उदयपुर . कोशी बिहार हो, केरल हो या अन्य कंही बाढ़, जब तक पेड़ व पहाड़ कटते रहेंगे , बाढ़ की विभीषिका बनी रहेगी। उदयपुर को यह सीखने व समझने की जरूरत है। यह विचार रविवार को झील संवाद में व्यक्त किये गए।
संवाद में झील संरक्षण समिति के सह सचिव डॉ अनिल मेहता ने कहा कि उदयपुर में पहाड़ों के कटने , उन पर रिहायशी व व्यावसायिक निर्माण होने से सम्पूर्ण जल् प्रवाह प्रणाली पर विपरीत प्रभाव हुआ है । इससे बरसाती पानी चेनेलाइज नही हो पा पाता । पेड़ों के कटने से पानी की बहाव गति बढ़ती है और कम समय में ज्यादा पानी का जमाव हो जाता है। थोड़ी बरसात में ही उदयपुर की झीलों में पानी पहुँच जाना एक अच्छा संकेत नही है।
झील विकास प्राधिकरण के सदस्य तेज शंकर पालीवाल ने कहा कि छोटे तालाब पानी को स्वयं में थाम कर बाढ़ की विभीषिका को कम करते हैं। उदयपुर में अधिकांश छोटे तालाब पाट दिए गए है। उनमें निर्माण हो गए है। ऐसे में किसी भी तीव्र बरसात की अवस्था मे पहाड़ो से तेज गति से आने वाला पानी कंही भी थमेगा नही और बाढ़ आ जायेगी ।
गांधी मानव कल्याण समिति के निदेशक नंद किशोर शर्मा ने कहा कि एक और बरसाती नाले अतिक्रमण व भराव के शिकार हैं वंही शहर की नालियों में कचरा, पॉलीथिन जमा होता रहता है। इससे पानी भराव व फैलाव की स्थिति बन शहर पर संकट आ सकता है।
नागरिकों को इस पर चिंतित होने की जरूरत है।
पर्यावरण प्रेमी पल्लब दत्ता तथा दिगम्बर सिंह ने कहा कि उदयपुर की झीलों के जलग्रहण क्षेत्र में व्यापक स्तर पर सॉइल वॉटर कंजर्वेशन कार्यों की जरूरत है। इसी से अकाल व बाढ़ की समस्याओं से बचा जा सकता है।
संवाद से पूर्व फतेहसागर झील पर श्रमदान हुआ। झील मित्र संस्थान,झील संरक्षण समिति एवं गांधी मानव कल्याण सोसायटी के तत्वावधान में हुए इस रविवारीय श्रमदान में श्रीमति रितेश,रमेश चंद्र राजपूत, पल्लव दत्ता, द्रुपद सिंह, रामलाल गहलोत,अनूप सिंह,तेज शंकर पालीवाल व नन्द किशोर शर्मा ने झील क्षेत्र से पॉलीथिन,खाद्य व पूजन सामग्री,बॉटल्स,पुराने कपड़ो की गांठे व बदबू व सड़ांध मारती थैलिया निकाली।
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