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देश में टेलेंट की नहीं, सही प्लेटफार्म की कमी है : प्रो.शांतनु

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23 Dec 18
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देश में टेलेंट की नहीं, सही प्लेटफार्म की कमी है : प्रो.शांतनु
उदयपुर। हमारे इंजीनियर्स विश्व स्तरीय हैं और आईआईटी के माध्यम से बेहतरीन इंजीनियर्स तैयार हो रहे हैं। यह सही है कि देश के आईआईटी की क्षमता 10 हजार विद्यार्थियों को प्रशिक्षित करने की है लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं है कि जो बच्चे आईआईटी में नहीं पढ़ पा रहे हैं वे बुद्धिमत्ता में कहीं कमतर हैं। मेरा मानना है कि हमारे देश में ब्रेन और टेलेंट का मुकाबला दुनिया में कोई नहीं कर सकता मगर जरूरत सही प्लेटफार्म की है। ये विचार डायरेक्टर आईआईटी, जोधपुर प्रो. शांतनु चौधरी ने शनिवार को उदयपुर के अनंता रिसोर्ट में चल रही तीन दिवसीय 33वीं इंडियन इंजीनियरिंग कांग्रेस के दूसरे दिन 40वें सर राजेंद्रनाथ मुखर्जी मेमोरियल लेक्चर में व्यक्त किये। उन्होंने कहा कि इंजीनियरिंग के क्षेत्र में पाठ्यक्रम, प्रशिक्षण और इम्प्लीमेंटेशन के स्तर पर कुछ समस्याएं हैं जिन्हें दूर कर समावेशी विकास के लक्ष्य को पाया जा सकता है।
आयोजन समिति के अध्यक्ष इंजीनियर सोहनसिंह राठौड़, सह अध्यक्ष इंजीनियर अनुरोध प्रशांत शर्मा, आयोजन सचिव इंजीनियर यवंतीकुमार बोलिया, सह सचिव इंजीनियर महेंद्रकुमार माथुर एवं प्रेस सचिव इंजीनियर चंद्रप्रकाश जैन ने बताया कि दूसरे दिन विभिन्न तकनीकी सत्रों में इंजीनियरिंग की कई शाखाओं के ज्ञान और शोध का पिटारा खुला। शोधार्थियों ने विभिन्न विशेषज्ञों के समक्ष विचार रखे तो विशेषज्ञों ने चुनौतियों व अवसरों के बारे में बताया। साझा विचार यह रहा कि बदलते दौर में हमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की तरफ खास तौर पर फोकस करना है। इसके अलावा विभिन्न तकनीकों के आपसी समन्वय एवं उन सभी तकनीकों के विज्ञान की अन्य शाखाओं मसलन मानवीकी और चिकित्सकीय शाखाओं के साथ अनुप्रयोग के नए तरीकों पर विचार करने पर जोर दिया गया। वक्ताओं ने कहा कि देश में दो प्रकार की स्थितियां हैं, पहली जहां आम आदमी दो वक्त की रोटी तक के लिए संघर्ष कर रहा है तो दूसरी स्थिति में हमें चिकित्सा, रक्षा व अंतरिक्ष क्षेत्र में नए आयामों को छूना है। ऐसे में मौलिक शोध व उससे भी ज्यादा जरूरी उसके सही-सटीक, समयबद्ध अनुप्रयोग पर जोर दिया जाना चाहिए। शिक्षा व डिग्री जरूरी हैं लेकिन उससे ज्यादा जरूरी ऐसे लोगों को प्रोत्साहन देकर सामने लाना है जो खुद इनिशिएटिव लेकर नवाचार कर रहे हैं।
मेमोरियल लेक्चर्स में साझा किए विचार :
डॉ. केएल राव मेमोरियल लेक्चर प्रो. डॉ. रघुनाथ के. शेवगांवकर ने दिया व इंजीनियरिंग की दशा-दिशा के बारे में बताया। 8वें प्रो.सीएस झां मेमोरियल लेक्चर में प्रो. केके अग्रवाल, आईपी विवि दिल्ली के वाइस चांसलर ने विचार रखे।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बनें साझा मंच :
अंतराष्ट्रीय सत्र में भारत, नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका साहित अन्य देशों के प्रतिनिधियों ने इंजीनियरिंग के क्षेत्र की वैश्विक चुनौतियों पर विचार करते हुए कहा कि तकनीकी के साथ ही साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में अब भी कई देशों में बहुत कुछ किया जाना शेष है। तकनीकी ने हमें सुरक्षा व सुविधा तो प्रदान की ही है लेकिन साइबर खतरों की अनदेखी नहीं की जा सकती। इसके लिए साझा सेफागार्ड डिवलप किया जाना चाहिए। सदस्यों ने दी इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियर्स इंडिया को साझा मंच प्रदान करने के लिए धन्यवाद दिया। सेमिनार के मुख्य वक्ता डॉ. अजीत बाजपेयी, डीजी एनसीआईआईपी व अमित शर्मा एडिशनल डायरेक्टर डीआरडीओ थे।
एल्यूम्नी मीट, महिला अभियंता सम्मेलन आज :
इंटरनेशनल कांग्रेस के समापन दिवस पर रविवार को दो मैमोरियल व्याख्यान होंगे तथा महिला अभियंताओं का सम्मेलन आयोजित किया जाएगा। महिला अभियंता सम्मेलन में इंजीनियरिंग के क्षेत्र में महिलाओं की उपलब्धियों-चुनौतियों व नारी सशक्तीकरण पर चर्चा होगी। समारोह के मुख्य अतिथि गजेन्द्रसिंह शेखावत, कृषि एवं कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली एवं सांसद अर्जुनलाल मीणा होंगे।

साक्षात्कार :
ऑप्टिकल कम्यूनिकेशन के क्षेत्र में इंजीनियर्स के लिए नौकरी के कई सुनहरे मौके हैं। वायरलेस और ऑप्टिकल फाइबर केबल के कॉम्बिनेशन से देश की संचार व्यवस्था को मजबूत बनाया जा सकता है। हमारा देश ग्लोबल लेवल पर प्रतिस्पर्धा कर रहा है। न्यूक्लियर व विमानन प्रौद्योगिकी में हम दुनिया के कई विकसित देशों से बहुत आगे पहुंच चुके हैं। आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस और साइबर सिक्योरिटी के क्षेत्र में देश में बहुत कुछ किया जाना शेष है। विद्यार्थियों के लिए संदेश है कि वे उच्च मानकों पर वो शोध आधारित कार्य करें जिसे करने में उन्हें मजा आता हो। ऐसे रिसर्च मॉड्यूल्स पर काम हो जो आम आदमी के दुखों को कम करने और उनकी जिंदगी को बेहतर बनाने में काम आ सकें। आज डिग्रियों की बाढ़ में नौकरियों का जो संकट दिखाई दे रहा है उसका मूल कारण पाठ्यक्रमों का पुराना, बोझिल होना है। पाठ्यक्रम सुधारे जाएं, इंजीनियरिंग पढऩे वालों के लिए डिग्री पाठ्यक्रम को उत्तीण करने के ऐसे कठोर मानक तय किए जाएं जो सिर्फ उन्हीं को आगे बढऩे दें जो इसके लिए सुपात्र हैं।
- डॉ. रघुनाथ के. शेवगांवकर, वाइस चांसलर, बैनेट यूनिवर्सिटी
इंजीनियरिंग फील्ड में काम कर रहे बच्चों और इंजीनियरिंग पढ़ रहे बच्चों से कहना चाहता हूं कि जीवन में फेल्योर्स को कैसे एंज्वाय किया जाए, उनसे सीखकर किसी प्रकार से आगे बढऩे की मजबूत राहें बनाई जाएं। स्टार्टअप में ही देख लीजिए, हर दस में से दो को ही सफलता मिल पाती है। उसमें से भी जो लगातार प्रयास करता है, बड़े अचीवमेंट पा लेता है। अभिभावकों को भी अपने बच्चों को विफलताओं को स्वीकार करना सिखाना चाहिए। जहां तक बेरोजगारी का सवाल है तो इंजीनियरिंग कॉलेजों संख्या अधिक होने व गुणवत्ता से समझौता करने से परेशानी हो रही है। राजस्थान में कार्य कर रहे तथा राजस्थान से बाहर कार्य कर रहे उद्यामियों को खुद अपनी जरूरतों व भविष्य की संभावनाओं को देखते हुए इंजीनियरिंग कॉलेजों-संस्थाओं आदि का भरपूर सहयोग कर इंजीनियर्स को रोजगार दिलाने का प्रयास करना चाहिए।
- प्रो. शांतनु चौधरी, डायरेक्टर आईआईटी, डायरेक्टर आईआई जोधपुर
बांग्लादेश में इंजीनियर्स का इस समय सबसे ज्यादा फोकस पावर क्राइसिस को कम करना है और इसमें उन्होंने बहुत हद तक सफलता भी प्राप्त कर ली है। भारत से हमें स्टील और पावर सेक्टर में बहुत सहयोग मिल रहा है। तकनीकी सहयोग के साथ ही स्किल डिवलपमेंट में भी भारत के इंजीनियर्स का महत्वपूर्ण योगदान है। इंजीनियरिंग के क्षेत्र में बांगलादेश में भी नौकरियों का वैसा ही संकट है जैसा कि भारत में दिखाई देता है। हालांकि हमारे यहां पर इंजीनियरिंग के इतने कॉलेज और यूनिवर्सिटीज नहीं है जैसे कि भारत में हैं लेकिन धीरे-धीरे शिक्षा के क्षेत्र में सुधार आ रहा है।
- सादिक मोहम्मद चौधरी, चेयरमैन दी इंस्टीट्यूशंस ऑफ इंजीनियर्स बंग्लादेश
माइनिंग इंजीनियरिंग का क्षेत्र राजस्थान के लिए बहुत खास है क्योंकि राजस्थान में इतने विविध प्रकार के खनीज पाए जाते हैं कि प्रदेश को खनिजों का अजायबघर भी कहा जाता है। नए खनन क्षेत्रों को चिन्हित कर अच्छी क्वालिटी के खनिज का विश्व स्तरीय तकनीकी उपकरणों का प्रयोग करते हुए खनन करना समय की मांग है। हिन्दुस्तान जिंक लिमिटेड का इसमें बहुत महत्वपूर्ण योगदान है। आजकल रिमोट कंट्रोल गाइडेड लेंडिंग, ड्रिलिंग व एक्सकेवेशन मशीनों का जमाना है जिसमें मानव रहित लेनिक बहुत ही ज्यादा दक्षतापूर्ण खनन हो रहा है। जहां तक स्वर्ण खनन की बात है तो बांसवाड़ा में सोना मिला था व उसे परिष्कृत भी कर दिया गया लेकिन यह सब प्रायोगिक स्तर तक ही सीमित रहा क्योंकि यह बहुत महंगा भी है और ज्यादा लाभ देने वाला भी नहीं है।
- इंजीनियर सोहनसिंह राठौड़, अध्यक्ष आयोजन समिति
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