मूलतः हनुमान-गढ़ के निवासी 74 वर्षीय श्री जगदीश प्रसाद अग्रवाल जी का उनके निवास पर हृदयगति रुक जाने से निधन हो गया । उन्होंने अपने पुत्र पंकज अग्रवाल को 2-3 महीने से देहदान करवाने के लिये कह रखा था,जिसके बारे में पंकज जी ने भी समय रहते शाइन इंडिया फाउंडेशन को सम्पर्क कर लिया था । श्री जगदीश जी की इच्छा के चलते संस्था सदस्यों ने उनकी अच्छी उम्र की प्रार्थना करते हुए कहा कि,ईश्वर की इच्छा के चलते,जब भी कभी ऐसी दुःखद घटना घटती है तो,जो भी आपने इच्छा जाहिर की है,उस हिसाब से हम आपका देहदान और संभव हुआ तो नेत्रदान करवा देंगे ।
जैसे ही जगदीश जी ने आख़री साँस ली,तुरंत पंकज जी ने शाइन इंडिया फाउंडेशन को संपर्क किया,कुछ जरूरी सवाल-ज़वाब के बाद यह निर्णय हुआ कि आँखे चिकित्सकीय कारणों के चलते काम नहीं आ सकती है,परंतु देहदान का नेक कार्य सम्पन्न हो सकता है । संस्था सदस्यों ने मेडिकल कॉलेज की शरीर रचना विभागाध्यक्ष डॉ प्रतिमा जायसवाल को संपर्क किया,परन्तु उनके शहर में न होने के कारण, डॉ गिरीश वर्मा प्राचार्य मेडिकल कॉलेज को संपर्क किया गया । डॉ वर्मा जी ने तुरंत शरीर रचना विभाग की सह-आचार्य डॉ आरुषि जैन व डॉ सुमित गुप्ता को संस्था सदस्यों के साथ देहदान के कार्य में सहयोग करने के लिये निर्देश दे दिये । इसके बाद मेडिकल कॉलेज में पंकज अग्रवाल व उनके क़रीबी रिश्तेदारों के बीच श्री जगदीश प्रसाद अग्रवाल जी के पार्थिव शरीर को मेडिकल कॉलेज को सौंपा गया । श्री जगदीश जी काफ़ी सरल स्वभाव,मृदुल भाषी व्यक्ति थे,नेत्रदान-देहदान से जुड़ी भ्रान्तियों से उनको कभी मतलब नहीं रहा,बल्कि वह जितना हो सकता था,उतना इस बारे में अन्य लोगों को समझाते रहते थे । उनके स्वंय के अजमेर निवासी छोटे चाचा तेजभान जी का भी आज से 5-7 वर्ष पूर्व अजमेर मेडिकल कॉलेज में देहदान हुआ था । उसी से प्रेरणा लेने के बाद से इन्होंने भी देहदान करने का मन बना रखा था। मेडिकल कॉलेज को आज तक 29 देहदान प्राप्त हुए है,उनमें से 11 देहदान,शाइन इंडिया फाउंडेशन द्वारा विगत 8 वर्षों में मेडिकल कॉलेज,कोटा को प्राप्त हुए है । संस्था ने संभाग भर में यह निःशुल्क व्यवस्था की हुई है कि, यदि बूँदी, बाराँ,रामगंजमंडी व आस पास के क्षेत्र का कोई भी व्यक्ति अपनी देहदान करना चाहता है,तो समय आने पर उनके पार्थिव शरीर को कोटा मेडिकल कॉलेज तक बिना किसी शुल्क के पहुँचाया जा सकेगा ।
अपने पिता की देह सौंपते हुए उनके पुत्र पकंज अग्रवाल का मानना है कि, सभी शरीर बीमार होने पर डॉक्टर से इलाज करवाते है, इसलिये भावी चिकित्सकों को शरीर रचना व कार्यप्रणाली को समझने के लिए शरीर दान करके भी हम अपना व समाज का भला ही करते है। इसलिये हमको देहदान जैसे नेक कार्य के लिये अवश्य आगे आना चाहिए। वह स्वयं भी पत्नि लीना मित्तल सहित अपने देहदान का निर्णय शाइन इंडिया के साथ कर चुके है ।
देहदान को सम्पन्न कराये हुए आधा घंटा भी नही हुआ था कि ब्रह्मपुरी रामपुरा में हिम्मत सिंह जी लोढ़ा जी की 45 वर्षीया पुत्री अनुपमा जैन के निधन उपरांत उनके नेत्रदान करवाने के लिये शाइन इंडिया को सूचना आयी । आज से पांच वर्ष पूर्व 22 दिसम्बर 2014 को अनुपमा की माता जी लाडकंवर लोढ़ा जी का नेत्रदान शाइन इंडिया के सहयोग से हुआ था,इससे पूर्व में भी इसी परिवार में 2 अन्य नेत्रदान प्राप्त हुए है। अनुपमा जी के नेत्रदान की प्रक्रिया आई बैंक सोसायटी के तकनीशियन द्वारा उनके निवास पर ही सम्पन्न की गयी। माँ के नेत्रदान के बाद से अनुपमा ने अपना नेत्रदान-देहदान का निर्णय अपने सभी क़रीबी रिश्तेदारों को बता दिया था, इस कारण इनकी मृत्यु के एक घंटे में नेत्रदान का कार्य सम्पन हो गया,परंतु चिकित्सकीय कारणों के चलते देहदान संभव नहीं हो सका ।