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4 साल में नहीं आए अच्छे दिन

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08 Jun 18
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 4 साल में नहीं आए अच्छे दिन मोदी सरकार के बीते 4 साल के दौरान आम लोगों के आर्थिक हालात में कोई सुधार नहीं हुआ। न तो आमदनी बढ़ी, न रोजगार के मौके मिले, और तो और मोदी सरकार के आखिरी साल में भी हालात में सुधार की कोई गुंजाईशन हीं है। यह सारा खुलासा हुआ है रिजर्व बैंक के सर्वे में।
बीते चार साल में आर्थिक मोर्चे पर आपके लिए अच्छे दिन आए या नहीं, इसे लेकर विचारधार के मुताबिक लोगों की राय अलग-अलग हो सकती है। लेकिन भारती रिज़र्व बैंक के आंकड़े बताते हैं कि अच्छे दिन नहीं आए, और कम से कम आर्थिक मामले में तो बुरे दिन देखना पड़ रहे हैं। आरबीआई के सर्वे में सामने आया है कि लोगों की आर्थिक स्थिति 2014 के मुकाबले और खराब हुई है।रिजर्व बैंक समय-समय पर कंज्यूमर कांफिडेंस सर्वे कराता है, जिससे पता चलता है कि लोगों की आर्थिक हालत कैसी है। हाल में जो सर्वे हुआ उसमें सामने आया है कि पिछले एक साल में लोगों की आर्थिक हालत पहले से खराब हुई है। ऐसा मानने वालों की तादाद 48 फीसदी है। दिल्ली, मुंबई, बेंग्लुरु, चेन्नई, कोलकाता और हैदराबाद में हुए इस सर्वे में हालांकि करीब 32 फीसदी ऐसे भी हैं जो मानते हैं कि उनकी आर्थिक हालत में सुधार हुआ है। इन आंकड़ों से पता चलता है कि कम से कम 16.1 फीसदी लोगों मानते हैं कि उनकी आर्थिक हालत पहले के मुकाबले खराब हुई है। 2014 में इस सर्वे के आंकड़ों में सामने आया था कि 14.4 फीसदी लोगों की आर्थिक हालत खराब हुई है।इतना ही नहीं आने वाले दिनों में भी लोगों को हालात में सुधार की गुंजाइश नजर नहीं आ रही। इस साल के सर्वे के आंकड़े देखेंगे तो लगेगा कि लोगों को तो उम्मीद है कि हालात सुधरेंगे, लेकिन जैसे ही इस साल के आंकड़ों की 2014 के आंकड़ों से तुलना की जाती है तो सामने आएगा कि हालात इतने खराब है कि लोगों ने अब मौजूदा सरकार से उम्मीद ही छोड़ दी है। इस साल जिन लोगों को सर्वे में शामिल किया गया उनमें से 49.5 फीसदी को लगता है कि अगले एक साल में हालात में सुधार होगा, जबकि 27.8 फीसदी मानते हैं कि हालात और खराब होंगे। जबकि 2014 में जब यह सर्वे किया गया था तो 56.7 फीसदी लोगों ने कहा था कि हालात में सुधार की उम्मीद है और ऐसा न माने वाले लोगों का प्रतिशत 17.6 था। यानी 2014 में लोगों ने जो उम्मीदें इस सरकार से लगाई थीं, वह टूट चुकी हैं और उन्हें इस सरकार से किसी अच्छे दिन की उम्मीद भी नहीं है।सर्वे में यह भी सामने आया है कि रोजगार को लेकर भी मोदी सरकार के दौर में लोगों की उम्मीदों पर पानी फिर गया है। सर्वे के मुताबिक 31.5 फीसदी लोगों को लगता है कि रोजगार के मौके बेहतर हुए हैं जबकि 24.4 फीसदी को लगता है कि इस मोर्चे पर कोई सुधार नहीं हुआ है, जबकि 44.1 फीसदी लोगों का मानना है कि रोजगार के मौके खत्म हुए हैं। इन आंकड़ों की तुलना जब जून 2014 से करते हैं तो सामने आता है कि रोजगार को लेकर लोगों की चिंता बीते चार सालों में कहीं ज्यादा बढ़ गई है। जून 2014 में 30.2 फीसदी लोगों को लगता था कि रोजगार के मौकों में कोई सुधार नहीं होगा, बल्कि हालत और खराब होगी, जबकि 4 साल बाद ऐसा मानने वालों की तादाद में करीब 50 फीसदी का इजाफा हो गया।इसके अलावा 2014 में जहां 65.1 फीसदी लोग मानते थे कि आने वाले एक साल में रोजगार के मोर्चे पर हालात बेहतर होंगे, 2018 में ऐसा मानने वाले कम हुए हैं और सिर्फ 49.5 फीसदी लोग ही ऐसा मानते हैं। वहीं 2014 में सिर्फ 10.1 फीसदी लोग मानते थे कि रोजगार के मौके अगले एक साल में खराब होंगे, जबकि अब यानी मई 2018 में ऐसा मानने वालों की ढाई गुना बढ़कर 25 फीसदी हो गई है।
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