दिल्ली : माइकोबैक्टीेरियम ट्युबरक्लोरसिस जिसके कारण टीबी होती है प्रतिवर्ष 20 लाख से अधिक लोगों को प्रभावित करता है। यह बीमारी प्रमुख रूप से फेफड़ों को प्रभावित करती हैए लेकिन अगर इसका समय रहते उपचार ना कराया जाये तो यह रक्त के द्वारा शरीर के दूसरे भागों में भी फैल सकती है और उन्हें संक्रमित करती है ऐसे संक्रमण को द्वितीय संक्रमण कहा जाता है। यह संक्रमण किडनीए पेल्विरकए डिम्ब वाही नलियों या फैलोपियन ट्यूब्सए गर्भाशय और मस्तिष्क को प्रभावित कर सकता है। टीबी एक गंभीर स्वाथ्य समस्या है क्यों कि जब बैक्टीरियम प्रजनन मार्ग में पहुंच जाते हैं तब जेनाइटल टीबी या पेल्विकक टीबी हो जाती है जो महिलाओं और पुरूषों दोनों में बांझापन का कारण बन सकता है।
महिलाओं में टीबी के कारण जब गर्भाशय का संक्रमण हो जाता है तब गर्भकला या गर्भाशय की सबसे अंदरूनी परत पतली हो जाती हैए जिसके परिणामस्वंरूप गर्भ या भ्रूण के ठीक तरीके से विकसित होने में बाधा आती है। जबकि पुरूषों में इसके कारण एपिडिडायमो.आर्किटिस हो जाता है जिससे शुक्राणु वीर्य में नहीं पहुंच पाते और पुरूष एजुस्पर्मिक हो जाते हैं। इंदिरा आईवीएफ हास्पिटल कि आई वी एफ एक्सपर्ट डॉ निताशा गुप्ता का कहना है कि ए टीबी से पीड़ित हर दस महिलाओं में से दो गर्भधारण नहीं कर पाती हैंए जननांगों की टीबी के 40.80 प्रतिशत मामले महिलाओं में देखे जाते हैं।
टीबी के कारण महिलाओं में प्रजनन क्षमता को प्रभावित कर रहे कुछ लक्षणों को पहचानना बहुत मुश्किल हैए इसमें अनियमित मासिक चक्रए योनि से विसर्जन जिसमें रक्त के धब्बे भी होते हैंए यौन सबंधों के पश्चात् दर्द होना जैसे लक्षण दिखाई देते हैं लेकिन कईं मामलों में ये लक्षण संक्रमण काफी बढ़ जाने के पश्चात् दिखाई देते हैं। पुरूषों में योनि में स्खलन ना कर पानाए शुक्राणुओं की गतिशीलता कम हो जाना और पिट्युटरी ग्रंथि द्वारा पर्याप्त मात्रा में हार्मोंनो का निर्माण ना करना जैसे लक्षण दिखाई देते हैं।
डॉ निताशा गुप्ता ने कहा अब इस समस्या का उपचार संभव हैए टीबी की पहचान के पश्चात् एंटी टीबी दवाईयों से तुरंत उपचार प्रारंभ कर देना चाहिए। एंटीबॉयोटिक्सं का जो छह से आठ महीनों का कोर्स है वह ठीक तरह से पूरा करना चाहिए। अंत में संतानोत्पकत्ति के लिये इन.विट्रो फर्टिलाइजेशन या इंट्रासाइटोप्लाोज्मिक स्पार्म इंजेक्शन ;आईसीएसआईद्धकी सहायता भी ली जाती है। लेकिन ऐसी महिलाओं को मां बनने के बाद एक नई चिंता सताने लगती है कि क्या स्तनपान कराने से उनका बच्चा तो संक्रमण की चपेट में नहीं आ जाएगा। ऐसी माताओं को चाहिए कि जब वे अपने बच्चों को स्तनपान कराएं तो चेहरे पर मॉस्कं लगा लें।
टीबी की चपेट में आने से बचने के लिये भीड़.भाड़ वाले स्थानों से दूर रहेंए जहां आप नियमित रूप से संक्रमित लोगों के संपर्क में आ सकते हैं। अपनी सेहत का ख्यांल रखें और नियमित रूप से अपनी शारीरिक जांचे कराते रहें। अगर संभव हो तो इस स्थिलति से बचने के लिये टीका लगवा लें।
Source :