाएंगे।
- सीसीईएएम उन तबकों की आवाज बनेगा जिनकी सुनने वाला कोई नहीं है। हमारे प्लेटफॉर्म पर वंचित लोग अपनी बात कहेंगे व हम उनकी ओर से हर स्तर पर उनकी आवाज बनेंगे, उनका पक्ष मजबूती से रखेंगे।
- सेमिनार के अनुभवों को अपने कार्यक्षेत्रों में निचले से ऊपर के स्तर तक साझा करेंगे। अपनी कमियों का खुद मूल्यांकन करेंगे तथा सीमित संसाधनों में भी वैश्विक समरसता के लक्ष्य की ओर अग्रसर रहेंगे।

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